asd ब्लैकमेल किया जा रहा था तो बिल्डर ने क्यों नहीं बुलाई पुलिस! थानेदार ने सिर्फ एक पक्ष के खिलाफ क्यों की कार्रवाई, कॉलोनी नियमानुसार है या गलत डीएम, एसएसपी और मेडा वीसी कराएं जांच

ब्लैकमेल किया जा रहा था तो बिल्डर ने क्यों नहीं बुलाई पुलिस! थानेदार ने सिर्फ एक पक्ष के खिलाफ क्यों की कार्रवाई, कॉलोनी नियमानुसार है या गलत डीएम, एसएसपी और मेडा वीसी कराएं जांच

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मवाना रोड के गंगानगर रजपुरा रोड पर कट रही एक कॉलोनी के निर्माणकर्ता द्वारा बीते दिवस रंगदारी मांग रहे और ब्लैकमेल कर रहे दो व्यक्तियों कृष्णगोपाल शर्मा निवासी टीपीनगर और श्रीमंत गौड़ निवासी मोरीपाड़ा को एसएसपी निवास के निकट चाय की कुटिया पर बुलाया और फिर मारपीट कर पुलिस के हवाले कर दिया गया। बताते हैं कि इस पर सिविल लाइन थाना प्रभारी द्वारा दोनों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली गई।
ना तो किसी को ब्लैकमेल करना चाहिए और ना होना चाहिए लेकिन यह भी सही है कि किसी के साथ मारपीट करना भी उतना बड़ा गुनाह है जितना आरोपियों को समझा जा रहा है। अगर बिल्डर से रंगदारी मांगी गई थी तो जब उसने इन दोनों को चाय की कुटिया पर बुलाया तो पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी। यह भी सोचा जाना चाहिए। इससे इन संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि हो सकता है कि इन दोनों को बुलाकर फंसाने की कोई चाल हो। वरना पुलिस को बुलाने की बजाय मारपीट क्यों की गई। अब रही पुलिस की बात तो जब तहरीर दी गई तो आरोपियों के साथ मारपीट करने वालों पर एफआईआर क्यों दर्ज नहीं हुई जबकि सभी जानते हैं कि किसी के साथ सार्वजनिक स्थान पर मारपीट किया जाना नियम विरूद्ध है।
इस बारे में जानकारी के अनुसार रजपुरा रोड पर एक कॉलोनी विकसित हो रही है। बिल्डर का कहना है कि दोनों आरोपियों ने फोन कर उन्हें मेडा कार्यालय बुलाया और फिर आठ लाख रूपये की मांग की। जो अपराध की श्रेणी में आता है। मगर बिल्डर ने पुलिस को सूचना ना देकर अपनी दबंगई दिखाते हुए इन दोनों की पिटाई कर दी और पुलिस ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। शायद इसलिए आए दिन जनता में और कोर्ट द्वारा पुलिस की कार्यप्रणाली की निंदा की जाती रही है।
सवाल उठता है कि थाना पुलिस और मेडा के अधिकारियों द्वारा जिस कॉलोनी को लेकर यह मामला हुआ। वो नियम अनुसार है या विरूद्ध इसके बारे में स्पष्ट नहीं किया गया। अगर गलत है तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई। सही थी तो रंगदारी कैसे मांगी जा रही थी। यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है। बताते चलें कि जब जयशंकर मिश्रा आवास विकास परिषद के प्रमुख सचिव थे तो उनके द्वारा कहा गया था कि किसी भी क्षेत्र में अवैध निर्माण के लिए पुलिस भी दोषी होगी। इस बारे में कुछ लोगों का यह कहना सही प्रतीत होता है कि कॉलोनी के बारे में पूरी जानकारी एसएसपी और मेडा उपाध्यक्ष को दी जाए और अगर सही है तो दोनों आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए और अगर नियम विरूद्ध है तो क्षेत्र के थाना प्रभारी और मेडा के अवैध निर्माण रोकने वाले एई जेई के खिलाफ हो सख्त कार्रवाई। मुझे ना तो इन दोनों से कोई सहानुभूति है और ना इनके कार्यों से लेकिन पहले ब्लैकमेलर होने की जांच होनी चाहिए और कानून को हाथ में लेकर इन्हें पीटने वालांे पर मुकदमा दर्ज हो। क्योंकि सिर्फ यह कहने से कि यह रूपये मांग रहा है मारपीट करना सही नहीं है। इससे अराजकता पैदा होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। कब कौन किसको पीटने लगे वो स्थिति प्रदेश के सीएम जी की भयमुक्त वातावरण और शांति बनाए रखने की नीति के विपरीत है। क्योंकि पूर्व में कई बार शासन स्तर पर अवैध निर्माणों और कच्ची कॉलोनियों को करने कराने वालों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश अधिकारियों को मिलते रहे हैं तो कई बार सीएम बैठकों में भी इस बारे में निर्देश दे चुके हैं।
मैं ना तो दोनों आरोपियों को जानता हूं और ना मारपीट करने वालों को। मेरा तो बस इतना मानना है कि ऐसी घटनओं से जो अराजकता की संभावनाएं बढ़ती है उसे रोका जाना चाहिए और बिना जांच पुलिस द्वारा किसी के आरोप लगाने पर किसी को गिरफ्तार करना ठीक नहीं है। अदालत कई बार इस बारे में निर्देश दे चुकी है। जिलाधिकारी, एसएसपी और मेडा उपाध्यक्ष आदि को इस मामले की निष्पक्ष जांच करानी चाहिए। क्योंकि प्रदेश के सीएम कई बार दोहरा चुके हैं कि गलत काम करने वालों को पर्दाफाश किया जाए। कच्ची कॉलोनियां काटने वालों की कार्यप्रणाली उजागर हो। दूसरी तरफ अगर शासन हित में सरकारी निर्देशों के अनुसार अवैध निर्माण और कच्ची कॉलोनियों को काटने वालों को सार्वजनिक करने वालों को इस प्रकार फंसाया जाएगा तो फिर सीएम की भावना के तहत सरकारी नीति के विपरीत कार्यांे को कैसे रोक पाएगी सरकार।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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