नई दिल्ली 29 मार्च। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि किसी भी स्वस्थ समाज और लोकतंत्र के लिए अभिव्यक्ति की आजादी जरूरी है और हर हाल में इसकी रक्षा होनी चाहिए। अदालत ने कांग्रेस नेता व राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज मुकदमा रद्द कर दिया।
मौलिक अधिकारों की रक्षा करना अदालत का कर्तव्य
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि विचारों और दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बगैर संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत एक सम्मानजनक जीवन जीना संभव नहीं है। पीठ ने कहा कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना अदालत का कर्तव्य है। कांग्रेस नेता प्रतापगढ़ी के खिलाफ सोशल मीडिया पर वीडियो के जरिए साझा की गई एक कविता को लेकर गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज मुकदमा रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस बात के लिए अफसोस जताया।
FIR आंख मूंदकर नहीं दर्ज होनी चाहिए: SC
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि एफआईआर आंख मूंदकर दर्ज नहीं की जानी चाहिए। यह पता लगाने के लिए प्रारंभिक जांच की जानी चाहिए कि क्या प्रथम दृष्टया बीएनएस के तहत धारा 196 और 197 (1) के तहत मामला बनता है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान ये भी कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी लोकतंत्र का अभिन्न अंग है, जजों को इसकी रक्षा करनी चाहिए, भले ही उन्हें व्यक्त विचार पसंद न आए।
यह था मामला
गुजरात पुलिस ने कांग्रेस नेता इमरान प्रतापगढ़ी पर इस कविता के जरिए समाज में समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा करने, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा बताते हुए केस दर्ज किया था। पुलिस ने इसी साल 17 जनवरी को प्रतापगढ़ी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 196, 197(1), 302, 299, 57 और 3(5) के तहत मुकदमा दर्ज किया था।
अदालत ने कहा था कि कविता में ‘सिंहासन’ शब्द का उल्लेख किया गया था और पोस्ट पर प्रतिक्रियाएं सामाजिक सौहार्द्र बिगड़ने का संकेत देती थीं। हालांकि प्रतापगढ़ी ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। अब शीर्ष कोर्ट ने एफआईआर को रद्द करने का आदेश दिया।