asd मशहूर शायर मुनव्वर राणा का 71 साल की उम्र में निधन – tazzakhabar.com
Date: 14/03/2025, Time:

मशहूर शायर मुनव्वर राणा का 71 साल की उम्र में निधन

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नई दिल्ली 15 जनवरी। मशहूर शायर मुनव्वर राणा का गत दिवस निधन हो गया. जानकारी के मुताबिक, 71 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली. लखनऊ स्थित संजय गांधी परास्नातक आयुर्विज्ञान संस्थान में उनका पिछले कुछ वक्‍त से इलाज चल रहा था. मुनव्वर राणा को साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. हालांकि सरकार से नाराज़गी जताते हुए उन्होंने अपना अवॉर्ड वापस करने का ऐलान किया था. मुनव्वर राणा लंबे समय से बीमार थे. उन्‍हें गले का कैंसर था.

उनकी बेटी सोमैया ने बताया कि राणा को सोमवार को उनकी वसीयत के मुताबिक लखनऊ में सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा. राणा के परिवार में उनकी पत्नी, पांच बेटियां और एक बेटा है. राना के बेटे तबरेज राणा ने बताया, ‘‘बीमारी के कारण वह कई दिनों से अस्पताल में भर्ती थे. उन्हें पहले लखनऊ के मेदांता और फिर एसजीपीजीआई में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने रविवार रात करीब 11 बजे अंतिम सांस ली.”

मुनव्‍वर राणा का जन्‍म 26 नवंबर, 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली में हुआ था. उन्‍हें उर्दू साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है. 2014 में कविता ‘शहदाबा’ के लिए उन्‍हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उनकी शायरी बेहद सरल शब्दों पर आधारित हुआ करती थी, जिसने उन्हें आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया.

शायर मुनव्वर राणा वैसे तो पूरे विश्व में आयोजित मुशायरो में भाग लेने जाते थे, लेकिन वह देश के अंदर आयोजित होने वाले मुशायरो में भाग लेने को ज्यादातर तरजीह देते थे। मेरठ में आयोजित हुए कई मुशायरो में भाग लेने वो यहां आए और श्रोताओं से जमकर दाद बटोरी। बताते हैं कि मेरठ में लगभग आधा दर्जन मुशायरों में उन्होंने शिरकत की। मेरठ में जब भी वह अपना कलाम पेश करते थे तो मां विषय पर वह भावुक हो जाते थे और मां विषय पर कई कलाम पेश करते थे।

मुनव्वर राणा को साहित्य जगत के कई पुरस्कारों से नवाजा गया है। 1993 में रईस अमरोही पुरस्कार से उन्हें नवाजा गया। 1995 में दिलखुश पुरस्कार उन्हें मिला। 1997 में सलीम जाफरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद 2004 में सरस्वती समाज पुरस्कार से नवाजे गए। 2005 में ग़ालिब उदयपुर पुरस्कार उन्होंने प्राप्त किया। इसके बाद 2006 में कबीर सम्मान उपाधि से सम्मानित किए गए।

2011 में मौलाना अब्दुल रज्जाक मलिहाबादी पुरस्कार उन्हें प्राप्त हुआ, जबकि 2014 में उर्दू साहित्य के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। हालांकि यहां कुछ कंट्रोवर्सी के चलते 2015 में साहित्य अकादमी पुरस्कार उन्होंने वापस लौटा दिया और यह घोषणा भी की थी कि वह भविष्य में अब कोई भी सरकारी पुरस्कार नहीं लेंगे।

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