Date: 23/12/2024, Time:

कई चिकित्सा सुविधा योजनाएं चलाने के बाद भी पात्रों को नहीं मिल रहा सही इलाज, मेडिकल की कार्यप्रणाली सरकार की बदनामी का बन रही है कारण

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केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा अपराध रोकने सभी को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने व जनहित की योजनाएं चलाने के बाद भी जिन लोकसभा चुनाव परिणामों का सामना करना पड़ा वो नागरिकों के अनुसार सोच के विपरीत रहा। इसके पीछे वैसे तो बहुत से कारण हो सकते हैं लेकिन सबसे बड़े कारणों में आयुष्मान योजना से चिकित्सा दिलाने के प्रयास के बावजूद आम आदमी उसकी सुविधा का अहसास क्यों नहीं कर पा रहा यह समीक्षा का विषय है। सरकार हर साल भारी बजट मेरठ के मेडिकल कॉलेज को दे रही है। समयानुसार सभी सुविधाएं भी उपलब्ध कराने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन यहां तैनात हुक्मरानों की कार्यप्रणाली के चलते जो समस्याएं नागरिकों के सामने आ रही है उसे लेकर यह कहने में कोई हर्ज महसूस नहीं हो रहा है कि मेडिकल के प्रधानाचार्य उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं और ऐसा ही नजरिया कुछ माह में देखा वो सरकार की बदनामी का कारण बन रहा लगता है। आम आदमी की सोच से मैं भी सहमत हूं। एक खबर के अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में वैसे तो तमाम तरह की चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध बताई जाती है लेकिन यहां एमआरआई कराना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। रेडियो डाइग्नोस्टिक विभाग में जो मरीज एमआरआई के लिए पहुंच रहे हैं। उन्हें दो माह बाद का समय दिया जा रहा है। मेडिकल प्रशासन इसकी वजह स्टॉफ की कमी बता रहा है। बुधवार को एलएलआरएम कॉलेज के रेडियो डाइग्नोस्टिक विभाग में अल्ट्रासाउंड और एमआरआई कराने वाले मरीजों की खासी भीड़ नजर आई। फिलहाल एमआरआई के लिए दो माह की वेटिंग चल रही है।
ऐसे में उन मरीजों को खासी परेशानी हो रही है जो यहां भर्ती है। हालांकि मेडिकल प्रशासन का दावा है कि ज्यादा गंभीर और इमरजेंसी में भर्ती मरीजों को एमआरआई के लिए एक सप्ताह का समय दिया जा रहा है। मेडिकल में एमआरआई कराने के लिए दो हजार रूपये की रसीद कटानी पड़ती है। जबकि निजी रेडियोलॉजी सेंटरों पर यह चार से साढे“ चार हजार रूपये में होता है। ऐसे में निजी सेंटरो की तुलना में कम खर्च होने की वजह से ज्यादातर मरीज मेडिकल में ही एमआरआई कराते हैं। वहीं, मेडिकल के पास केवल एक एमआरआई मशीन है,
जबकि इसके लिए जरूरी स्टॉफ व टेक्निशियन की भी कमी है। मेडिकल के रेडियो डाइग्नोस्टिक विभाग में एक दिन में आठ से 10 एमआरआई ही हो पाते हैं। जबकि मरीजों की संख्या 100 से अधिक रहती है। ऐसे में इमरजेंसी के मरीजों को प्राथमिकता दी जा रही है। जबकि ओपीडी के मरीजों को दो माह बाद का समय दिया जा रहा है। यदि मेडिकल प्रशासन द्वारा एमआरआई मशीनों की संख्या बढ़ाई भी जाती है तो इसके लिए जरूरी स्टॉफ उपलब्ध नहीं है।
मेरा मानना है कि भविष्य में सरकार की मंशा और सुविधाओं के हिसाब से यहां मरीजों को हर संभव इलाज समयानुकुल मिले और सरकार जो प्रयास इस बारे में कर रही है वो जनता को दिखाई भी दे ऐसा काम करने के लिए प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री को मेडिकल के डॉक्टरों को तैयार करना चाहिए। एमआरआई वाले मरीजों को नुकसान ना हो इसके लिए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कोई व्यवस्था उपलब्ध कराएं क्योंकि जनमानस का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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