Date: 22/11/2024, Time:

दुनियाभर में शुरू हुआ गणपति उत्सव, लालबाग के राजा गणपति जगवंदन की स्थापना पर चारों ओर गूंजा जयकारे और भक्ति गीत

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गाईये गणपति जगवंदन जैसे भजनों एवं गणपति बप्पा मोरया जैसे जयकारों के बीच आज देश दुनियाभर में लालबाग के बादशाह जगह जगह विराजे। अपने शहर में लगभग तीस स्थानों पर भव्य रूप में और बाकी घरों व धार्मिक स्थानों पर गणपति की स्थापना की गई। शहर में दिनभर लोग मंदिरों में गणपति की पूजा अर्चना करते और उनके जयकारे लगाते नजर आए। बताते चलें कि दयालबाग के राजा सिद्धीविनायक को खुश करने के लिए किसी ने काजू चॉकलेट के मोदक बनाए तो किसी ने मावे के लेकिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार हर व्यक्ति ने गणपति को खुश करने की कोशिश की। बताते चलें कि सदर बाजार में नवनिर्मित मंदिर में महाराष्ट्र के कारीगरों द्वारा गणपति की प्रतिमा स्थापित की गई। ठठेरवाड़ा के मंदिर में गणपति की मूर्ति विराजित की गई। इसके अलावा शहर सर्राफा सोमदत्त विहार, आदर्श नगर शीलकुंज सरधना दौराला सहित आसपास के कस्बों में गणपति उत्सव की शुरूआत उत्साह से शुरू हुई। भक्तों ने प्रातःकाल धार्मिक मामलों में आठ द्रव्यों से पूजन किया। सुहागिनों ने इस अवसर पर निर्जला व्रत भी रखे। परिणामस्वरूप जयघोष के साथ जनपद में विराजे गणपति महाराज। गणपति उत्सव को लेकर अनेक प्रकार से महिलाओं द्वारा व्यवस्था की जाती हैं क्योंकि कहा जाता है कि स्त्री के सुख संसार के सूत्रधार हैं गणपति विघ्नहर्ता भी है। व्रत का है अनूठा उत्सव। एक खबर के अनुसार लाल बाग के राजा को इसलिए कहा जाता है मन्नत का राजा। यह परंपरा लाल बाग के राजा के रूप में कैसे शुरू हुई।
गणेश उत्सव की कोई भी बात बिना मुंबई के गणपति उत्सव की चर्चा के पूरी नहीं होती है। मुंबई में लगने वाले गणेश पंडालों का बात हो और और से लालबागचा राजा का जिक्र न हो, ऐसा कैसे हो सकता है। लाल बाग के राजा सिर्फ मुंबई या भारतभर में नहीं बल्कि दुनियाभर में मशहूर हैं। हर साल लाखों लोग.. लालबाग में गणपति बप्पा की एक झलक पाने के लिए आते हैं। लाल बाग के राजा गणेश जी की मूर्ति सबसे ऊंची गणपति मूर्तियों में से एक होती है। जानकारी के हिसाब से आपको बता दें कि लालबागचा राजा का इतिहास 1934 से पुराना है। आखिर कैसे हुए लाल बाग के राजा के उत्सव की शुरुआत और कौन इस मूर्ति को बनाता है।
1934 में हुई थी शुरुआत
1900 के दशक में, लालबाग का क्षेत्र लगभग 130 कपास मिलों का घर था। उस समय में इसे गिरनगांव या मिलों का गांव भी कहा जाता है। साल 1932 में जब औद्योगीकरण हुआ तो बाजार बंद हो गया। इससे वहां रहने वाले व्यापारी, विक्रेता और मछुआरा समुदाय प्रभावित हुआ। मान्यता है कि यहां पर मछुआरा समुदाय के लोगों ने मन्नत मांगी कि अगर उनका रोजगार बचा रहा तो वे गणपति का उत्सव करेंगे। यह उनका सौभाग्य था कि उन्हें एक नया बाजार शुरू करने के लिए जमीन का एक भूखंड मिला। समुदाय के सदस्यों ने इस भूमि का एक हिस्सा, वर्तमान लालबाग, वार्षिक सार्वजनिक गणेश मंडल को समर्पित करने का निर्णय लिया। इसके बाद, उन्होंने अपने भगवान के प्रति सम्मान दिखाने के लिए यहां गणपति की एक मूर्ति भी स्थापित की और इस तरह गणपति उत्सव शुरू हुआ।
90 साल से मूर्ति बना रहा है यह परिवार
जानकारी के लिए बता दें कि 1935 में कांबली परिवार के मुखिया मधुसूदन कांबली ने गणपति की मूर्ति बनाने की जिम्मेदारी ली। तब से, मूर्ति बनाना और उसकी देखभाल करना उनके परिवार की परंपरा रही है। पिछले कुछ सालों से उनके बेटे रत्नाकर कांबली मूर्ति डिजाइन करते और बनाते आ रहे हैं। यह मूर्ति आमतौर पर 18-20 फीट लंबी होती है साल 2018 में प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बाद से मंडल बिना बैकड्रॉप और सिंहासन के कागज की लुगदी से गणपति बना रहा है। सिर्फ मूर्ति ही नहीं, मोदक और लड्डू के साथ र्भी एक विरासत जुड़ी हुई है। श्री भवानी कैटरर्स कई सालों से लालबागचा राजा के प्रतिष्ठित बूंदी के लड्डू बना रहे हैं।
कुल मिलाकर जो भी हो बुद्धि और ज्ञान व मातृ पिता भक्ति के प्रेरणा देने वाले भगवान विष्णु द्वारा अपने माता पिता भगवान शिव और पार्वती की तीन परिक्रमा कर तीनों लोकों की परिक्रमा का लाभ प्राप्त कर यह बताया कि माता पिता से पूजनीय कोई नहीं। तीनों लोकों का आर्शीवाद इन्हें प्रणाम करने और इनकी सेवा से ही प्राप्त हो सकता है। यह पर्व मूर्ति बनाने वालों मिष्ठान विक्रेताओं और साज सज्जा का सामान बेचने वालो के लिए भी विशेष होता है क्योंकि परिवारों की रोजी रोटी साल भर की इसी से जुट जाती है। इसलिए यह कह सकते हैं कि भगवान गणेश सबके लिए कुछ ना कुछ सोचने और उनकी खुशहाली का ध्यान रखने वाले प्रमुख देवताआंे में शुमार है। देश भर में इनकी पूजा सभी करते हैं।
भारत के इन शहरों में मचती है गणेश चतुर्थी की धूम
हिदूं धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो भगवान गणेश के अवतरण का उत्सव मनाता है। गणेश जो को विघ्नहर्ता के रूप में पूजा जाता है और माना जाता है कि उनकी पूजा से सभी बाधाएं दूर होती हैं। इस साल ये त्योहार 7 सितंबर यानी आज से शुरू हो रहा है, जो अगले ग्यारह दिनों तक चलेगा। गणेश चतुर्थी का उत्सव पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन कुछ राज्यों में इसका उत्सव विशेष रूप से धूमधाम से होता है। इन राज्यों में, गणेश पंडालों का निर्माण किया जाता है, जो बेहद भव्य और आकर्षक होते हैं।
मुंबई
मुंबई में गणेश पंडालों का दर्शन करना एक अनूठा अनुभव होता है। लालबागचा राजा, जीजे विद्यापीठ, और दादर गणेश पंडाल यहां के सबसे प्रसिद्ध पंडालों में से हैं।
गोवा
गोवा में गणेश चतुर्थी का उत्सव एक सांस्कृतिक समारोह के रूप में मनाया जाता है। यहां, गणेश पंडालों का निर्माण पारंपरिक गोवाई शैली में किया जाता है। पणजी में गणेश पंडालों का दर्शन करने के लिए कई भक्त आते हैं। यहां के मशहूर पंडालों में गणेशपुरी और खंडोला भी शामिल हैं।
कर्नाटक
कर्नाटक में गणेश चतुर्थी का उत्सव श्बंगलुरु शहर में विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है। गणेश पंडालों का निर्माण बड़े पैमाने पर किया जाता है और इनमें विभिन्न थीम पर आधारित सजावट की जाती है।
तमिलनाडु
तमिलनाडु में गणेश चतुर्थी का उत्सव मुख्य रूप से चेन्नई शहर में मनाया जाता है। यहां, गणेश पंडालों का निर्माण पारंपरिक तमिल शैली में किया जाता है। पंडालों में भगवान गणेश की प्रतिमाओं के साथ-साथ तमिल संस्कृति और परंपराओं का प्रदर्शन भी किया जाता है।
गुजरात
यहां,गुजरात में गणेश चतुर्थी का उत्सव अहमदाबाद शहर में विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र के बगल में होने की वजह से यहां एक अलग ही धूम देखने को मिलती है। यहां, गणेश पंडालों को अलग-अलग थीम के साथ सजाया जाता है।
हैदराबाद
हैदराबाद में भारत के सबसे बड़े पंडालों में शामिल खैरताबाद पंडाल है। इसके अलावा और भी कई जगहों पर गणेश पंडाल लगाए जाते हैं, जिनकी भव्यता को शब्दों में बताना आसान नहीं है। चौत्रयपुरी, नई नागोल और श् दुर्गम चेरुवू ऐसे ही कुछ नाम हैं, जहां गणेश चतुर्थी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।
कुल मिलाकर पूरी दुनियाभर में सनातन धर्म को मानने वाले व भगवान शिव व माता पार्वती के पुत्र गणेश एवं लक्ष्मी को अपना आराध्य मानने वालों ने आज से पूजा अर्चना शुरू की जो 11 दिन तक चलेगी।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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