नई दिल्ली 15 जुलाई। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि सोशल मीडिया पर मौजूद विभाजनकारी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना होगा। लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल्य पता होना चाहिए और स्व-नियमन का पालन करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने पश्चिम बंगाल के वजाहत खान की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी तरह का प्रतिबंध लगाए बगैर सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट को नियंत्रित करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने पर विचार कर रहा है। वजाहत खान ने अपनी याचिका में सोशल मीडिया पर कथित रूप से हिंदू देवता के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोप में अपने खिलाफ पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में दर्ज आपराधिक मुकदमे की सुनवाई एकसाथ कराने की मांग की। ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कथित तौर पर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करने के मामले में वजाहत खान की शिकायत पर ही, कानून की छात्रा शर्मिष्ठा पनोली को कोलकाता पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
हमारा मतलब सेंसरशिप लगाना नहीं है
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का महत्व समझना चाहिए।
इसका उल्लंघन होने पर राज्य कदम उठा सकता है क्योंकि कोई नहीं चाहता कि राज्य हस्तक्षेप करे। पीठ ने यह स्पष्ट किया कि हमारा मतलब सेंसरशिप लगाना नहीं है, लेकिन समाज में भाईचारे, धर्मनिरपेक्षता और व्यक्तिगत गरिमा के हित में समुचित और जरूरी कदम उठाने होंगे।
पीठ ने कहा कि हम यह सिर्फ इस याचिकाकर्ता (खान) के बारे में बात नहीं कर रहे हैं, हमें याचिकाकर्ता से आगे जाकर भी इस पर विचार करना होगा। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि वह सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट की निगरानी के लिए दिशानिर्देश तैयार करने पर विचार कर रही है।