राज्यों को जारी 174 पेज की रिपोर्ट में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नडडा ने कहा कि भारत में पिछले कई वर्षों से अनजान चोटों की वजह से हर साल लगभग चार लाख जिंदगियां खत्म हो रही है। इससे संबंध एक खबर के अनुसार इनमें प्रमुख सड़क यातायात चोटें पानी में डूबना आग में झुलसना और उंचाई से गिरना भी शामिल हैं। 2030 तक राज्य सरकारों के साथ मिलकर इस आंकड़े को तीस फीसदी तक कम लाने का लक्ष्य सरकार द्वारा रखा गया है। इसके लिए सभी से सहयोग भी लिए जाने की बात भी सामने आई है। इस खबर से पता चलता है कि हमारी सरकार मानव हित और नागरिकों की जान बचाने के लिए कितनी मेहनत कर रही है। लेकिन दूसरी ओर डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर छठा व्यक्ति मानसिक बीमारी से ग्रस्त है और हर चालीस सेंकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या कर रहा है। बीते दिवस मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर इस मामले की रोकथाम और जागरूकता के लिए जगह जगह अभियान चलाए गए और गोष्ठियां भी आयोजित की गई। बताते हैं कि डिप्रेशन के शिकार सबसे ज्यादा हमारे युवा ही होते हैं। और इसी से पीड़ित होेकर वो कुछ भी कर गुजरने में समय नहीं लगाते। इसके कई कारण हो सकते हैं।
गत दिवस एक टेªवलिंग एजेंसी का मैनेजर अपनी बात ना सुने जाने से उत्पीड़ित होकर पेट्रोल छिड़ककर आत्महत्या की कोशिश करने लगा। तो डायरेक्टर पद के फार्मों की बिक्री के दौरान फार्म ना मिलने से एक व्यक्ति और उसके समर्थक पानी की टंकी पर चढ़ गए। यह बात विश्वास से कही जा सकती है कि अगर मन में शांति और तनाव ना हो तो कोई भी व्यक्ति इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देने की कोशिश नहीं करेगा। अब सवाल उठता है कि मानसिक शांति कैसे मिले। आए दिन आमदनी के स्त्रोत कम हो रहे हैं। दावों के बावजूद भी युवाओं को नौकरियां नहीं मिल पा रही है। रोजगार भी उतने पैदा नहीं हो रहे जितनी युवाओं में बेरोजगारी बढ़ रही है। और भी इन्हीं कारणों से परिवार में उत्पन्न आर्थिक तंगी विभिन्न मनमुटाव और तनाव का कारण बन रही है। ऐसी परिस्थितियों में जब दिमाग सही प्रकार से काम नहीं करता तो डूबने और सड़क हादसे आगजनी और उंचाई से गिरने की घटना से इनकार नहीं किया जा सकता है। मेरा मानना है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा जिन अनजान मौतों को रोकने के लिए इतने प्रयास किए जा रहे हैं उसके संग आम आदमी में मानसिक तनाव ना बढ़े और वो डिप्रेशन का शिकार होकर दुर्घटना ना कर बैठे या उसका शिकार ना बन जाए इस बात को दृष्टिगत रख नडडा जी राज्य सरकारों के सहयोग से जो नीति बनाई जा रही है मेरा मानना है कि उसमें सड़क परिवहन रोजगार कानून और गृह व खाद्य मंत्रालयों को जोड़कर एक समूह तैयार किया जाए जो अनजान मौतों के साथ साथ सड़क दुर्घटनाओं से जो मौतें हो रही है और तनाव के चलते जो आत्महत्या हो रही है यह मुख्य रूप से स्वास्थ्य मंत्रालय से ही संबंध है। और बाकी मंत्रालयों की कार्य प्रणाली के चलते अन्य प्रकार की आत्महत्या के लिए आम आदमी प्रेरित हो रहा है और हमारे छात्र व युवा ऐसे ही कुछ कारणों से आत्महत्या करने को शायद मजबूर नजर आते है।
नडडा जी आपके प्रयास सराहनीय है लेकिन यह सिर्फ कागजों पर उतरकर आंकड़ेबाजी तक सीमित ना रह जाएं यह सरकार को ध्यान रखना होगा। स्वास्थ्य विभाग को एक वैचारिक अभियान चलाकर अनजान मौतों के अलावा आत्महत्याएं और दुर्घटनाएं हो रही है उनकी जड़ों तक जाकर यह पता करना होगा कि इनके पीछे क्या कारण है। जब तक यह पता नहीं किया जाता तब तक मुझे लगता है कि अनजान मौतें कम होने वाली नहीं है। क्योंकि यह सब तनाव बढ़ने के चलते ही होती है। कहीं ना कहीं ऐसी घटनाओं में एक ही प्रकार के तार जुड़े होते हैं। इसलिए सबसे पहले मानसिक तनाव के मुख्य कारणों की खोज की जाए इसके लिए विचार गोष्ठियां आयोजित कर नागरिकों से सुझाव मांगे जा सकते हैं।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
स्वास्थ्य मंत्री जी डिप्रेशन और तनाव समाप्त होने से ही रूक सकती है अनजान चोटों से मौतें और युवाओं द्वारा की जाने वाली आत्महत्याएं
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