Date: 10/10/2024, Time:

हमारे गूंगे बहरे होने के कारण पनप रही है अंग्रेजियत, सरकार कवियों और लघु समाचार पत्रों को दे सुविधा, हिन्दी फहराने लगेगी पताका

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आज हम हिंदी दिवस मना रहे हैं और 14 सितंबर को हर साल ही हम ऐसा करते हैं और बड़े बड़े संकल्प दावे व वादे हमारे द्वारा किए जाते रहे हैं लेकिन संविधान लागू हुए 77 साल बीत चुके हैं। 75वीं वर्षगाठ मनाने की तैयारियां शुरू हो रही है लेकिन इस सबके बावजूद ऐसा क्यो है कि हर बार हमें यह दिवस कामयाबी के लिए मनाने की बजाय यह रोना क्यों रोना पड़ता है कि हिंदी के उत्थान के लिए काम होना चाहिए और इसे राष्ट्र भाषा का दर्जा। दोस्तों मुझे लगता है कि अब हमें अपनी गिरेबान में खासकर हिंदी की बात करने वालों को झांकना होगा। अब वो वक्त आ गया है कि हम हर साल लीपापोती करते रहें और इस नाम पर बजट बढ़ता रहे साल में एक सप्ताह या 15 दिन इसके प्रचार के लिए निकाल लिए जाएं लेकिन आखिर में वही ढाक के तीन पात। मुझे लगता है कि अब यह व्यवस्था ज्यादा दिन चलने वाली नहीं है। हमारा युवा वर्ग नई तकनीक अपनाकर इसकी ओर आकर्षित हो रहा है यह सर्वविदित है।
कथनी करनी में
आजादी के बाद से कुछ प्रदेशों के लोगों द्वारा हिंदी थोपे जाने की बात कर बखेड़ा किए जाने और आम आदमी को इसके बारे में बताने और स्थिति साफ करने की बजाय हम हिंदी का देशभर में पूर्ण रूप से प्रचलन में अभी सफल नहीं हुए हैं। मेरा मानना है कि अब फालतू की बात सोचने की बजाय इस मामले में हमें किसी को बताने समझाने की बजाय मातृभाषा को सम्मान देने में पीछे नहीं रहना होगा। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि जिस दिन हमने ठान लिया कोई भी हिंदी को नजर अंदाज नहीं कर सकता। क्योंकि एक तो विदेशों में हिंदी भाषियों की बढ़ती महत्ता और दूसरे इसे पढ़ाने वालों की आमदनी में वृद्धि से अब जो इसका विरोध करते हैं उनके घर में भी लोग इसकी आवश्यकता को महसूस करने लगे हैं। जरूरत है हमें अपने इरादे मजबूत करने और अटल सोच के साथ आगे बढ़ने की। क्योंकि इस मामले में दोगली नीति कोई भी अपना रहा हो लेकिन हर क्षेत्र में बढ़ती इसकी प्रासंगिकता को नजरअंदाज कोई नहीं कर सकता। जहां तक मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि हमें अपनी कथनी और करनी में जो फर्क है उसे समाप्त करना होगा।
अंग्रेजियत के पीछे भागना छोड़ें
भाषा कोई सी भी हो सबका अपना महत्व है। मैं यह भी नहीं कहता कि हिंदी भाषी अपने बच्चों को अंग्र्रेजी स्कूलों में ना पढ़ाए या उन्हें सीखने से रोके। मेरा कहना सिर्फ इतना है कि अपने घर में जो बनावट अंग्रेजी में बात करने की अख्तियार करते हैं उसे छोड़ दे पूरे देश में यह अपने आप लागू हो जाएगी। खासकर हिंदी पर बात करने वालों की मेरा मानना है कि पुस्तकालयों में हम पढ़ने भी जाएं और हिंदी की नई किताबें भी जुटाएं। लेकिन पुस्तकालयों में हिंदी की आत्मा तलाश करने की बजाय अपने मन को टटोले की हम मातृभाषा को अपनाने की कितनी बात कर रहे हैं। क्योंकि इसका आत्म अवलोकन से ही हो पाएगा।
सोशल मीडिया
अब न्यायपालिका में भी हिंदी का इस्तेमाल होने लगा है। प्रशासनिक सेवाओं के लिए होने वाली पढ़ाई में अब हिंदी को महत्व मिलने लगा है। जब देश के बड़े नेता दुनिया में कहीं भी जाते हैं तो वो अन्य भाषाओं के साथ ही हिंदी में भी बातचीत करते हैं और कई जगह दुभाषिये भी बैठाए जाते हैं। हमारे हिंदी कवि सम्मेलनों में हिंदी का भरपूर प्रचार प्रसार कर रहे हैं। इसको बढ़ावा देने के लिए औरों को प्रेरित करने का प्रयास भी कवियों द्वारा किया जा रहा है। सबसे अच्छी बात यह है कि वर्तमान में दुनिया में सबसे ज्यादा तेज दौड़ने वाली व्यवस्था सोशल मीडिया देखा जाए तो पूरे विश्व में हिंदी को सम्मान दिलाने का भरपूर प्रयास कर रही है। और हिंदी के प्रचार प्रसार में सहयोगी होने के साथ ही नई पीढ़ी इसे अपना रही है। सोशल मीडिया हिंदी साहित्य की गरिमा और जन आंदोलन की भाषा को बढ़ावा दे रहा है। युवा फेसबुक पर इसका भरपूर उपयोग कर रहे है। नई पुुरानी पीढ़ी को जोड़ने में इस मीडिया का योगदान युवा मानते हैं और इसका अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि सोशल मीडिया पर अंग्रेजी से ज्यादा हिंदी की पोस्ट पर लाइक मिल रहे हैं। हमारी भावी पीढ़ी भी यही चाहती है कि हिंदी को बढ़ावा देने के लिए सोशल मीडियों मंचों को बढ़ावा दें।
इंग्लिश मीडिया
कुछ लोगों का मानना है कि आज भी देश में अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ रहा है। मेरा मानना है कि इसमें बुराई क्या है। हमें तो अपनी मातृभाषा को बढ़ाना है। इसलिए इसे सोचने में समय खराब नहीं करना चाहिए कि फला भाषा का प्रभाव बढ़ रहा है। अंग्रेजी बोर्ड के स्कूलों के जो हिंदी पढ़ाई जा रही है और इसमें जो नंबर दिए जा रहे हैं उन पर नजर रखने की आवश्यकता है क्योंकि इन स्कूलों के बच्चें ना तो हिंदी में लिख पाते हैं ना जोड़ घटा कर पाते हैं। मगर नंबर भरपूर मिल रहे हैं। हिंदी का जो नुकसान हो रहा है वो इन स्कूलों में पढ़ाने के तरीके और ज्यादा नंबर दिए जाने के कारण हो सकता है। ऐसा मेरा मानना है।
दुनिया में हिन्दी
एक खबर के अनुसार इंटरनेट के युग में हिन्दी सिर्फ हिन्दुस्तान तक सीमित नहीं रही। हिन्दी दुनिया के कोने-कोने को अपने शब्दों में पिरो रही है। संचार के सभी साधनों से लेकर सोशल मीडिया पर हिन्दी का दबदबा है। हिन्दी सीखने-सिखाने वालों की लंबी लाइन है। यूट्यूब, वेबसाइट और ब्लॉग हिन्दी भाषा के दम पर आय के स्रोत बनकर उभरे हैं। तकनीक ने हिन्दी की पहुंच को और बढ़ा दिया। यूनीकोड के जरिए हिन्दी वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर के जरिए आज देश-दुनिया तक दिलों को आपस में जोड़ रही है। जानिए दुनिया में कहां से कहां तक पहुंची है आपकी-हमारी हिन्दी।
कवियों एवं लघु भाषाई समाचार पत्रों को दें सहायता
हिंदी दिवस के मौके पर मुझे जितना पढ़ने सुनने देखने को मिला उससे एक अहसास उभरकर सामने आया कि हिंदी को अपनाने में हम पीछे नहीं है लेकिन कुछ लोग हिंदी के नाम पर दुकान चल रही है हिन्दी की प्रमुखता और वर्चस्व रोकने में वो बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। जैसे सरकारी कार्यालय बैंकों में जब हिन्दी पखवाड़ा मनाए जाते हैं तो भी ज्यादातर बात अंग्रेजी और लेखन में भी अंग्रेजी अपनाने की कोशिश करते हैं। इसी प्रकार से राजभाषा हिन्दी विभाग से जुड़े जिन लोगों संस्थाओं को इस नाम पर पैसा और सुविधाएं दी जा रही है वो उन्हें ना देकर गांवों में रहने वाले कवियों लघु और भाषाई समाचार पत्रों को अगर सरकार आर्थिक और सामाजिक साधन उपलब्ध कराए तो दावे से कह सकता हूं कि अगले हिन्दी दिवस पर हमें यह कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि मातृभाषा को बढ़ावा मिलना चाहिए क्योंकि जब जनमानस हिन्दी को बढ़ावा देगा तो अंग्रेजी के रंग में रंगे लोग भी अपने आप को हिन्दी के रंग में ढालने में समय नहीं लगाएंगे ऐसा मैं देखा और सुना है और कई बार खुद आजमाया भी है।
अंग्रेजी में बोलने वालों को टोक दो
कुछ दशक पूर्व पी चिदंबरम केंद्रीय गृहमंत्री थे तो वो एक दौरे पर मेरठ आए पत्रकार सम्मेलन में अंग्रेजी में बोल रहे थे मैंने उन्हें बताया कि आप हिन्दी नहीं जानते और हम अंग्रेजी तो उन्होंने हिन्दी में पत्रकार वार्ता की और बाकी दुभाषिये के रूप में जिलाधिकारी टीआर जोजफ को बैठाकर पत्रकार सम्मेलन किया। ऐसा कई मौके पर होता है कि सामने वाला जब अंग्रेेजी में बोलता है तो हम गूंगे बहरे की तरह हो जाते है। जिस दिन हमने अंग्रेजी बोलने वालों को टोकना शुरू कर दिया उस दिन हिन्दी की पताका चारों ओर फहराएगी यह बात विश्वास से कही जा सकती है।
दुनिया में कहां से कहां तक है आपकी-हमारी हिन्दी
हिन्दी सीखने-सिखाने वालों की लंबी लाइन है
दुनिया में हिन्दी
दुनिया की चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा।
भारत की राजभाषा, अधिसंख्य आबादी बोलते-समझते हिन्दी।
नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मॉरीशस, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद तक हिन्दी।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त।
इंटरनेट एवं तकनीकी क्षेत्र में तेजी से बढ़ती हिन्दी। एप्स, सोशल मीडिया, वेबसाइट शामिल।
स्रोत मेटा एआई
यूट्यब पर छाए हिन्दी चैनल, सब्सक्राइबर
लर्न हिन्दी विद मैक्स, 15 लाख
हिन्दी टीचर, 12 लाख
लर्न हिन्दी, आठ लाख 30 हजार
हिन्दी लैंग्वेज, पांच लाख 40 हजार
हिन्दी लैंग्वेज स्कूल, चार लाख 30 हजार
हिन्दी क्लासेज-तीन लाख 40 हजार
लर्न हिन्दी ऑनलाइन-तीन लाख 30 हजार
हिन्दी ट्यूटर-दो लाख 80 हजार
हिन्दी लैशन-दो लाख 40 हजार
स्पीक हिन्दी-दो लाख 20 हजार
स्रोत मेटा एआई
दुनिया में हिन्दी भाषी उपयोगकर्ता
भारत, 5.5 अरब
नेपाल, 20 लाख
भूटान, 10 लाख
पाकिस्तान, 10 लाख
बांग्लादेश, 05 लाख
मॉरिशस, 05 लाख
गुयाना, 02 लाख
सूरीनाम, 01 लाख
त्रिनिदाद-टोबैगो, 01 लाख
अन्य देशों में हिन्दी भाषी समुदाय, दस लाख
संख्या अनुमानित
स्रोत मेटा एआई
इंटरनेट पर हिन्दी की धमक
एक लाख से अधिक हिन्दी वेबसाइट
10 हजार से अधिक हिन्दी ब्लॉग्स
20 करोड़ से अधिक हिन्दी उपयोगकर्ता वाट्सएप पर
10 करोड़ से अधिक हिन्दी उपयोगकर्ता फेसबुक पर
01 करोड़ से अधिक ईमेल प्रतिदिन हिन्दी में
10 करोड़ टैक्स्ट मैसेज प्रतिदिन
स्रोत मेटा एआई, आंकड़े अनुमानित
चर्चित हिन्दी एप-वेबसाइट
डियोलिन्गो-हिन्दी भाषा को सीखने की सुविधा।
हैलो टॉक-भाषा सीखने की एप जो पास के हिन्दीभाषी से मिलाती है।
हिन्दी डिक्शनरी-भाषाकोश एप जो अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद का विकल्प देती है।
जियोचौट-संदेशसेवा एप जो हिन्दी भाषा को सहायता देती है।
स्रोत मेटा एआई
विदेशी विवि में हिन्दी
यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकॉगो, यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो, कोलम्बिया यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन, यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज, यूनिवर्सिटी ऑफ टोरेन्टो, ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी। इन सभी में हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य, संस्कृति, भारतीय संस्कृति के विभिन्न कोर्स संचालित हैं।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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