asd काली नदी के लिए सफाई अभियान तो चले सरकार ऐसा इंतजाम करे कि दोबारा गंदगी ना हो तो करोड़ों के खर्च होने का दुख किसी को नहीं होगा

काली नदी के लिए सफाई अभियान तो चले सरकार ऐसा इंतजाम करे कि दोबारा गंदगी ना हो तो करोड़ों के खर्च होने का दुख किसी को नहीं होगा

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हर वर्ष बारिश के दौरान काली नदी का जलस्तर बढ़ जाने और फसलांे के जलमग्न हो जाने से होने वाले नुकसानों से 60 गावों के किसानों को फसल बर्बादी से राहत मिलेगी यह अच्छी बात है। 96 करोड़ रूपये से बुलंदशहर से लेकर मेरठ हापुड़ मुजफरनगर तक काली नदी की सफाई का काम होने की खबर के अनुसार खतौली में विटलैंड बनाने का काम किया जा रहा है। काली नदी को अतिक्रमण मुक्त कराते हुए मानसून के दौरान नदी किनारे करीब ढाई लाख पौधे लगाने की बात की जा रही है। मगर सबसे बड़ी बात यह है कि काली नदी की सफाई का अभियान पहली बार शुरू नहीं हुआ है। एक दो साल में इसकी सफाई की चर्चाएं सुनने को मिलती रही है। कुछ वर्ष पूर्व मेरठ में युद्धस्तर पर काली नदी की सफाई की गई थी जिसके उदघाटन में फिल्म अभिनेता नवाजुददीन भी शामिल हुए थे। इस पर उस समय भी जनप्रतिनिधियेां और अफसरों ने बड़े दावे इसके किनारे बसे ग्रामीणों व पर्यावरण को लाभ पहुचाने के किए थे। बड़ी धनराशि भी इस पर खर्च हुई थी और जैसा उस समय चर्चा थी जनपद के कागज मिल और चीनी मिलों के मालिकों से एक एक लाख रूपये अनकहे रूप में जेनरेटर के डीजल के लिए लिए जाने की बात सामने आई थी। नुकसान से मुक्ति मिलने की संभावना थी इसलिए सब बातें दब गई। जानकार कहते हैं सफाई अभियान भी चलते हैं। करोड़ों अरबों का बजट खर्च होता है। मगर पता नहीं वो क्या कारण है कि यह फिर कुछ दिनों बाद पुरानी स्थिति में पहुंच जाती है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है इससे पूर्व जिलाधिकारियों और सिंचाई विभाग के अफसरों को ध्यान देना होगा। नागरिकों के अनुसार नदी किनारे जिन फैक्टियों के कारण इनमें प्रदूषण बढ़ता है और केंद्र के नियमानुसार इन पर कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन नदी के बीच बीच में जो रॉक बनाई जाती है जब तक उनसे नदी को छुटकारा नहीं दिलाया जाएगा तब तक ऐसे अभियानों का कोई मतलब नजर नहीं आता है। यह जरूरी है कि टैक्स का करोड़ों रूपये की बर्बादी ना हो। सफाई अभियान कम से कम एक दशक तक कायम रहे। हर दूसरे साल यह सफाई अभियान कब तक चलते रहेंगे। इसे ध्यान रखते हुए इसके किनारे फैक्ट्रियां का गंदा पानी ना छोड़ पाएं और साफ पानी नदी में बहाए। पर्यावरण संतुलन के लिए यह जरूरी है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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