asd पीड़ितों के आग्रह पर आसानी से मिले इच्छामृत्यु, इसके लिए संविधान मेें हो व्यवस्था, सांसदों को इस बारे में देना होगा ध्यान

पीड़ितों के आग्रह पर आसानी से मिले इच्छामृत्यु, इसके लिए संविधान मेें हो व्यवस्था, सांसदों को इस बारे में देना होगा ध्यान

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पिछले कुछ सालों में इच्छा मृत्यु के लिए आवेदन किए जाने वालों की संख्या में धीरे धीरे बढ़ोत्तरी होती नजर आ रही है। और इसके लिए जितना पढ़ने सुनने को मिलता है कारण भी नए नए सामने आ रहे हैं। लोकतांत्रिक प्रक्रिया के चलते वाकई में इच्छा मृत्यु की अनुमति दिया जाना ना तो उचित कहा जा सकता है और ना ही संभव क्योंकि खबरों को पढ़ने से लगा कि लोग छोटी बातों पर गुस्सा होकर इच्छा मृत्यु की बात करने लगते हैं।
मगर कई मामले ऐसे भी प्रकाश में आते हैं जिनको पढ़कर या सुनकर यह सोचने को मजबूर होना पड़ता है कि ऐसे जीवन से मुक्ति ही समाधान है और उसके लिए इच्छा मृत्यु की अनुमति मिलना जरूरी है। पिछले दिनों ऐसा पढ़ने को मिला कि संविधान में इस मामले में कोई स्पष्ट निर्देश या नियम नहीं है इसलिए कई लोग पात्र होने के बाद भी जीवनभर तड़पते रहते हैं। बिस्तर से उठ नहीं सकते । उनके रोजमर्रा के काम भी परिवार के लोग या नर्स रखकर करवाते हैं और कई कई साल तक यह जानते हुए भी वह ठीक नहीं हो सकते उन्हें इच्छा मृत्यु की अनुमति नहीं मिलती। राष्ट्रपति के यहां कुछ मामलों में सुनवाई होने की संभावनाएं बताई जाती है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि बच्चों के लिए मां बाप हर वो काम करते हैं जिससे वो खुश रह सकें और जिनके औलाद नहीं होती उसे प्राप्त करने के लिए वो क्या क्या जतन करते हैं यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए मेरा मानना है कि अगर मां बाप अपने किसी पीड़ित बच्चे के लिए इच्छामृत्यु की मांग करते हैं तो वह मिलनी चाहिए और नियम कानून नहीं है तो बनाया जाना चाहिए। कहने का आश्य सिर्फ इतना है कि कुछ बच्चे गंभीर बीमारियों से ग्रस्त होते हैं और करोड़ों रूपये के इंजेक्शन लगने से वो जीवित रह सकते हैं। अगर कोई बच्चा किसी दवाई या इंजेक्शन से जीवित रह सकता है तो सरकार और समाजसेवी संगठनों को ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए लेकिन अगर डॉक्टरों की राय में यह बात सामने आई कि इंजेक्शन के बाद भी ज्यादा दिन का जीवन नहीं है तो सरकार को मानवीय दृष्टिकोण से सोचना होगा। कई मां बाप तो अपने बच्चे की देखभाल भी नहीं कर पाते हैं। और भगवान से यह प्रार्थना करते हुए कि इसको भगवान जल्दी उठा ले अपना समय गुजारते हैं। इन सब तथ्यों को देखकर कहा जा सकता है कि हमारे सांसद ऐसे मामलों का मंथन कर संसद में सवाल उठाएं और आम पीड़ित की पीड़ा को देखते हुए इच्छामृत्यु आसानी से मिल सके संविधान में यह व्यवस्था कराएं।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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