asd खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को किया जाए सक्रिय और काम करने के लिए मजबूर, समोसा जलेबी रसगुल्ला पर चेतावनी बोर्ड सराहनीय है निर्णय, कैंटीन के साथ स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर हो प्रदर्शन

खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को किया जाए सक्रिय और काम करने के लिए मजबूर, समोसा जलेबी रसगुल्ला पर चेतावनी बोर्ड सराहनीय है निर्णय, कैंटीन के साथ स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर हो प्रदर्शन

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फिट इंडिया अभियान के तहत मोटापा घटाने के लिए दिनभर में कितनी वसा उपयोग करनी है इसके लिए यह एक सराहनीय अभियान शुरू हुआ जिसमें सिगरेट के पैकेट पर जिस तरह चेतावनी लिखी होती है उसी तरह समोसा जलेबी रसगुल्ला और अन्य खाद्य साम्रगियों में कितना तेल और वसा है उसका बोर्ड लगाना जरूरी है। इस व्यवस्था से लोग समोसा जलेबी रसगुल्ला और अन्य खाद्य सामग्री खाना तो नहीं छोड़ेंगे मगर यह चेतावनी सामने आने पर इसमें कमी और शुद्धता जरूर तलाशने लगेंगे।
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव के जारी आदेशों में सभी सरकारी मंत्रालयों और विभागों की कैंटीन में इस बारे में चेतावनी बोर्ड लगाना अनिवार्य किया गया है। जिसमें यह बताना होगा कि तले भुने खा़द्य पदार्थ में कितनी तेल शक्कर की मात्रा है। मोटापे के प्रति जनजागरूकता के लिए प्रयास जरूरी है क्योंकि देश में यह मामले लगातार बढ़ते जा रहे हेै। 2025 तक वजन और मोटापे की दर 27 प्रतिशत पहुंचने का अनुमान है। 2050 तक यह दर बढ़कर 44.9 प्रतिशत हो सकती है। क्योंकि खराब खानपान से मोटापे के साथ अन्य बीमारियों की भी शुरूआत हो जाती है। इन सबसे बचने हेतु यह व्यवस्था जरूरी है।
नागरिकों के बेहतर स्वास्थ्य पर जोर
डिजिटल या स्थैतिक पोस्टर के रूप में ऑयल और शुगर बोर्ड को कैफेटेरिया, मीटिंग रूम, लॉबी जैसे आम स्थानों पर लगाया जाए। सरकारी स्टेशनरी पर नियमित स्वास्थ्य संदेश प्रिंट किए जाएं। दफ्तरों में पौष्टिक भोजन और शारीरिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाए, जैसे सीढ़ियों का उपयोग, छोटे वॉक ब्रेक, और मीठे व फैट युक्त खाद्य पदार्थों की बिक्री में कटौती।
समोसा, पिज्जा और बर्गर पर प्रतिबंध नहीं
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि इस आदेश के साथ सरकार ने समोसा, पिज्जा, बर्गर, पकौड़े की तस्वीर भी साझा की है, जिसका अर्थ यह नहीं है कि सरकारी दफ्तरों की कैंटीन में इन पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। कैंटीन आने वालों को यह पता होना चाहिए कि इन खाद्य पदार्थों में कितना फैट और तेल मौजूद है। उदाहरण के तौर पर एक समोसा में 17 ग्राम फैट होता है जबकि एक व्यक्ति को दिनभर में 44 से 78 ग्राम वसा पर्याप्त होता है जो वह सुबह से लेकर रात तक अलग-अलग आहार में लेता है। एक बर्गर में 31 ग्राम, पिज्जा में 40, फ्रेंच फ्राइज में 17, बड़ा पाव में 10 और पकोड़े में 14 ग्राम वसा होती है। अगर चीनी की बात करें तो गुलाब जामुन में यह 32 ग्राम, बाजार में उपलब्ध जूस में 36, चॉकलेट में 25 और कोल्ड ड्रिंक्स में 32 ग्राम होती है। पुरुषों को प्रतिदिन 36, महिलाओं को 25 ग्राम से अधिक चीनी नहीं खानी चाहिए।
क्योंकि मैदा तेल कृत्रिम रंग और रसायन के उपयोग के साथ ही वर्तमान में मिलावटी तेल की खपत भी होने की चर्चा सुनने को मिलती है। बाजारों में मोमोज पिज्जा ऐसे व्यंजन है जो मोटापा बढ़ाते हैं और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसलिए मेरा मानना है कि भारतीय व्यंजन समोसा जलेबी रसगुल्ला पर निगरानी तो हो लेकिन इन विदेशी व्यंजनों पर भी निगाह रखी जाए। क्योंकि स्वास्थ्य से संबंध खानपान की शुद्धता कायम कराने के लिए खाद्य सुरक्षा विभाग के अफसर साल भर में सिर्फ खानापूर्ति ही करते हैं। पूरे साल बैठे रहंेगे और त्योहारों पर सैंपल भरने का दिखावा इनके द्वारा किया जाता है। उससे कुछ होता नहीं क्योंकि रिपोर्ट आने तक त्योहार खत्म हो जाते है। इसलिए दूध पनीर घी मक्खन भी बाजार में खूब मिलते हैं और जांच में असफल पाए जाते हैं। मेरा मानना है कि केंद्र सरकार और स्वास्थ्य विभाग सक्रिय हों और जो जला हुआ तेल बार बार उपयोग होता है उस पर रोक लगाई जाए क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक है। खाद्य सुरक्षा विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए जाएं कि वो स्कूलों की कैंटीनों और उसके आसपास बिकने वाली जीचों की जांच करें और यह चेतावनी बोर्ड कैंटीन और दुकानों के साथ साथ ठेलों पर भी लगवाए जाएं क्योंकि यह सभी खाद्य पदार्थ सड़क पर लगने वाले ठेलों पर खूब बिकते हैं। कहने का मतलब है कि यह अभियान बहुत अच्छा है। इससे मोटापा घटेगा और नागरिक निरोगी रहेंगे। मगर जरूरी है अधिकारियों को सक्रिय करने की क्योंकि वह जिम्मेदारों पर कार्रवाई नहीं करेंगे तब तक यह नुकसान नहीं रूकेगा। जैसा अन्य अभियान लागू नहीं हो पा रहे हैं। अगर ध्यान नहीं दिया गया तो यह भी कागजों में खानापूर्ति तक ना सिमटकर रह जाए।
इसलिए इस अभियान को छात्रों के माध्यम से उनके घरों तक पहुंचाया जाए और इसके लिए गोष्ठियों का आयोजन किया जाए। जो आदेश हुए वो लागू हो ऐसा ना हो कि जैसा आदेश लागू होते हैं और फाइलों में बद होकर रह जाते हैं।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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