asd कब तक प्रताड़ित होते रहेंगे समलैंगिक प्रवृति के लोग, सरकार इनके बारे में करे फैसला

कब तक प्रताड़ित होते रहेंगे समलैंगिक प्रवृति के लोग, सरकार इनके बारे में करे फैसला

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समलैंगिक शब्द अपने समाज में ज्यादातर लोग सुनना भी पसंद नहीं करते हैं। संविधान में भी इन शब्दों को मान्यता नहीं दी गई है और भगवान द्वारा की गई व्यवस्था के चलते इस प्रवृति को पसंद भी नहीं किया जाता है। लेकिन जिस तरह से समलैंगिक संबंधों के चलते आपस में शादी की बढ़ रही प्रथा और इसे लेकर होने वाले आंदोलनों तथा कई देशों में समलैंिगकों के उच्च पदों पर आसीन होने व अदालत में चल रहे मामलों को ध्यान में रखते हुए संविधान में मानवीय अधिकारों में भले ही इस बिंदु को जगह ना मिली हो लेकिन मुझे लगता है कि अब सरकार को इस मामले में गंभीरता से एक स्पष्ट निर्णय लेना होगा।
क्योंकि आए दिन इस व्यवस्था को लेकर थानों में हंगामें परिवारों में मारपीट और लड़के लड़कियों की घर से भागने की प्रवति तथा की जा रही आत्महत्या और हत्याओं को ध्यान में रखकर यह सोचना होगा कि जिन परिवारों के बच्चे इस शौक से ग्रसित होकर सफलता ना मिलने पर आत्महत्या करने लगे हैं उसे उचित नहीं कहा जा सकता।
अभी तक पूर्व वर्ष पूर्व दिल्ली के प्रमुख शिक्षा संस्थान के प्रोफेसर ने अपने लड़के की शादी के लिए लड़का भी ढूंढा और उनकी शादी भी कराई बताई जाती है। लड़कियों को साथ रहने की अनुमति भी मिलने लगी है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए मेरा मानना है कि मानव जीवन बहुमूल्य है और भगवान की अनमोल देन है। सैंकड़ों वर्षों बाद मानव योनि में जन्म मिलता है। अगर देखें तो मानव जीवन को बचाना भी बड़ी बात है। इस संदर्भ में अब हर उस संस्था को सोचना होगा जो इस बारे में कुछ करने में सक्षम है। मुझे लगता है कि इस समस्या के समाधान के लिए सामाजिक शैक्षिक धार्मिक और अन्य संस्थाओं को एक माहौल बनाना होगा क्योंकि जब भी ऐसे मुददे उठते हैं तो कुछ लोगों के यह कहने से कि इससे संबंध नियमों को मान्यता नहीं मिलनी चाहिए इससे समस्या का हल हो पाना संभव नहीं हैं क्योंकि जिस परिवार का कोई बिछड़ता है उसका दुख वही जान सकता है। वैसे तो मैं भी इस व्यवस्था के पक्ष में नहीं हूं लेकिन मेरे सोचने से कुछ होने वाला नहीं है। अब समाज में बदलावों को हम स्वीकार करते हैं। केंद्र सरकार ने कुछ पुराने कानूनों को बदला है और कुछ को रद किया है। जिसे देखकर कह सकते हैं कि अब बदलाव के निर्णय लेना वक्त की सबसे बड़ी मांग बन गई है इसलिए लोकसभा में मेरा विचार है कि इस विषय पर सांसदों को आपसी विचार कर ठोस निर्णय जल्द लेना चाहिए।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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