Date: 21/11/2024, Time:

काबिल बच्चों की शिक्षा में आर्थिक कारणों से ना आए रूकावट, इसके लिए हों प्रयास, जहां तक अतुल का मामला है उसकी 17500 की फीस मैं दे सकता हूं, सरकार दाखिला दिलाने की व्यवस्था करे

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केंद्र और प्रदेश की सरकारें हर बच्चे को शिक्षित बनाने के लिए हर संभव प्रयास तो कर ही रही है। पढ़ लिखकर बच्चों द्वारा अच्छी नौकरी पाने और परिवार में आने वाले खुशहाली के चलते अब अमीर ही नहीं गरीब भी अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने और कामयाब बनाने के लिए प्रयासरत नजर आते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब सरकार परिवार और सामाजिक संगठन साक्षरता को बढ़ावा दे रहे हैं और कहीं कही तो उच्च शिक्षा के लिए पूरी फीस भी सामाजिक संगठनों व संपन्न लोग भरने को तैयार रहते हैं। ऐसे में आर्थिक रूप से यूपी के मजबूत जिले मुजफ्फरनगर के एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे अतुल को मात्र 17500 रूपये की फीस ना भर पाने के चलते आईआईटी धनबाद में इलेक्ट्रिल इंजीनियरिंग में एडमिशन मिलने में परेशानी क्यों आई।
एक खबर के अनुसार यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के दिहाड़ी मजदूर के बेटे अतुल ने कड़ी मेहनत से जेईई पास कर ली। आईआईटी धनबाद में उसे इलेक्ट्रिल इंजीनियरिंग में सीट आवंटित की गई थी, लेकिन गरीबी के चलते समय पर फीस के 17,500 रुपये जमा नहीं कर पाया और सीट गंवा दी। सुप्रीम कोर्ट ने छात्र को हर संभव मदद करने का भरोसा दिया है।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने 18 साल के छात्र अतुल कुमार से कहा कि आप पिछले तीन माह से क्या कर रहे थे, क्योंकि शुल्क जमा करने की अंतिम तिथि 24 जून थी। पीठ ने टिटौड़ा गांव निवासी इस छात्र की याचिका पर आईआईटी मद्रास को नोटिस जारी किया। आईआईटी मद्रास ने इस वर्ष जेईई एडवांस का आयोजन किया था। अतुल ने गुहार लगाते हुए कहा कि आईआईटी मेरा सपना है, यह आखिरी प्रयास था।
हर दर से मायूसी मिली
अधिवक्ता ने कहा कि छात्र के माता-पिता ने सीट बचाने के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, झारखंड विधिक सेवा प्राधिकरण और मद्रास हाईकोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया। उन्होंने कहा कि कहीं से भी मदद नहीं मिलने के बाद शीर्ष अदालत का रुख किया है।
मेरा मानना है कि पैसे के अभाव में फीस समय से जमा न कर पाने का दोषी ना मानते हुए बिहार व केंद्र सरकार को तो मानवता की दृष्टि से टिटौड़ा गांव निवासी अतुल को एडमिशन दिलाने में मदद करनी ही चाहिए और क्योंकि आजकल सुप्रीम कोर्ट से सभी को न्याय मिलने की उम्मीद बंधी हुई है। इसलिए इस होनहार बच्चे का आईआईटी का सपना पूरा कराने के लिए कोई कसर नहीं रहनी चाहिए। जहां तक फीस का सवाल है। अगर उसका इंतजाम नहीं हो पाता है तो साढ़े 17 हजार रूपये मैं दे सकता हूं क्योंकि आईआईटी का एग्जाम पास करना ही किसी गरीब के लिए बहुत बड़ी बात है और इससे उसके ही नहीं उसके परिवार के भी सपने जुड़े होते हैं। जब पूरा होने का समय आता है तो पैसों के अभाव में ऐसा नहीं होना चाहिए। देशभर में दानवीरों की कमी नहीं है। मुझे लगता है कि इस तरह के मामलों को रोकने के लिए काबिल बच्चों को शिखर तक पहुंचने में मदद करने के लिए हर जिले में शिक्षा प्रेमियों के संगठन गठित होने चाहिए। और अगर कोई बच्चा शीर्ष तक पहुंचकर सिर्फ पैसे के चक्कर में प्रवेश से वंचित ना रहे इसका ध्यान सभी को रखने में पीछे नहीं रहना चाहिए।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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