सोशल मीडिया का जैसे जैसे प्रचलन बढ़ रहा है वैसे वैसे आए दिन मीडिया में पढ़ने सुनने व देखने को मिलता है कि फला विभाग का अधिकारी व कर्मचारी रिश्वत लेते धरा गया या विभागीय अफसर का लापरवाही के लिए हुआ निलंबन। ऐसे ही अनेकों कारणों से सरकार की नीति के विरूद्ध या आम आदमी को परेशान करने में लगे सरकारी कर्मचारियों व अफसरों के खिलाफ जब ऐसे खबरें छपती है तो नागरिकों में खुशी का अहसास अपने आप होने लगता है क्योंकि उन्हें लगता है कि उत्पीड़न करने में जो इनकी भूमिका थी भगवान ने उसी का फल इन्हें दिया।
लेकिन जब कुछ समय बाद इन लापरवाह इंजीनियर जेई व अन्य अफसरों पर कार्रवाई पर अदालत द्वारा रोक लगाई जाती है या सुनने को मिलता है कि फलां निलंबित अधिकारी दस साल बाद हुआ बहाल विभाग को इस दौरान की पूरी तनख्वाह देनी होगी तो बहुत दुख होता है कि ऐसे भ्रष्ट अफसरों को यह राहत कैसे मिल रही है जो हमेशा नागरिकों का उत्पीड़न विभिन्न प्रकार से करते रहे। शायद यही कारण भी है कि रिश्वत लेते पकड़े जाने अथवा निलंबन की खबरें भी खूब दिखाई देने लगी है। और जिनके खिलाफ कार्रवाई होती है वो भी ज्यादा चिंतित नजर नहीं आते है ऐसा क्यों।
प्रधानमंत्री और प्रदेश की सरकारें जिस समय लापरवाह कामचोर अधिकारियों को समय से पहले सेवानिवृत कर रहे हैं। ऐसे में यह विभिन्न रूपों में दागी कमीज के बटन खोल शान से कैसे घूमते हैं। इस बारे में जब सोच विचार किया गया तो सामने आया कि कहीं शिकायतकर्ताओं को शांत करने तो कही वर्चस्व कायम करने अथवा अन्य कारणों से कार्रवाई तो की जाती है लेकिन दोषी को सजा मिल सके ऐसी पुख्ता कार्रवाई नहीं की जाती। यही आरोप की पत्रावलियों में कमी दोषियों को बचाने का माध्यम बन जाती है। आम आदमी की इस बात में भी दम है कि विकास प्राधिकरणों पावर कॉरपोरेशन आदि में तैनात कुछ इंजीनियरों के विरूद्ध कार्रवाई नहीं हो पाती। वो शासन की नीति को तोड़कर धन भी खूब कमाते हैं विभिन्न रास्तों से लेकिन सेवानिवृत होने तक तो विभाग के दम पर और बाद में अवैध कमाई के दम पर पूरा जीवन मौज करते हैं। जबकि जो ईमानदार अफसर होते हैं वो इन्हें देखकर हीनभावना का शिकार हो जाते हैं और घरों में उनका झगड़ा हमेशा नजर आता है। केंद्र व प्रदेश सरकारों के मंत्री और अधिकारी अगर इस बारे में ध्यान देेकर अफसरों की लगाम कसें तो यह विश्वास से कहा जा सकता है कि रिश्वतखोर व कामचोर आसानी से बहाल नहीं हो पाएंगे। और ना ही सरकारी पैसे के दम पर मौज मस्ती कर पाएंगे। इस बारे में मेरा मानना है जिस विभाग का दागी कर्मचारी हो या अफसर बिना किसी कार्रवाई के आरोपों के निकल जाता है उस विभाग के उच्चाधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाए। क्योंकि इनका दोष मुक्त होना सरकार की नीति का उल्लंघन और आम आदमी के हितों पर कुठाराघात होता है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
रिश्वतखोर व कामचोर कैसे हो जाते हैं बरी, क्यों लग जाती है उनके निलंबन पर रोक
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