कहते है अपने देश में साल के 365 दिन कोई न कोई त्योहार अथवा धार्मिक पर्व होते है। और ज्यादातर लोग कम या ज्यादा इसे मनाते भी है। लेकिन भले ही इनमें मातृशक्ति बराबर की हिस्सेदारी निभाती हो मगर ज्यादातर होते है पुरूषों के लिए ही ऐसा क्यों? जबकि दुनिया की आधी आबादी के लगभग महिलाओं की है। और अपने लोकत्रंत के सिरमोर तथा सबकी भावनाओं का आदर करने वाले देश में हर किसी को अपनी बात कहने और उसे मानने का अधिकार है। और जब सरकार भी मानवीय भावनाओं को आदर देती है। तो फिर अपने यहां पूज्यनीय मातृशक्ति के एक मात्र साल के त्योहार हरियाली तीज पर सरकार ने आजतक अवकाश घोषित क्यों नहीं किया। यह विषय सोचनीय भी है और अब निर्णय लेने का भी।
हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर पुरूषों के साथ चल रही और काबलियत के मामले में सबसे सर्वश्रेष्ठ हमारी माता बहन बेटियां पूरे वर्ष परिवार के पुरूषों के लिए ही त्योहार तो मनाती ही है व्रत भी रखती है और कुछ तो 24 घंटे का निर्जल उपवास भी रखती है। अगर देखे तो करवाचौथ उनके द्वारा पति की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है तो भाईदोज भाईयों की लंबी उम्र अच्छे स्वास्थ और संपन्नता के लिए मनाती है तथा अहोई आठे अपने बेटों की लंबी उम्र और हर तरह की खुशहाली के लिए इनके द्वारा मनाई जाती है। बाकी रहा होली दिवाली दशहरा और कुछ ऐसे ही त्योहार वो तो सब मिलकर मनाते ही है।
मेरा मानना है कि जब हम हर तरह से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं का नारा देकर अपनी बच्चियों को प्रोत्साहन दे रहे है राजनीति में उन्हें बराबर का हिस्सा देने की मांग उठ रही है और सभी राजनीतिक दल कम या ज्यादा उन्हें प्रतिनिधित्व भी दे रहे है। कहने का आश्य सिर्फ इतना है कि जब महिला शक्ति अपने परिवार के पुरूषों के लिए सबकुछ करने के साथ साथ सबके साथ ही देश के हित में भी सोचती है और कई महिलाऐं तो वर्तमान में भी देश और प्रदेश की सर्वोच्च संस्था संसद व विधानसभा में पूरी मजबूती से राष्ट्र हित की बात कर रही है तो एक बात समझ से बाहर है कि आजतक हमने खुद उनके और महिला सम्मान और उत्थान की बात करने वाली मातृशक्ति हेतु महिलाओं की खुशियों से परिपूर्ण तीज के त्योहार पर अवकाश घोषित आजतक क्यों नहीं किया गया।
वैसे तो पूरे घर को हर तरीके से सुघड़ता के साथ चलाने में सक्षम अपने बच्चों को काबिल बनाकर सरलता से जीने का मार्ग दिखाने में अग्रणी पूजनीय मातृशक्ति को सलाह या सुझाव देने की तो कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन काल कोई सा भी रहा हो वक्त पड़ने पर हर मामले में महिलाऐं त्याग करने में सबसे आगे रही है। घर में अगर भोजन कम है तो पहले बच्चों और पति को खिलाती है और त्योहार पर कुछ खरीदना है और बजट कम है तो ज्यादातर स्वयं खुद न लेकर अन्य सदस्यों को प्राथमिकता देती है तो फिर आज तक यह सवाल समझ से बाहर है कि सबकुछ करने में समक्ष बड़े बड़े पदों पर बैठे हमारे जनप्रतिनिधियों द्वारा तीज पर अवकाश घोषित क्यों नहीं किया और कराया गया।
मेरा राजनीति में सक्रिय लोकसभा व राज्यसभा विधानसभा अथवा विधान परिषदों में जहां इस प्रकार के निर्णय लिये जाते है उनमें सक्रिय सभी दलों की सांसद विधायक राज्यसभा और विधानसभा परिषद की सदस्य महिलाओं से आग्रह है कि वो खुद इस संदर्भ में आवाज उठाये क्योकि जब सामने वाले को कुछ नजर नही आता है तो पात्र व्यक्तियों को यह बताने में नही चूकना चाहिए कि उनके भी कुछ अधिकार अथवा इच्छाऐं है और उन्हें इस सोच को ध्यान में रखते हुए तीज के अवकाश की घोषणा के लिए प्रयास करने चाहिए। और मेरा खासकर सभी जनप्रतिनिधियों से आग्रह है कि वो खुद आगे बढ़कर परिवार की मुखिया और हर परिस्थिति में उसे संभालकर रखने में समक्ष महिलाओं की इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए जितना जल्द हो सके हरियाली तीज पर सार्वजनिक अवकाश सरकारी कार्यालयों व स्कूल आदि में रखने की घोषणा करे। और मेरा तो मानना है कि देश के आदरणीय यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी जो हर क्षेत्र में महिलाओं को आदर सम्मान और उनके अधिकार दिलाने के लिए प्रयास करते है उन्हें खुद ही इस त्योहार पर अवकाश की घोषणा अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए माता बहनों के हित में कर एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
और वैसे भी आजकल यह नारा कई बार सुनने और पढ़ने को मिलता है कि जितनी जिसकी हिस्सेदारी उतनी उसकी साझेदारी को भी ध्यान में रखकर सोचे तो तीज का अवकाश तो महिलाओं का अधिकार भी है।
(प्रस्तुतिः अंकित बिश्नोई सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए के राष्ट्रीय महासचिव पूर्व सदस्य यूपी मजीठिया बोर्ड)
तीज पर सरकारी अवकाश हो घोषित, पुरूष समाज करे पहल
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