28-29 जनवरी की रात्रि को महाकुंभ में मची भगदड़ के लिए जितने मुंह उतनी ही बातें की जा रही हैं। लेकिन मुझे लगता है कि एक तो 144 वर्ष का संयोग जिसे पुण्य स्नान का अवसर कहा जा रहा है दूसरे पहली बार तमाम बीबीआई अतिथियों को न्यौता देकर बुलाये जाने और सोशल मीडिया पर इसकी हो रही अच्छी कवरेज तथा प्रशंसा व व्यवस्थाओं की उपलब्धियां गिनाये जाने के फलस्वरूप बेहिसाब भीड़ जुटी और सब जानते है कि ऐसे रैले में कब क्या हो जाए कोई कुछ नहीं कह सकता। यह तो परम पिता परमात्मा का आशीर्वाद कह सकते है कि 60 के लगभग श्रद्धालुओं को परम गति प्राप्त हुई और वो अपनों से बिछड़कर भगवान के चरणों में पहुंच गये।
लेकिन ऐसा पहली बार हुआ हो यह बात नहीं है। बताते है कि आजादी के बाद 3 फरवरी 1954 को भी वर्तमान में प्रयागराज उस समय इलाहाबाद में मौनी अमावस्या के मौके पर आजाद भारत के पहले कुंभ में जो भगदड़ मची थी उसमें 8 सौ के लगभग लोगों की मौत हुई थी। तब भी इसके लिए कई कारण गिनाये गये थे और आज भी वहीं स्थिति है। इसके बाद 1986 में उस समय यूपी और अब उत्तराखंड की धार्मिक नगरी हरिद्वार में लगे कुंभ में 200 श्रद्धालुओं ने दम तोड़ दिया था। वर्ष 2000 के बाद मंदिरों धार्मिक आयोजनों आदि में मची भगदड़ की कुछ प्रमुख घटनाऐं विभिन्न माध्यमों के अनुसार इस प्रकार बताई जाती है।
-दो जुलाई 2024-उत्तर प्रदेश के हाथरस में स्वयंभू भोले बाबा उर्फ नारायण साकार हरि द्वारा आयोजित सत्संग में भगदड़ मचने से महिलाओं और बच्चों सहित 100 से अधिक लोग मारे गए।
-31 मार्च, 2023- इंदौर शहर के एक मंदिर में रामनवमी के अवसर पर आयोजित हवन कार्यक्रम के दौरान एक प्राचीन बावड़ी या कुएं के ऊपर बने स्लैब के ढह जाने से कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई।
-एक जनवरी, 2022- जम्मू-कश्मीर में प्रसिद्ध माता वैष्णो देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण मची भगदड़ में कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई और एक दर्जन से अधिक घायल हो गए।
-14 जुलाई, 2015- आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में पुष्करम उत्सव के पहले दिन गोदावरी नदी के तट पर एक प्रमुख स्नान स्थल पर भगदड़ मचने से 27 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई और 20 अन्य घायल हो गए।
-तीन अक्टूबर, 2014- दशहरा समारोह समाप्त होने के तुरंत बाद पटना के गांधी मैदान में भगदड़ मचने से 32 लोग मारे गए और 26 अन्य जख्मी हो गए।
-13 अक्टूबर, 2013- मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 115 लोग मारे गए और 100 से ज़्यादा घायल हो गए। भगदड़ की शुरुआत भी अफवाह के कारण हुई कि श्रद्धालु जिस नदी के पुल को पार कर रहे थे, वह टूटने वाला है।
2013 में ही 10 फरवरी को उप्र के प्रयागराज में आयोजित कुंभ के दौरान जो भगदड़ रेलवे स्टेशन पर एक फुट ब्रिज ढहने से मची थी उसमें भी 42 लोगों ने दम तोड़ा था और 45 घायल हुए थे।
-19 नवम्बर, 2012- पटना में गंगा नदी के तट पर अदालत घाट पर छठ पूजा के दौरान एक अस्थायी पुल के ढह जाने से मची भगदड़ में लगभग 20 लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।
– आठ नवम्बर, 2011- हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर हर-की-पौड़ी घाट पर भगदड़ में कम से कम 20 लोग मारे गए।
-14 जनवरी 2011- केरल के इडुक्की जिले के पुलमेडु में एक जीप के तीर्थयात्रियों को टक्कर मार देने के कारण मची भगदड़ में सबरीमला के कम से कम 104 श्रद्धालु मारे गए और 40 से अधिक घायल हो गए।
-चार मार्च, 2010- उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में भगदड़ में लगभग 63 लोग मारे गए। लोग स्वयंभू बाबा से मुफ्त कपड़े और भोजन लेने के लिए एकत्र हुए थे।
-30 सितम्बर, 2008- राजस्थान के जोधपुर शहर में चामुंडा देवी मंदिर में बम विस्फोट की अफवाह के कारण मची भगदड़ में लगभग 250 श्रद्धालु मारे गए और 60 से अधिक घायल हो गए।
-तीन अगस्त, 2008- हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी मंदिर में चट्टान खिसकने की अफवाह के कारण मची भगदड़ में 162 लोग मारे गए, 47 घायल हुए।
-25 जनवरी, 2005- महाराष्ट्र के सतारा जिले में मंधारदेवी मंदिर में वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान 340 से अधिक श्रद्धालुओं की कुचल जाने की वजह से मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए। यह दुर्घटना उस समय घटित हुई जब कुछ श्रद्धालुओं द्वारा नारियल तोड़ने के कारण सीढ़ियों पर फिसलन हो गई और लोग गिर गए।
-27 अगस्त, 2003- महाराष्ट्र के नासिक जिले में कुंभ मेले में पवित्र स्नान के दौरान भगदड़ में 39 लोग मारे गए और लगभग 140 घायल हो गए।
यह हादसे बताते है कि ऐसे अनेक मौके पर जब कारण कोई भी रहा हो बेतहासा भीड़ जुटी और अफवाहों से इंतजामों के बावजूद भगदड़ की घटनाऐं हुई और उनमें कुछ नागरिकों को अपनी जानों से हाथ धोना पड़ा। ऐसा ही प्रयागराज महाकुंभ को 28-29 की रात में हुई घटना में लगता है। बस एक बात जिसका ध्यान सरकार को देना चाहिए वो यह है कि जिस प्रकार से पूर्व में कुंभ के मुख्य स्नानों के दौरान वीआईपी के वहां आने पर रोक लगाई जाती थी उसी प्रकार भी आगे भी लगाई जाए क्योंकि 1954 की भगदड़ रही हो या 28-29 जनवरी 2025 की कहीं न कहीं बेताहासा भीड़ और वीआईपी का आना ही पूर्ण व्यवस्थाओं के बाद भी इस घटना के लिए जिम्मेदार जो नागरिकों के द्वारा ठहराया जा रहा है मुझे भी सही लगता है। मेरा मानना है कि सरकार ऐसे आयोजनों को शांति पूर्ण तरीके संपन्न कराने के लिए मुख्य स्नानों पर वीआईपी का आना प्रतिबंधित करने के साथ ही देशभर में होने वाले ऐसे आयोजन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर बनाये मेला मंत्रालय व कुंभ प्राधिकरण जिसका अलग मंत्रालय हो और बजट।
विभिन्न माध्यमों से संकलन प्रस्तुतिकर्ता: अंकित बिश्नोेई संपादक पत्रकार
सरकार बनाये मेला कुंभ मंत्रालय व प्राधिकरण! आजाद भारत के पहले कुंभ 1954 में मची भगदड़ में 8 सौ 1986 में 200 ने गंवाई थी जान, भीड़ और वीआईपीयों की उपस्थिति ही ज्यादातर घटनाओं के लिए हो सकती है जिम्मेदार
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