13 नवंबर को यूपी में उपचुनाव के लिए मतदान होना है। इससे पहले सभी राजनीतिक दल और उम्मीदवार जीतने के लिए प्रचार प्रसार लोगों से मिलने के लिए एडी से चोटी तक का जोर लगाते हैं। ऐसे में 15 नवंबर को गंगा स्नान को देखते हुए भारत निर्वाचन आयोग को उपचुनाव की मतदान की तारीख आगे बढ़ानी चाहिए। सभी जानते हैं कि दीपावली के बाद आने वाला गंगा स्नान देश में धार्मिक वातावरण में मनाया जाता है। इस दिन नदियों में श्रद्धालु स्नान करते हैं। इस मौके पर दान दक्षिणा और पूजन भी किया जाता है। बड़ी संख्या में नागरिक नदियों के किनारे चार पांच दिन पहले से ही तंबू लगाकर पूजा पाठ करते हैं। कहने का आश्य सिर्फ इतना है कि गंगा स्नान बहुसंख्यकों की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है। प्रदेश के एक मंत्री द्वारा भी निर्वाचन आयोग से उपचुनाव की तारीख आगे बढ़ाने की मांग की है। एक खबर के अनुसार उत्तर प्रदेश के कौशल विकास राज्यमंत्री कपिलदेव अग्रवाल ने मुख्य निर्वाचन अधिकारी को पत्र लिखा है। उन्होंने कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान के दिन उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव होने के कारण चुनाव की तिथि आगे बढ़ाने की मांग की है। राज्यमंत्री कपिल देव अग्रवाल ने निर्वाचन अधिकारी केंद्र सरकार को पत्र लिखा। इसमें अवगत कराया कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देशभर के लोग गंगा स्नान के लिए जाते हैं और पूजा-अर्चना के साथ भंडारा करते हैं। गंगा स्नान के लिए श्रद्धालु तीन-चार दिन पहले ही धार्मिक स्थलों की ओर चले जाते हैं। आगामी 13 नवंबर को प्रदेश में उपचुनाव के लिए मतदान है। इसको दृष्टिगत रखते हुए मतदान की तिथि आगे बढ़ाई जाए।
इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए मुझे लगता है कि बाकी राजनीतिक दलों के नेताओं को भी निर्वाचन आयोग से इस बारे में आग्रह कर चुनाव की तिथि आगे बढ़ाने के लिए कहना चाहिए कि मतदान की तिथियों को यह देखते हुए तय करना चाहिए कि उसके आसपास कोई त्योहार तो नहीं है। क्येंकि इससे या तो मतदान कम होगा क्योंकि धार्मिक भावनाओं को छोड़ने की आशा नहीं की जा सकती है। इसलिए निर्वाचन आयोग की ज्यादा मतदान कराने की मंशा है वो भी प्रभावित होता है। इसलिए चुनाव की तारीख तय करने से पूर्व हर विषय पर दलों से भी चर्चा जरूर की जानी चाहिए।
क्या हमारे नेता जातियों के आधार पर टिकट देना बंद कर देंगे
मथुरा में संघ परिवार के हुए विचार सम्मेलन में वैसे तो हिंदुओं को संगठित करने अन्यों को उनसे जुड़ने व सांपद्रायिक सौहार्द भाईचारा को मजबूत करने पर बल देते हुए आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि हिंदू समाज जाति भाषा या प्रांत के भेदभाव में बटेगा तो निश्चित रूप से कटेगा। आयोजित संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक के समापन पर होसबोले ने जो कहा वो अपने आप में देश की एकता और अखंडता की मजबूती के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है। इस पर चलते हुए ही हम बहुसंख्यकों को एक साथ जोड़ने और हिंदू विचारधारा से जोड़ने में सफल हो सकते है। उनके कथन के बाद भाजपा के सभी बड़े नेता इस बात को दोहरा रहे हैं कि हिंदू बटेगा तो कटेगा और ऐसा होने नहीं देंगे। कुछ ऐसा ही सपा नेता पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव का कहना है कि पीडीए ना तो कटेगा ना बटेगा। जो ऐसी बात करेगा वो पिटेगा। अब हिंसा की बात तो हम नहीं करते। लेकिन संघ प्रमुख मोहन भागवत की मौजूदगी में जो हिंदू को ना कटने देंगे ना बंटने देंगे का निर्णय लिया गया उसे देश व समाजहित का कह सकते हैं।
लेकिन सवाल यह उठता है कि संघ की इस विचारधारा में सुर में सुर मिला रहे सत्ता और विपक्ष के नेता इस िंबंदु पर टिके रह सकते हैं क्योंकि होसबोले की बात से देश में खुशहाली का माहौल कायम रखने वालों का मत है कि सबसे ज्यादा जातिवाद को बढ़ावा कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा ही दिया जाता है क्योंकि चुनाव का टिकट जातिगत आधार को ध्यान में रखकर बांटे जाते हैं और उसके बाद जहां इस क्षेत्र में जिसकी ज्यादा आबादी होती है उसी के नेताओं को चुनाव प्रचार और जाति के वोटों के इकटठा करने के लिए भेजा जाता हैं लोगों का यह भी कहना है कि सत्ताधारी दल कोई भी हो वो अधिकारियों को अपनी जातियों के ही तैनात करने की कोशिश करता है। ऐसे में होसबोले की इस कथन पर हां में हां मिलाने वाले कितना पालन कर पाएंगे यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन एक बात कही जा सकती है कि अगर संघ परिवार इस भावना को घर घर तक पहुंचाने में सफल रहा तो देश में रामराज की स्थापना को कोई नहीं रोक सकता और गांधी जी का सपना साकार होकर रहेगा लेकिन जातिवाद का जो जहर है उसे दूर करने की बड़ी आवश्कता है। अगर ऐसा होता है तो कई सामाजिक बुराईयां दूर हो सकती है।
नर्सिंग होमों में खुले मेडिकल स्टोर से दवाई लेने के लिए नहीं किया जा सकता मजबूर
केंद्र और प्रदेश सरकार का सराहनीय निर्णय
जैसे जैसे बीमारियां बढ़ रही हैं और दवाईयां महंगी हो रही है वैसें ही केंद्र और प्रदेश सरकारें नागरिकों को निशुल्क चिकित्सा दिलाने के लिए प्रयास कर रही हैं। वो बात दूसरी है कि सरकार का यह काम और मंशा कुछ नर्सिंग होमों के मालिक और डॉक्टर पूरी नहीं होने दे रहे। सरकार को अगर योजना का लाभ जनता को पहुंचाना है तो इन्हें सुधारने का काम भी इन्हें करना होगा और जो सरकारी नीतियों का उल्लंघन करता पाए उसके अस्पताल का लाइसेंस निरस्त किया जाए तो मैं भी सहमत हूं कि आम आदमी को चिकित्सा लाभ मिल सकता है।
पीएम मोदी द्वारा चार पांच करोड़ परिवार के लोगों को स्वास्थ्य बीमा और आयुष्मान योजना का लाभ पहुंचाने के लिए 70 साल से अधिक उम्र के व्यक्ति के लिए अभियान शुरू किया जाएगा। मुझे लगता है कि पीएम की सोच रूको सोचो एक्शन लो की परिधि में आम आदमी के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले आ ही जाएंगे। फिलहाल एक अच्छा निर्णय यूपी सरकार द्वारा किया गया है कि दवा भंडारण पर लगेगी रोक। नर्सिंग होमों में चलने वाले मेडिकल स्टोरों पर कसा जाएगा शिकंजा तथा निजी अस्पताल में नहीं बेची जा सकेगी मनचाहे ब्रांड की दवा। अगर यह योजना लागू हो जाती है तो जनता को चिकित्सा सुविधा लेने में समस्या नहीं होगी। कुछ अस्पताल अपने परिसर में मेडिकल स्टोर खुलवा देते हैं और उसका संचालक मनचाही कीमत पर पूरे रेट में उसे बेचता है जबकि खुले बाजार में हर दवाई पर 20 प्रतिशत की छूट दी जाती और दस प्रतिशत तो सबको देते हैं।
कितनी संख्या में दवा विक्रेता भी मांग कर रहे थे कि अस्पताल में चलने वाले मेडिकल स्टोर बंद हो और उनसे दवाई खरीदने के लिए मजबूर ना किया जाए। अब सरकार के इस आदेश से दवा व्यापारियों में भी खुशी की लहर है। इंतजार इस बात का है कि सरकार ने आदेश लागू कराने के लिए जो अधिकारी लागू किए हैं वो इसे लागू करा दें को सरकार की आम आदमी को सस्ती चिकित्सा दिलाने का सपना साकार हो सकता है।
- रवि कुमार बिश्नाई
संस्थापक आरकेबी मीडिया
मैनेजिंग एडिटर TazzaKhabar.com