कैंसर दवाओं पर जीएसटी घट जाने से डॉक्टरों का कहना है कि सरकार के फैसले से मरीजों को काफी राहत मिलेगी। कुछ यह भी कह रहे हैं कि दवाओं पर जीएसटी को 12 से घटाकर 5 प्रतिशत किए जाने से कैंसर से जूझ रहे मरीजों को तोहफा दिया है। कई इससे संबंध लोगों द्वारा सरकार की तारीफ भी की जा रही है। पहले बढ़ाना फिर घटाना यह व्यवस्था हमेशा ही चलती रही है। आम आदमी इसी से खुश होता है कि जो दाम बढ़ाए गए थे वो घटा दिए। कैंसर दवाओं पर जीएसटी घटने से इससे संबंध चिकित्सक भी खुशी का इजहार कर रहे हैं। मगर सवाल यह उठता है कि डॉक्टरों की मोटी फीस के चलते जो बोझ बीमारों और उनके परिजनों पर आर्थिक रूप से पड़ रहा है वो कब कम होगा। दूसरी तरफ हेल्थ पर लगाई गई जीएसटी प्रीमियम घटेगा इसका इंतजार अभी लोगों को नवंबर तक करना होगा। लेकिन सवाल यह उठता है कि इतनी गंभीर बीमारियों पर जीएसटी लगाई ही क्यो गई और 18 से पांच प्रतिशत करने पर सरकार भले ही अपनी पीठ थपथपा ले लेकिन मरीजों और उनकी देखभाल करने वालों पर पांच प्रतिशत का बोझ ही कहा जा सकता है। जीएसटी परिषद की 54वीं बैठक के बाद वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि बीमा पर प्रीमियम पर जीएसटी घटाने को लेकर सहमति बन रही है मगर फैसला अब नवंबर में होगा। मेरा मानना है कि वित्तमंत्री जी अगर खर्चे बढ़ रहे हैं तो उन्हें पूरा करने के लिए सरकारी नौकरों की फिजूलखर्ची पर रोक लगाई जाए और जनप्रतिनिधियों से कोई और उपाय ढूंढने के लिए कहा जाए लेकिन बीमारियों से लड़ रहे व्यक्तियों पर किसी भी प्रकार से टैक्स का बोझ डालना सही नहीं है। पीएम मोदी द्वारा आम आदमी को सस्ती चिकित्सा उपलब्ध कराने की भावना पर यह फैसले सही नहीं उतरते हैं। मुझे लगता है कि दवाईयों पर टैक्स बढ़ाने की बजाय डॉक्टरों की फीस तय करे क्योंकि जिस प्रकार से बीमारियां बढ़ रही है उसके चलते आम आदमी इस स्थिति में नही है कि वो कोई भी अतिरिक्त बोझ इलाज के मामले में झेल सके। मुझे तो लगता है कि सरकार को नई बीमारियों के पैदा होने के मुख्य कारण चारों ओर फैली रहने वाली गंदगी की समाप्ति और इस पर रोक लगाने का प्रयास कर नागरिकों को राहत पहुंचानी चाहिए। यही सरकार के मानवीय दृष्टिकोण की मांग भी कही जा सकती है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
वित्तमंत्री जी जीएसटी घटाएं नहीं पूर्ण रूप से समाप्त कीजिए, डॉक्टरों की फीस की जाए तय
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