देश की 18वीं लोकसभा के हुए चुनाव की घमासान के बाद आज परिणाम सामने आए। बताते चलें कि 543 सदस्यों वाली लोकसभा में एक सदस्य पहले ही निर्विरोध चुने जा चुके हैं और खबर लिखे जाने तक 542 में से ज्यादातर परिणाम आ चुके थे। यह भी स्पष्ट हो रहा था कि कोई बहुत बड़ा करिश्मा नहीं होता है तो नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बन सकते हैं।
इन चुनावों के नामांकन के बाद से ही राजनीतिक क्षेत्र में यह चर्चा जोर पकड़ रही थी कि चुनाव परिणाम आश्चर्यजनक होंगे और वो बात पूरी तौर पर आए परिणामों को देखकर सही प्रतीत हो रही है। कुछ लोग इन परिणामों को लेकर चर्चाएं कर रहे हैं। मगर सही तो यह है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और सपा के अखिलेश यादव दो युवाओं की करिश्माई जोड़ी ने राजनीतिक आकाओं की संभावनाएं तो फेल की ही अपने आप को मीडिया का शहंशाह समझने वाले जिन मीडिया मंचों ने पूर्व में एग्जिट पोल किए थे वो लगभग सभी निराधार साबित हुए। कोई भी उनकी सत्यता को बनाए नहीं रख पाया। इससे यह भी स्पष्ट हो रहा है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव जो कहते हैं कि एग्जिट पोल वाले ही करते हैं बूथ मैनेजमंेट, लगभग सही उतरा है।
अगर ध्यान से देखें तो सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए दारा सिंह का उपचुनाव हार जाना ही भाजपा नेताओं को मतदाताओं की भावनाओं का अहसास हो जाना चाहिए था। जो वो नहीं कर पाए। भगवान राम के नाम पर वोट मांगने वालों को भी सही समय पर यह समझ नहीं आया कि भगवान राम तो सबके हैं चाहे वह सपा का उम्मीदवार हो या बसपा का। फिर उनका आशीर्वाद एक को ही क्यों मिलेगा। ध्यान से अगर देखें तो चुनाव घोषित होने के बाद से एनडीए के नेता इंडिया गठबंधन को कमजोर करने के प्रयास में ही ज्यादा लगे रहे। अपने कार्यकर्ताओं के मन को समझने की कोशिश नहीं की गई और मतदाता चुप क्यों है इस ओर भी ध्यान नहीं दिया गया। परिणामस्वरूप भाजपा के कुछ बड़े दिग्गज और सहयोगी पराजित हो गए। अगर राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही भाजपा का कार्यकर्ता पूरे मन के साथ जुड़ा नहीं रहा क्योंकि पार्टी बदलकर आने वाले आगे बढ़ाए जाते रहे जिससे भाजपा में कैडर और समर्पण रखने वालों को भावनाएं आहत हुई और वो अपने आप को अलग थलग समझने लगे। इसके अतिरिक्त 2019 के बाद पद संभालने के बाद मोदी जी ने स्पष्ट कहा था कि पुराने जनसंघ के नेताओं और अब भाजपा के बुजुर्ग कार्यकर्ताओं और युवाओं को उनके कार्य के अनुसार सम्मानित किया जाए। तथा उनकी समस्याओं का पता कर उन्हें दूर कराया जाए। लेकिन जहां तक दिखाई दिया ना तो केंद्र व प्रदेश के मंत्रियों ने कार्यकर्ताओं को सरकारी कमेटियों में लिया और ना ही उनकी बात सुनी गई। कई मौकों पर पार्टी के बड़े नेताओं ने पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं की अवहेलना की और उसी का यह परिणाम है जो भाजपा 400 की बात छोड़ 300 के आसपास ही सिमट गई और यूपी में जिस स्थिति की उम्मीद नहीं थी उसका सामना पार्टी को करना पड़ रहा है। जो स्थिति आज यूपी में चुनाव परिणामों की है उसके लिए कहीं ना कहीं अपराध खत्म होने महिलाओं से छेड़छाड़ और अपराध घटने के जो दावे किए जा रहे थे लेकिन जनता उनका खामियाजा झेल रही थी उनका असर भी मतदान पर दिखाई दिया और प्रधानमंत्री द्वारा भ्रष्टाचार मुक्त समाज की स्थापना के तहत माहौल बनाने का प्रयास यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने खूब किया मगर कुछ निरंकुश और रिश्वतखोरी और कानून को ताक पर रखकर काम करने वाले अफसरों पर अंकुश ना होने के चलते मतदाता कार्यकर्ता दोनों ही मायूस देखे जाते थे क्योंकि जैसा कि मतदाताओं का कहना है कि जनपदों में एक दो जनप्रतिनिधि को छोड़ दिया जाए तो ना तो किसी की बात अफसर मानते थे इसलिए विकास और नगर निगम से संबंध विभागीय अधिकारियों की निरंकुशता बढ़ती गई। भ्रष्टाचार का बोलबाला चरम पर पहुंचा और आम आदमी के जो काम होने चाहिए थे वो नहीं हुए। उसी का परिणाम आज सामने नजर आ रहा है। दूसरी तरफ अपनी पार्टी की नीति गौसेवा और अन्य कार्यों को भी भारी बजट खर्च करने के बावजूद शासन प्रशासनिक अधिकारियों से नहीं करा पाया। परिणामस्वरूप गाय कूड़े के ढेर पर भोजन तलाशती नजर आती थी जिससे गौभक्तों की भावनाओं को ठेस पहुंची। लघु और भाषाई समाचार पत्रों के पत्रकारों से मंत्रियों द्वारा बनाई गई दूरी और जनता की बात सुनने के बजाय कुछ अधिकारी विचार के नाम पर चाय की प्याली खनकाते रहे जिससे मतदाता हताश हुआ और आज सत्ताधारी दल को यूपी में इस स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। कुछ लोगों का यह कथन भी सही प्रतीत होता है कि यह तो प्रधानमंत्री ने स्व. किसान नेता चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देकर रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को आकर्षित किया और रालोद भाजपा के साथ हो गया। अगर अखिलेश के सहयोग को याद कर जयंत चौधरी भाजपा में नहीं गए होते तो हरियाणा यूपी और राजस्थान में भाजपा प्रत्याशियों की स्थिति और भी खराब हो सकती थी। अगर कहीं चुनाव से पूर्व पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और बसपा मुखिया मायावती इंडिया गठबंधन के साथ होती थी शायद पूरे देश में वाकई आश्चर्यजनक परिणाम आते। क्योंकि भाजपा के प्रमुख नेताओं के अनुसार दो दोस्तों की यह जोड़ी और भी बड़ा करिश्मा कर सकती थी।
कुछ लोगों का कहना है कि एनडीए गठबंधन के साथ जुड़े कुछ बड़े दलों ने अगर विपक्षी गठबंधन की ओर हाथ बढ़ाया तो तस्वीर कोई और रंग ले सकती है लेकिन मुझे लगती है कि नरेंद्र मोदी केंद्र में सरकार बनाएंगे भले ही उनके मजबूत इरादों से डरकर सहयोगी कुछ सोचे उससे भले ही पीएम मोदी सहयोगी दलों को काम करने का मौका देने की प्रणाली है वो सहयोगी दलों को अलग नहीं होने देगी और नरेंद्र मोदी ही पीएम बनेंगे। देश के लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस देश में पक्ष और विपक्ष मजबूत होते हैं वहां सरकार जनता की मांगों को नजरअंदाज नहीं कर पाती है। पिछले पांच साल में जो जनता को कष्ट झेलने पड़े यह बात कही जा सकती है कि उसमें कमी आएगी और सरकार निरंकुश नहीं हो पाएगी। ऐसे में जनहित में उन्हें परेशान करने की नहीं।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अभी केंद्र में सरकार कौन बनाएगा। इसमें कुछ भी परिवर्तन हो सकता है इसमें अगर तेदेपा के चंद्रबाबू नायडू और बिहार के सीएम चंद्रबाबू नायडू नहीं फिसले तो उन्होंने कुछ समय पूर्व बिहार के भाजपा अध्यक्ष से मुलाकात नहीं की। यह बात चौंकाने वाली है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
नीतीश और चंद्रबाबू नायडू नहीं फिसले तो! मोदी का प्रधानमंत्री बनना तय, राहुल गांधी और अखिलेश की जोड़ी ने कर दिखाया करिश्मा, सरकार निरंकुश निर्णय नहीं ले पाएगी
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