सरकार के लिए एक प्रकार से सफेद हाथी सिद्ध हो रही बिजली व्यवस्था और हर नागरिक के लिए परेशानी का कारण आपूर्ति वितरण में सुधार और इस विभाग के घाटे को समाप्त करने हेतु पीपीपी मॉडल अपनाते हुए यूपी की बिजली व्यवस्था अब निजी हाथों में दिए जाने की खबरें पढ़ने सुनने को खूब मिल रही हैं। वर्तमान में 46 हजार करोड़ की सरकार से मदद लेंगी कंपनियां और अगले साल के लिए 55 हजार करेाड़ की मदद सरकार से लेनी पड़ेगी। अभी तक आगरा नोएडा में निजी कंपनियां कर रही हैं बिजली वितरण। इस व्यवस्था में जो फिलहाल मॉडल अपनाया गया है उसके तहत 50-50 के फार्मूले पर काम करेगी कंपनियां। आईएएस अधिकारी को बनाया जाएगा चेयरमैन और पॉवर कारपोरेशन व एमडी की तैयारी खबर के अनुसार बिजली कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने के फैसले के साथ पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने अफसर, कर्मचारियों को आकर्षक वीआरएस का विकल्प दिया है। प्रबंधन की विज्ञप्ति में कहा गया है कि सेवा शर्तों, सेवानिवृत्ति लाभ आदि में कोई कमी नहीं आएगी। इन्हें तीन विकल्प दिए जाएंगे। जहां हैं, वहीं बने रहें। ऊर्जा निगम या अन्य बिजली कंपनियां, जिन्हें पीपीपी माडल पर नहीं दिया जा रहा है, वहां जाएं या आकर्षक वीआरएस ले लें। निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी की जाएगी न कि निजीकरण किया जाएगा। यदि कार्मिक रिफार्म में सहयोग करते हैं तो सरकार नई कंपनी में हिस्सेदारी पर विचार करेगी। जिन क्षेत्रों में कार्मिकों ने पैरामीटर सुधारा है, उन्हें इस प्रक्रिया से बाहर रखा जाएगा।
इस संबंध में क्या फैसला होगा यह तो समय बताएगा लेकिन फिलहाल बिजली कंपनियां आपूर्ति के खर्च का 65 प्रतिशत ही वसूल पा रही है लेकिन यह व्यवस्था लागू हो जाती है तो काफी सुधार होने की उम्मीद है। अब क्योंकि संभावनाओं पर ही सारा कुछ आधारित होता है इसलिए यह कहा जा सकता है कि चेयरमैन अध्यक्ष सरकार का होगा और एमडी निजी कंपनी का। अगर सरकार अधिकारी निजी कंपनी के साथ तालमेल ऐसा नहीं बैठाते हैं जो नुकसानदायक हो तो जिस तरह अन्य राज्यों में निजी कंपनियां लाभ का सौदा सिद्ध हो रही है वैसा सुधार यूपी में भी हो सकता है। बस जरूरी है कि निजी कंपनियों से अनुबंध करते हुए कोई ऐसा बिंदु ना छोड़ा जाए जिसे आधार बनाकर वो उपभोक्ता का उत्पीड़न और सरकारी शर्ताे का उल्लंघन कर सके। बिजली कंपनियों के कर्मचारियों और अधिकारियों को भी विकल्प दिए गए हैं। मुझे लगता है कि उन्हें इस बारे में विचार करना चाहिए क्योंकि बिजली आपूर्ति व सुधार को देखें तो जनता से कई तरह के कर वसूलने और उन पर आर्थिक बोझ डालने के बाद भी पॉवर कारपोरेशन के अधिकारी ना तो सही बिजली आपूर्ति दे रहे हैं और ना जर्जर तारों व टांसफार्मरों को सही करा रहे हैं। मेरे हिसाब से सरकार का यह निर्णय जनहित का कहा जा सकता है। फिलहाल यही कहा जा सकता है कितना सुधार होगा कितना जनता को लाभ मिलेगा यह तो कम से कम छह माह बाद ही स्पष्ट हो पाएगा।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
अगर सही अनुबंध और तालमेल बैठाकर काम हुआ तो जनहित में हुआ निजी हाथों में बिजली आपूर्ति देने का निर्णय
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