देश की जेलों में क्या क्या होता है और किस स्तर पर जाकर नियमों का उल्लंघन हो सकता है इसकी अगर गोपनीय रूप से जांच करा ली जाए तो ज्यादातर जेलों के अधिकारियों की नौकरी नागरिकों की सोच के अनुसार खतरें में पड़ सकती है। आज के एक समाचर पत्र में खबर छपी कि तिहाड़ प्रशासन ने कहा कि नियमों को नहीं मान रहे हैं केजरीवाल। कुछ जिज्ञासा बढ़ी तो खबर पढ़कर पता चला कि तिहाड़ जेल नंबर दो के अधीक्षक ने दिल्ली कारागार नियम 2018 के प्रावधान का हवाला दिया और दिल्ली के सीएम को पत्र लिखकर सलाह दी कि वो किसी गतिविधि से दूर रहे हैं अन्यथा उनके विशेषााधिकारों में कटौती की जाएगी। इसका कारण यह है कि अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल को सूचित किया कि उनके स्थान पर 15 अगस्त को अतिशी द्वारा तिरंगा फहराया जाएगा। इस पर जेल अधिकारियों ने दिल्ली कारागार नियम के तहत उन्हें एक प्रकार से यह चेतावनी दी कि हो सकता है कि जेलर नियमों के प्रति बड़े पाबंद हो लेकिन देश का स्वतंत्रता दिवस मनाने और उसे लेकर सुझाव दिया जाना जेल के नियमों का उल्लंघन कैसे हो गया और अब यह भी हो सकता है कि जिन नियमों की बात जेलर कर रहे हैं वो वर्तमान सरकार द्वारा खत्म ना कर दिए गए हों या उनमें बदलाव ना कर दिया गया हो। मैं ना केजरीवाल का समर्थक हूं और ना ही तिहाड़ जेल के अफसर का विरोधी। लेकिन स्वतंत्रता दिवस हो या अन्य कोई राष्ट्रीय दिवस अपने देश में उससे बड़ा कोई अवसर शायद नहीं होता। इनको मनाने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकारें भरपूर इंतजाम करती है। जिला प्रशासन द्वारा स्कूलों और संस्थाओं को पत्र लिखे जाते हैं तो सरकार भी अफसरों को निर्देश देती है। अब अगर दिल्ली के सीएम द्वारा कोई पत्र सामान्य रूप में लिखकर उपराज्यपाल को सूचित किया गया है तो यह इतना बड़ा अपराध तो नहीं हो सकता कि दिल्ली के सीएम को दिए गए विशेष अधिकारों में कटौती करने की चुनौती हो सकता हो यह जेलर की निगाह में ठीक हो मगर मुझे नहीं लगता कि राष्ट्रीय पर्व पर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए केजरीवाल ने जो पत्र लिखा उसे लेकर चेतावनी जारी की जानी चाहिए। अगर जेलर साहब को मिले अधिकारों और सुविधाओं की जांच हो गई तो पूर्व में जो देश की विभिन्न जेलों में पढ़ने को मिलता है उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि जेलर को अपनी कुसी बचाना भारी हो सकती है। सही गलत क्या है यह तो उपराज्यपाल या जागरूक ही जान सकते हैं। मैंने तो जो जनचर्चा में सुना उसे जनहित में पाठकों के सामने प्रस्तुत कर दिया। सही गलत का फैसला पाठक करें तो ज्यादा अच्छा है। अगर केजरीवाल को चेतावनी गलत है तो उपराज्यपाल को सूचित कर जेलर को राष्ट्रीय पर्व के बारे में सही स्थिति समझाने में पीछे नहीं रहना चाहिए।
आतिशी के झंड़ा फहराने पर बवाल क्यो?
मेरा मानना है कि संविधान में अगर व्यवस्था है तो आतिशी को ध्वजारोहण करने का पूर्ण अधिकार है। नियमों का ध्यान रखते हुए उन्हें ध्वज तो फहराना ही चाहिए। क्योंकि जहां तक बचपन से अब तक देखा व सुना है देश की अखंण्डता व राष्ट्र की एकता अथवा देश के संविधान का आदर करते हुए हर व्यक्ति जहां चाहे राष्ट्रीय पर्व पर ध्वज फहरा सकता है। तो आतिशी के ध्वज फहराने पर बवाल क्यों? मेरा मानना है कि कानून के जानकारों को आगे आकर इस संदर्भ में स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)