asd कुछ लोगों के चीखने चिल्लाने पर कार्रवाई करने वालो पर भी हो कार्रवाई अगर आरोपी बिना दोष सिद्ध हुए रिहा होता है तो

कुछ लोगों के चीखने चिल्लाने पर कार्रवाई करने वालो पर भी हो कार्रवाई अगर आरोपी बिना दोष सिद्ध हुए रिहा होता है तो

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मैं ना तो किसी को गलत बता रहा हूं ना ही किसी आरोपी का समर्थन कर रहा हूं। लेकिन जिस प्रकार से समाज में कुछ लोगों में यह भावना पैदा हो रही है जो वो कहे और करे वो ठीक और दूसरा जो करे कहे वो गलत। ऐसी बात किसी के मन में नहीं आनी चाहिए। संविधान ने सभी को बोलने का अधिकार दिया है। लेकिन देखने में यह आ रहा है कि सबूत हो या ना हो वो चर्चा में आ गया तो बिना सोचे समझे उसे लेकर बवाल मचाने और इसमें सोशल मीडिया का उपयोग करने वालों की कोई कमी नजर नहीं आती है।
यह बात सबको समझनी होगी कि नियम सबके लिए एक है। कुछ लोगों के इकटठा होकर चिल्लाने और पुलिस द्वारा कार्रवाई किए जाने से ना कोई गलत होता है ना सही। आज एक खबर पढ़ने को मिली कि 43 साल बाद हत्या के मामले में जेल गए कौशांबी के 103 साल के बंदी लखनपाल को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बाइज्जत रिहा कर दिया। खबर के अनुसार 103 साल के लखन को 1977 में जानलेवा हमले के केस में गिरफतार किया गया। 1982 तक उन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ी तो उन्हें सजा सुना दी गई। जिस पर उन्होंने कोर्ट में अपील नहीं की और अब न्यायमूर्ति वीके और नंद्रप्रभा शुक्ला की पीठ ने उन्हें रिहा कर दिया। दूसरे मामले में पूर्व आईएएस प्रशिक्षु अधिकारी पूजा खेडकर को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि उन्होंने मर्डर नहीं किया और ना वो आतंकी है तो फिर उन्होंने कौन सा गंभीर अपराध किया है। न्यायमूर्ति डीबी नागरत्न और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने उन्हें अग्रिम जमानत दे दी और कहा कि वो जांच में पूर्ण सहयोग करेंगी। तीसरा मामला एक महिला अधिकारी जिसकी प्रशंसा हम भी करते हैं उस पर टिप्पणी के लिए एक प्रोफेसर को हरियाणा पुलिस ने गिरफतार किया। लेकिन जब कोर्ट ने पूछा कि अपमान करने वाला वीडियो या समाचार कहां है तो सब बंगले झांकने लगे। कार्रवाई के उपरांत वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल द्वारा की गई पैरवी से उन्हें जमानत दे दी गई। यह कुछ मामले ऐसे है जिससे पता चलता है कि समाज में एक वर्ग की सोच यह बनती जा रही है कि जो वो बोले वो ही सही। इस मामले में न्याय व्यवस्था को कायम करने वाले भी कुछ लोगों के चीखने चिल्लाने पर कार्रवाई कर देते हैं। ऐसे अनेको मामले है जिसमें कोर्ट द्वारा बाइज्जत बरी किया जाता है।
मेरा मानना हे कि कोई बेकसूर प्रताड़ना ना झेले इसके लिए जनप्रतिनिधि और अदालतें कुछ ऐसा करें कि गलत पाए जाने पर आरोपियों के खिलाफ भी कार्रवाई हो जिससे भविष्य में बेकसूरों को प्रताड़ना का शिकार ना होना पड़े।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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