केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी द्वारा गत दिनों राज्यसभा में जानकारी दी गई कि बैंकों ने पिछले पांच वित्तीय वर्षों में 9.90 लाख करोड़ रूपये के ऋण माफ किए। यह किस पर थे और क्यों माफ किए गए यह तो एक अलग विषय है लेकिन यह पक्का है कि किसी ना किसी रूप में इसका आर्थिक भार उस आदमी पर जरूर पड़ रहा है जो रोजमर्रा कुंआ खोदने और पानी पीने की कहावत के समान दिन रात मेहनत कर दो समय की रोटी जुटाने के प्रयास करता है। और सरकार द्वारा विभिन्न नामों पर टैक्स के रूप में उससे जो वसूली होती है उसने मध्यम और गरीब दर्जे के व्यक्ति की रीढ़ की हडडी कमजोर कर के रख दी है क्योंकि जो ऋण माफ किए गए हैं उनकी भरपाई के लिए टैक्स बढ़ेगे उद्योगपति और व्यापारी अपने सामान की कीमत बढ़ाएंगे। मेरा मानना है कि भले ही यह ऋण जनहित में माफ किए गए हो लेकिन यह मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की व्यवस्था सरकार समाप्त करें क्योंकि वर्तमान हालात में जब परिवार को रोटी खिलाने के संघर्ष में देशवासी परेशान है ऐसे में कुछ लोगों की सुविधा के लिए ऋण माफी उचित नहीं कही जा सकती। अगर सरकार की निगाह में कुछ लोग परेशान है तो वो उन्हें काम दे और ऋण भी दे मगर उससे पहले जिसे कर्ज दिया जा रहा हे उसकी मंशा सोच और योजना की विस्तार से समीक्षा हो सिर्फ कुछ लोगों की संस्तुति से कर्ज बांट देना किसी के भी हित में नही है। एक खबर के अनुसार बैंकों ने पिछले पांच वित्तीय वर्षों में 9.90 लाख करोड़ रुपये के ऋण माफ किए हैं। सरकार ने गत मंगलवार को राज्यसभा में यह जानकारी दी। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने एक लिखित उत्तर में बताया कि 2023-24 के दौरान बैंकों की ओर से माफ ऋण 1.70 लाख करोड़ रुपये थे, जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह 2.08 लाख करोड़ रुपये था।
चौधरी का कहना है कि 2019-20 के दौरान सबसे अधिक 2.34 लाख करोड़ माफ किए गए, जो अगले वर्ष घटकर 2.02 लाख करोड़ रुपये और 2021-22 में 1.74 लाख करोड़ रह गए। उन्होंने कहा कि आरबीआई के दिशा-निर्देशों और बैंकों के बोर्ड की ओर से अनुमोदित नीति के अनुसार एनपीए को संबंधित बैंक की बैलेंस-शीट से राइट-ऑफ के माध्यम से हटा दिया जाता है। चौधरी ने बताया कि 9.9 लाख करोड़ रुपये के राइट-ऑफ के मुकाबले, वसूली 1.84 लाख करोड़ रुपये की रही, जो पिछले 5 वर्षों में कुल राइट-ऑफ का सिर्फ 18 प्रतिशत है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार व आरबीआई यूपीआई की वैश्विक पहुंच बढ़ाने के लिए विभिन्न पहल कर रहे हैं। अभी यह सात देशों भूटान, सिंगापुर, यूएई, फ्रांस, मॉरीशस, श्रीलंका व नेपाल में उपलब्ध है।
इसलिए सरकार भविष्य में कर्ज देने से पहले यह समीक्षा जरूर कराए कि वसूली कैसे होगी और मेरा मानना है कि जो कर्ज दिया जा रहा है उसकी एवज में कुछ ऐसी व्यवस्था जरूर करानी चाहिए जो कर्ज लेने वाला उसे मारने की ना सोचे। दोषी बैंक कर्मियों के खिलाफ भी होनी चाहिए कार्रवाई क्योंकि अगर ऋण मरता है तो वो भी दोषी जरूर होते हैं।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सरकार दे ध्यान: 9.90 लाख करोड़ का ऋण माफ करने की आवश्यकता क्यों पड़ी, मध्यम दर्जे का व्यक्ति इस बोझ को झेलने की स्थिति में नही है
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