सभी धर्मो को सम्मान देने और सदभाव रखने वाले अपने देश में सड़क किनारे बने धार्मिक स्थलों को लेकर बड़े विवाद और हंगामे पूर्व में हो चुके है। न्यायालय और सरकार ने भी इस कारण सरकारी जमीन सहित निजी जमीन पर भी बिना अनुमति इनके निर्माण को लेकर आदेश दिए गए हैं कि किसी भी धार्मिक स्थल का निर्माण बिना सक्षम अधिकारियों की स्वीकृति के नहीं होना चाहिए।
बीती 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह हुआ जिसमें पूरे देश ने भाग लिया और राष्टीय एकता का पर्व बन गया क्योंकि सभी जातियों और वर्गों के लोगों ने इसमें सहभागिता की। लेकिन यह विषय अब विकराल होता जा रहा है कि कुछ लोगों की राजनीतिक की अपनी भूख और अपने आपको धर्म का ठेकेदार बताने की लालसा के चलते अपने जैसे लोगों का समूह बनाकर नाले किनारे या पार्कों में बिना अनुमति धार्मिक स्थल का निर्माण करने की बढ़ती प्रवृति कई परेशानियों का कारण बन रही है। पिछले दिनों इस बारे में खूब खबरें अखबारों में पढ़ने को मिली कि ऐसे कार्य में लगे कुछ लोग आमदनी बढ़ाकर आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए पार्कों और नालों के किनारे अब धार्मिक स्थलों का निर्माण कर रहे हैं। अभी तो यह सिर्फ चर्चाओं में है। लेकिन कुछ नागरिकों का कहना है कि अगर जल्दी ही जिम्मेदार हुक्मरानों ने ध्यान नहीं दिया तो शहरों में कम होते मैदान और खेलने के स्थानों के साथ साथ पार्क भी दिखाई देने बंद हो जाएंगे। क्योंकि पूर्व में सरकारें गली मोहल्लों में सामाजिक आयोजनों के लिए चौक के रूप में कुछ जगह छोड़ती थी जो अब घिरती जा रही है। कुछ का कहना है कि कुछ लोागें ने खत्ते घेरकर मकान दुकान बना लिए है। इन पर रोक लगनी चाहिए और सरकारी अधिकारियों को अपने क्षेत्रों में सर्वे कराकर शासन को रिपोर्ट भेजकर उन्हें इस प्रकार हटवाने की अनुमति लेनी चाहिए कि कोई बवाल ना हो और नए निर्माणों पर तो पूर्ण रोक लगनी ही चाहिए क्योंकि कई लोगों ने कुओं और तालाबों को पाटकर रहने और व्यापार करने की जगह बना ली है और अफसरों की चुप्पी से यह प्रवृति बढ़ती जा रही है। इसलिए अब लोग इसमें रूचि ले रहे हैं जिस कारण प्रतिष्ठित कॉलोनियों के पार्क में धार्मिक स्थल बनाने की प्रवृति बढ़ती जा रही है।
सरकार दे ध्यान ! नालों के किनारे सरकारी भूमि और पार्को में धार्मिक स्थलों का निर्माण है चिंता का विषय
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