केंद्रीय रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव भले ही कितना प्रयास क्यों ना कर रहे हों मगर या तो विभागीय अधिकारी उनके द्वारा बनाई गई योजनाओं का पालन नहीं कर रहे हैं अथवा विभागीय कमियां मंत्री जी तक नहीं पहुंचने दे रहे। पिछले कुछ वर्षों में सुधार का ढिंढोरा कितना ही क्यों ना पीटा गया हो लेकिन यात्रियों में रेलवे की यात्रा और इसकी कार्यप्रणाली को लेकर संतोष नजर नहीं आता है और ना ही जनहित की जो योजनाएं लागू होनी चाहिए वो भी लागू नहीं हो पा रही है।
कोरोना काल में देशभर के मान्यता प्राप्त पत्रकारों को जो फ्री यात्रा मिलती थी वो खत्म होने के कई साल बाद भी विभाग दोबारा लागू नहीं कर पाया और ऐसा ही हाल वरिष्ठ नागरिकों को रियायती यात्रा का कोई समाधान पुख्ता हुआ हो उसका पता नहीं चल पा रहा है। दूसरी तरफ रेल दुर्घटनाओं और उन्हें अंजाम देने की जो कोशिशों की खबरें आए दिन पढ़ने को मिलती है उनमें भी कमी नहीं आ रही है। रखरखाव की स्थिति यह है कि रेल में खाने को लेकर यात्रियों को शिकायत तो रहती ही है। कभी खाने में काकरोच निकलता है तो कभी और कोई समस्या। आज से लगभग दस साल पूर्व लखनउ से लौटते समय रेल यात्रा के दौरान अचानक तबीयत खराब हो गई। पेट दर्द और लूजमोशन लगातार हो रहे थे मगर डॉक्टर की सुविधा कहीं नहीं मिल पाई। अब कई तरह की सुविधाएं यात्रियों को देने की चर्चा और दावे खूब हो रहे है। क्योंकि बीते दिवस जब एक ट्रेन में सकौती के पास वीरदमन पवार को सीने में दर्द होने लगा तो उन्होंने साथ बैठे यात्री से मदद मांगी। तो कुछ यात्रियों ने उन्हें सकौती स्टेशन पर नीचे उतार दिया। पानी भी पिलाया गया और लेटा दिया गया। तभी उनकी मौत हो गई। उनके पास मौजूद कागजों से पता कर परिजनों को सूचना दी गई। जो उन्हें अपने साथ ले गए। सवाल यह उठता है कि अगर समय से तुरंत चित्तौड़ निवासी यात्री को चिकित्सा सुविधा मिल गई होती तो शायद उनकी जान बच सकती थी। कहने का मतलब यह है कि मंत्री जी एक किस्सा तो मेरे साथ हो चुका है दुसरा यह गत दिनों सामने आया। ऐसे और भी मामले रेल में सामने आते हैं लेकिन जहां तक पढ़ने को मिलता है कि उससे यही लगता है कि भारतीय रेलों में इतनी बड़ी संख्या में लोग यात्रा करते हैं लेकिन चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने की कोई संतोषजनक व्यवस्था रेलों में नहीं है। अगर होती तो शायद वीरदमन पवार को जान से हाथ ना धोना पड़ता। मेरा रेल मंत्रालय और सरकार से आग्रह है कि पत्रकारों और बुजुर्गों की निशुल्क यात्रा सभी सुविधाओं के साथ बहाल की जाए। और हर रेल में एक डॉक्टर और कंपाउंडर की आवश्यक दवाईयों और उपकरणों के साथ उपलब्धता जनहित में की जाए। क्योंकि पीएम मोदी नागरिकों को स्वस्थ रखने यात्रा सुगम बनाने हेतु हर संभव प्रयास करते नजर आ रहे हैं तो फिर रेलवे पीछे क्यों।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
पत्रकारों और वृद्धों की रेलों में बहाल हो निःशुल्क यात्रा! हर ट्रेन में एक डॉक्टर कंपाउडर दवाईयों के साथ रहें उपलब्ध
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