आज एक खबर पढ़ने को मिली कि मां गई जेल मासूम का क्या होगा। क्योंकि ससुराल वालों से तंग पत्नियां और अन्य घरेलू परेशानियेां के चलते अब सुसाइड नोट लिखकर आत्महत्या करने लगे हैं। और इसे मानसिक अवसाद कहें या साधनों के पीछे भागने की दौड़ या पश्चिमी सभ्यता पर चलने का परिणाम। जिस प्रकार पत्नी पति और पति पत्नियों को मार रहे हैं तो उनके छोटे बच्चे हैं तो उनका भविष्य जीवन और बचपन कठिनाईयों से भरा हो जाता है। मां बाप इसके चक्कर में हुए अंधेपन में बच्चों के बारे में सोचते नहीं तो ऐसे परिवारों के मासूम बच्चें आखिर कहां जाएं और इनका भविष्य कैसे सुधरे। मेरा मानना है कि ऐसे मासूमों के हित में नया कानून लाकर मां बाप के साथ जेल भेजने या रिश्तेदारों के यहां भेजने से अच्छा है निसंतान दंपतियों को ऐसे बच्चे गोद दिए जाएं और किसी रिश्तेदार के साथ बच्चे नहीं जाना चाहते तो उस पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए। अब जिस तरह सरकार और अदालत बुजुर्गों के बारे में निर्णय दे रहे हैं जिससे कई का जीवन सुखमय हुआ और कई की संपत्ति भी वापस हो गई। इसी प्रकार से बच्चो के बारे में निर्णय लिया जाए। अगर किसी बच्चे के पास मां बाप की संपत्ति आने का अवसर है तो उनके नाम एफडी कराई जाए और संपत्ति फिक्स कर दी जाए और बालिग होने पर उनके नाम चढ़वाया जाए। वक्त की मांग अब यह है कि अपराधी अभिभावकों के बच्चों के बारे में अदालत को सोचना होगा तभी इनका भविष्य सुधर सकता है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
अपराधी मां बाप के मासूम बच्चों के भविष्य हेतु सरकार और न्यायालय दे ध्यान
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