asd भूलने की बीमारी से बचना है तो कुछ आदत सुधार लो

भूलने की बीमारी से बचना है तो कुछ आदत सुधार लो

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अपने गांवों में एक कहावत बड़ी प्रचलित है कि यार वो तो उधार लेकर और खाकर भूल गया। यह क्यों पड़ी यह तो हमारे बुजुर्ग ही जान सकते थे लेकिन भूलने की यह बीमारी कई कारणों से आम आदमी के लिए जानलेवा और बड़े नुकसान का कारण भी बनने लगी है और कभी कभी तो आदमी अपने आप को भी भूल जाता है। ऐसा क्यों होता है इसका पता 1906 में जर्मन के डॉक्टर ओ लोए अलजीमीर द्वारा लगाया गया। जब उन्होंने इसका परीक्षण किया तो पता चला कि इससे दिमाग में कुछ गांठे पड़ गई और इसीलिए आदमी भूलने लगता है। बीमारी की रफ्तार को देखते हुए आम आदमी को जागरूक करने हेतु 21 सितंबर को हर वर्ष विश्व अल्जाइमर दिवस मनाया जाता है। उसी कड़ी में आज यह दिवस पूरे विश्व में मना रहे हैं। इसका कितना लाभ होता है कितना नहीं यह तो भगवान जाने। मगर जानकारों के अनुसार 40 साल से कम उम्र के ज्यादातर युवा भी इस समस्या से ग्रस्त होने लगे हैं। बताते हैं कि अगर समय से इसका इलाज और उपाय ना किए जाए तो याददाश्त पूरी तौर पर खत्म हो जाती है और लोग खुद को ही भूल जाते हैं। पहले यह बीमारी बुढ़ापे में होना दिखाई देती थी लेकिन अब 30 से 35 साल की उम्र में भी इसका असर दिखाई देता है।
अल्जाइमर को बुढ़ापे की बीमारी माना जाता है लेकिन अब ये युवाओं में भी तेजी से बढ़ रही है। मेडिकल कॉलेज में हर माह 40 साल से कम उम्र के 100 से ज्यादा युवा इस समस्या से ग्रस्त होकर पहुंचते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि जवानी में भुलक्कड़ होना तनाव और डिप्रेशन का नतीजा है।
अल्जाइमर रोग एक प्रकार की डिमेंशिया होती है, जिसमें मानसिक क्षमता की हानि होती है और याददाश्त खत्म हो जाती है। समय पर इलाज न किया जाए तो आगे चलकर लोग खुद को ही भूल जाते हैं। यह बीमारी बुढ़ापे में होती है, लेकिन अब 30-35 की उम्र के युवाओं में भी इसके लक्षण देखे जा रहे हैं।
मैं डॉक्टर तो नहीं हूं लेकिन जितना पता चलता है उसके अनुसार खराब दिनचर्या, नशा, तनाव, शुगर, हाई बीपी, कोलेस्ट्रॉल आदि इसके मुख्य कारण बन सकते हैं मगर जितना देखा और सुना उससे भी पता चलता है कि अशुद्ध भोजन आदि भी इस बीमारी को बढ़ाता है। इसलिए अगर समय से खाना पीना रखा जाए सोने उठने की व्यवस्था ठीक हो सुबह योग और दोनों समय घूमने अपना काम खुद करने पढ़ने की आदत बरकरार रखे तो उससे बीमारी का खतरा कम हो जाता है। नियमित व्यवस्था बनाए रखने वालों को बीमारी के लक्षण खत्म नहीं होते हैं। मेरा मानना है कि इस सबके बाद भी बीमारी से संबंध चिकित्सकों, आयुर्वेद होम्योपैथिक यूनानी चिकित्सकों की राय ली जा सकती है। आदमी और उसके परिवार के लिए घातक सिद्ध हो सकने वाली इस बीमारी से जितना बचा जा सके उतना अच्छा है इसलिए जो उपाय प्राप्त हो सकते हो उनका उपयोग के साथ इंटरनेट से इसकी बचाव की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। तभी इस दिवस को मनाए जाने का औचित्य है वरना दिवस तो कोई ना कोई आए दिन मनाया जाता है। उसका फायदा कितना होता है यह अलग बात है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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