asd तेंदुआ होने की खबर गलत होने पर साधुनगर व टीकाराम कालोनी के नागरिकों के नहीं वन विभाग के अधिकारियों के विरूद्ध हो कार्रवाई

तेंदुआ होने की खबर गलत होने पर साधुनगर व टीकाराम कालोनी के नागरिकों के नहीं वन विभाग के अधिकारियों के विरूद्ध हो कार्रवाई

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कंकरखेड़ा के साधुनगर और टीकाराम कालोनी में पिछले एक सप्ताह से तेंदुआ होने की चल रही अफवाह को ध्यान में रखते हुए वन विभाग की इनमें दोनों कालोनियों में सीसीटीवी कैमरे लगाकर निगरानी की जिसमें तेंदुआ नहीं नजर आया। अब वन विभाग के अधिकारी कह रहे है कि अफवाह फैलाने वालों पर होगा केस और लिया जाएगा एक्शन। अगर सही मायनों में देखे तो यह जरूरी भी है क्योंकि अफवाह किसी भी रूप में किसी भी मामले में नहीं फैंलनी चाहिए। मगर सवाल उठता है कि इस एक मामले में भले ही तेंदुआ हाथ न आया हो और खबर झुठी सिद्ध हो रही हो लेकिन जिस प्रकार से अब खासकर यूपी के कई जिलों में तेंदुए और गुलदार सड़कों पर विचरते दिखाई देते है। और पकड़ें भी जा चुके है। पिछले दिनों मवाना रोड़ से लगी एक कालोनी में काफी मशक्कत के बाद तेंदुआ पकड़ा गया और वहां के लोग दहशत भरे माहौल में कुछ समय के लिए रहने को मजबूर हुए और भी कई बार तेंदुए के सड़कों पर घूमने के या दिखाई देने की खबरें सही साबित हुई है। तथा पिछले दिनों बहराइच जिले की कतर्निरिया घाट क्षेत्र में आंगन में खेल रही बच्ची को तेंदुआ उठाकर ले गया। और ऐसी ही खबरें आये दिन पढ़ने और सुनने को खूब मिलती है। ऐसे में अगर डरियाये कंकरखेड़ा क्षेत्र की इन कालोनियों के लोगों ने अपनी शंका तेंदुआ होने की व्यक्त कर दी तो वो तो दोषी हो गये। लेकिन सड़कों को पार्क या गार्डन समझकर प्रदेश के विभिन्न जनपदों में घूमने और जानवरों तथा आदमियो को घायल कर देने के साथ ही मार देने वाले तेंदुए सड़कों पर घूमते है उसके लिए दोषी कौन है ये भी तय होना चाहिए। मेरी निगाह में सरकार जंगल का क्षेत्र बढ़ा रही है और उसे सुरक्षित करने के प्रयास भी हर संभव शासन द्वारा किये जाने के साथ ही वन विभाग को अपना क्षेत्रफल बढ़ाने और उसकी सुरक्षा के उपाय करने के निर्देश भी दिये जा रहे है। उसके वाबजूद अगर तेंदुए या अन्य जानवर सड़क पर आकर शहरी मौहल्ले व बस्तियों में आतंक मचा रहे है तो इसकी भी जिम्मेदारी सरकार को तय करनी चाहिए। क्योंकि हर वर्ष करोड़ों वृक्ष लगवाने और वनों की सुरक्षा के लिए पूर्ण इंतजाम करने और इसके हेतु भारी तादाद में कर्मचारियों व अधिकारियों की जो फौज तैयार की गई है उसकी तनख्वाह और सुविधा के नाम पर अरबों रूपये खर्च होते है उसके बावजूद वन की भूमि पर आबादी बढ़ना और जानवरों का शिकार होना ऐसे में अपना घर छोड़कर तेंदुआ अथवा गुलदार आदि जो सड़कों पर आ रहे है इसके अलावा कुत्ते और बंदरों से जो आम आदमी त्रस्त हो रहा है उसके लिए कहीं न कहीं तो वन विभाग के अधिकारी व कर्मचारी किसी न किसी स्तर पर दोषी है ही। इसकी जांच कराकर सरकार को मुझे लगता है अगर उस में दोषी पाए जाए तो जिन क्षेत्रों में गुलदार सड़कों पर घूमते पाए जाते है तो वहां के डीएफओ कंजरवेटर और अन्य अफसरों के विरूद्ध भी आम आदमी को सुरक्षा का माहौल उपलब्ध कराने के लिए हो कार्यवाही न कि तेंदुए की सूचना देने और न मिलने पर अफवाह फेलाना बताकर नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई की हो कोशिश। क्योंकि वन विभाग के अधिकारी सरकार के प्रयासों के बावजूद हरियाली बढ़ाने और वन क्षेत्र अथवा जानवरों की सुरक्षा मिली नाकामी नागरिकों पर नहीं थोप सकते।
(संपादकः रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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