asd सब चाहते हैं हिन्दी भाषा में बात करना, खतरे में नहीं है मातृभाषा, इस नाम पर दुकान चलाना बंद करो

सब चाहते हैं हिन्दी भाषा में बात करना, खतरे में नहीं है मातृभाषा, इस नाम पर दुकान चलाना बंद करो

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हर साल की भांति आज भी हम विश्व हिन्दी दिवस मना रहे हैं। देश के जन जन की मातृभाषा हिन्दी के उत्थान और प्रचार प्रसार के लिए आज भी हमें यह दिवस क्यों मनाना पड़ता है इस विषय पर भी अब सोचा जाना चाहिए क्योंकि हिन्दी हमेशा हमारे खून में रची बसी रही है। वो बात और है कि कुछ लोग पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव या अंग्रेजियत के चलते इसे ना जानने का नाटक करते हों यह बात अटल सत्य है कि अपने देश में रहने वाला हर परिवार हिन्दी ना जानता हो यह संभव नहीं है। यह बात और है कि धारा प्रभाव ना बोल पाता हो लेकिन काम चलाउ सब जानते हैं। फिर भी हम हिन्दी दिवस इस भावना से मना रहे हैं और इसका प्रचार प्रसार हो। हिन्दी समाचार पत्रों में से एक दैनिक जागरण द्वारा आज भाषा से जुड़ा एक यूटयूब चैनल शुरू किया गया। इस पर साहित्यकारों इतिहासकारों अभिनेताओं से संपर्क कर उसकी बात समझ सकते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि हिन्दी पश्चिमी उप्र से दुनिया में प्रतिनिधित्व कर रही है। मेरा मानना है कि पूरी दुनिया में हिन्दी हमारा परचम फहराने के साथ ही हमारे देश की प्रमुखता की पहचान बनाए रखने में सफल है। इसे देश के कवियों हिन्दी समाचार पत्रों सिनेमा प्रेमियों आदि ने एक अलग ही पहचान दी है। मैं यह कहने में कोई हर्ज महसूस नहीं करता हूं कि जो लोग हिन्दी के नाम पर अपनी दुकान चला रहे हैं और हर साल हिन्दी सप्ताह मनाकर बड़ी बड़ी बातें बनाते हैं उन्हें यह सब छोड़कर मातृभाषा का महिमामंडन करने के प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए। मुझे लगता है कि सरकारें जो कुछ लोगों को हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए मदद करती हैं वो बंद करनी चाहिए और युवाओं को हिन्दी में निपुण बनाने के प्रयास किए जाएं तो ज्यादा अच्छा होगा। क्योंकि आज इन युवाओं के कारण ही दुनिया में कोई भी देश हो सब जगह अपनी काबिलियत का ध्वज फहरा रहे युवा हिन्दी का परचम लहराने में अग्रणीय है। सब जानते हैं कि हिन्दी की मांग निरंतर बढ़ रही है। सिर्फ पीएम मोदी ने भी इसकी गरिमा को पूरी दुनिया में अपने संबोधनों के माध्यम से बढ़ाया है।
सबसे ज्यादा हिन्दी को कोई बढ़ावा दे रहा है तो उसे सोशल मीडिया कह सकते हैं। अंग्रेजी का कुछ सेंकेडों में हिन्दी अनुवाद करने में सक्षम करने में इस मंच का उपयोग करने वालों को प्रोत्साहित कर रही है। कुछ लोग कहते हैं कि वैश्विक समुदाय भी भारत में हिन्दी की उपेक्षा से आहत है। माता पिता ही नहीं चाहते उनका बच्चा हिन्दी पढ़े या बोले। हो सकता है नवीन चंद लोहानी की नजर में यह सही हो मगर ऐसा है नहीं। अब ज्यादातर मां बाप अपने बच्चों को हिन्दी पढ़ाना चाहते है। इसके बड़े उदाहरण के रूप में हम आईसीएसई और सीबीएसई के स्कूलों में हिन्दी के प्रश्न पत्रों को देख सकते हैं। चौधरी चरण सिंह विवि के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर प्रशांत कुमार का कहना है कि हिन्दी का अस्त्वि खतरे में है हो सकता है उनकी निगाह में यह सही हो मगर मुझे नहीं लगता ऐसा है। आज दुनिया हिन्दी का लोहा मान रही है। स्वामी विवेकानंद जैसे महान व्यक्तियों ने पूरी दुनिया को इसका लोहा मानने को विवश कर दिया था और अब इसके बारे में यह कहना कि इसे खतरा है या मां बाप बच्चों को नहीं पढ़ाना चाहते। इससे तो मुझे यही लगता है कि कुछ लोग हिन्दी के नाम पर दुकान चलाने के लिए ऐसी बातें करते हैं। यह जरूर है कि हिन्दी समाचार पत्रों का आभारी होना चाहिए कि इस मातृभाषा को सर्वोच्च स्थान पर पहुंचाने में इनका बड़ा योगदान है। खासकर छोटे लघु भाषाई समाचार पत्रों का योगदान तो और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। बहुत कम लोग जानते हैं मगर यह सच है कि इंग्लिश समाचारों का अनुवाद हिन्दी में करने के लिए विद्वान रखे जाते हैं और अब तो इसकी मांग इतनी बढ़ रही है कि घंटो के हिसाब से हजारों रूपये में भी हिन्दी पढ़ाने वाले उपलब्ध नहीं होते।
यह जरूर है कि मातृभाषा हिन्दी का शब्दज्ञान प्राप्त करने की कोशिश बहुत कम लोग करते हैं और मुझ जैसे निरक्षर तो इसके बारे में कुछ जानते ही नहीं है। फिर भी हम जैसे लोग अपने आप को हिन्दी का विद्वान बताने वालों से ज्यादा योगदान इस क्षेत्र. में कर रहे है। अब सरकार को यह करना चाहिए कि हिन्दी का शोर मचाने वालों को साथ रखना है या सही मायनों में इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं उन्हें आगे लाना है। पिछले कुछ दशकों में जो हिन्दी संस्थान और भवन थे उनमें से कुछ विलुप्त होते जा रहे हैं। इसके उदाहरण के रूप में मेरठ के हिन्दी टंडन भवन को देखा जा सकता है। मैं तो यही कह सकता हूं कि आओ इसके बारे में दुष्प्रचार करने वालों की बजाय मिलकर एक स्वर में यह अभियान चलाए कि हिन्दी को अपनाकर ही उन्नति के मार्ग पर सफलता पानी है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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