प्रयागराज 17 अगस्त। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि हिंदू दत्तक ग्रहण व भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 के तहत अविवाहित बेटी का भरण-पोषण पिता का वैधानिक दायित्व है। बेटी यदि अपनी कमाई या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो तो गुजारा भत्ता देने के लिए पिता बाध्य है। इस आदेश के साथ न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम ने परिवार अदालत हाथरस के आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका खारिज कर दी है।
प्रधान न्यायाधीश, परिवार अदालत ने अवधेश सिंह को उसकी पत्नी को 25 हजार रुपये तथा बेटी (कुमारी गौरी नंदिनी) को 20 हजार रुपये प्रति माह भरण-पोषण प्रदान करने का निर्देश दिया था। पत्नी और बेटी ने भरण-पोषण राशि बढ़ाने की मांग करते हुए एक और याचिका दायर की थी। विवाह 1992 में हुआ था। पत्नी का कहना है कि उसके साथ ससुराल में अच्छा व्यवहार नहीं हुआ। फरवरी 2009 में उसे बेटी के साथ निकाल दिया गया।
अवधेश सिंह का कहना है कि पुत्री का जन्म 25 जून, 2005 को हुआ था। वह परिवार अदालत के 26 सितंबर, 2023 के आदेश से पूर्व 25 जून 2023 को वयस्क हो गई है और किसी मानसिक या शारीरिक असामान्यता से ग्रस्त नहीं है। ऐसे में वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं है। प्रश्न उठा कि क्या अविवाहित बालिग पुत्री, पिता से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है?
कोर्ट ने कहा कि कानून से पहले शास्त्रीय हिंदू कानून के तहत हिंदू पुरुष को हमेशा अपने वृद्ध माता-पिता, पत्नी और बच्चे का भरण-पोषण करने के लिए नैतिक और कानूनी रूप से उत्तरदायी माना जाता था। हिंदू कानून ने हमेशा अविवाहित बेटी के भरण-पोषण के लिए पिता के दायित्व को मान्यता दी है। धारा 20(3) के तहत किसी हिंदू का यह वैधानिक दायित्व है कि वह अपनी अविवाहित बेटी का भरण-पोषण करे, जो अपनी कमाई या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण नहीं कर सकती।