नई दिल्ली 04 अक्टूबर। केंद्र सरकार ने शादीशुदा जोड़ों के बीच बिना सहमति के यौन संबंधों को वैवाहिक दुष्कर्म मानकर अपराध घोषित करने वाली याचिकाओं का सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया। केंद्र ने दलील दी कि अगर पति-पत्नी के बीच संबंधों को वैवाहिक दुष्कर्म नाम देकर अपराध बनाया गया, तो इससे विवाह संस्था ही नष्ट हो जाएगी।
केंद्र ने यह भी कहा कि भारत में विवाह की विशेष अवधारणा है, जो व्यक्ति व परिवार के अन्य सदस्यों के लिए सामाजिक और कानूनी अधिकारों का सृजन करती है। केंद्र ने प्रारंभिक जवाबी हलफनामे में कहा कि तेजी से आगे बढ़ते और लगातार बदलते सामाजिक पारिवारिक ढांचे में संशोधित प्रावधानों के दुरुपयोग की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता किसी व्यक्ति के लिए यह साबित करना कठिन और चुनौतीपूर्ण होगा कि यौन संबंध में दूसरे पक्ष की सहमति थी या नहीं।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि देश में वैवाहिक दुष्कर्म को ‘अपराधीकरण’ करार नहीं दिया जा सकता। केंद्र का कहना है कि अगर एक पुरुष के अपनी पत्नी से यौन संबंध बनाने को दुष्कर्म करार दिया गया तो इससे दांपत्य संबंधों पर गहरा असर होगा। इससे विवाह संस्था में गंभीर किस्म की उथल-पुथल मच जाएगी।
केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में दायर अपने हलफनामे में गुरुवार को वैवाहिक दुष्कर्म (मेरिटल रेप) का अपराधीकरण किए जाने का कड़ा विरोध किया। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। इन याचिकाओं में वैधानिक मुद्दा उठाया गया है कि क्या किसी पति को अपनी ‘बालिग’ पत्नी की इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध स्थापित करने को अपराध-मुक्त माना जाना चाहिए?
उन्होंने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 375 के तहत अपवाद स्वरूप दिए गए क्लाज को हटाया गया है और उसके स्थान पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत एक पति के अपनी गैर-नाबालिग पत्नी से यौन संबंध स्थापित करने में कोई अपराध नहीं है। यहां तक के नए कानून की धारा 63 (दुष्कर्म) के तहत यही बात कही गई है।
हलफनामे में केंद्र का कहना है कि इस याचिका के नतीजे का हमारे समाज पर बहुत गहरा असर पड़ेगा। खासकर भारत में विवाह की अवधारणा प्रभावित होगी जिससे दोनों ही व्यक्तियों के लिए समाज और कानूनी अधिकारों का आधार तय होता है और परिवार के अन्य सदस्यों पर भी इसका सीधा असर होता है।
इसलिए इस मामले पर समग्रता से विचार होना चाहिए नाकि केवल कानूनी रुख अपनाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश डीवाइ चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मुद्दे पर सभी याचिकाओं को सीज कर दिया है।