ऑन लाइन व्यापार चाहे किसी भी क्षेत्र का हो वो आम व्यापारी के व्यवसाय पर प्रभाव तो डाल ही रहा है। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता। लेकिन सवाल यह उठता है कि जो आम आदमी है वो अपने पुराने परिचित लोगों से सामान मंगाने की बजाए ऑनलाइन मंगाने को क्यों प्रेरित हो रहा है। इसका विरोध करने वालों को पहले इस संदर्भ में सोचना और उस कमी को दूर करना होगा जिससे उनके पुराने ग्राहक और परिचित दुबारा से उनसे आनमिले।
अब अगर हम बात करे दवाईयों के ऑनलाइन व्यापार को जिसका हर मेडिकल स्टोर का मालिक जमकर विरोध कर रहा है इस संदर्भ में दवा विक्रेता और उनका संगठन जिला मेरठ केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के बैनर पर ज्ञापन भी दे रहे है और विरोध प्रर्दशन भी कर रहे है। मगर मुझे लगता है कि इनकी मांग सही होने के बाद भी शायद विरोध का असर तब तक होने वाला नहीं है जब तक यह इसकी जड़ में नहीं जाएंगे कि इनसे दवाई क्यों मंगा रहे है लोग। लेकिन जहां तक मुझे लगता है कि वो यह है कि ऑनलाइन जो दवाईयां मंगाई जा रही है उसको यह कहकर तो नहीं नकारा जा सकता कि वो घटिया होंगी। क्योंकि मैंने कई बार देखा है कि नागरिक अपने डाक्टरों को दिखाते है और फिर उसका उपयोग करते है। तो पूरी तौर पर घटिया होने की बात तो मानी नहीं जा सकती। लेकिन मेरा मानना है कि अगर दवा व्यापारी ऑन लाइन दवा व्यापार का मुकाबला और अपने ग्राहकों को बांधे रखना चाहते है तो उन्हें अपनी दुकानों पर चाहे वो रिटेल की हो या थोक की दवाईयों पर कितनी छूट देंगे इसके पंपलेट या तख्ती बोर्ड जरूर लगानी पड़ेगी। क्योंकि अब ऑन लाइन व्यापार न करने वाले कई मेडिकल स्टोरों के संचालक अपनी दुकानों के बाहर 15 प्रतिशत छूट की सूचना लगाये रखते है। और ऑनलाइन दवाई सप्लाई करने वाले 20 प्रतिशत और कुछ दवाईयों पर 25 प्रतिशत की छूट देते है। एवं कई दवाईयां तो ऐसी है जिन पर 50 प्रतिशत की छूट होती है जिसे एक के साथ एक देकर दुकानदार पूरा करते है। ऐसे में अगर मेरठ केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन अपने सदस्यों की दुकानों पर 20 प्रतिशत छूट दवाईयों पर देने के पट लगवायेंगे तो मुझे लगता है कि उनका 100 नहीं तो 90 प्रतिशत व्यापार वापस उनके पास आ जाएगा। जहां तक दवाईयों की गुणवत्ता की बात है वो तो पूर्व में भी खबरें पढ़ने को मिलती ही रहती थी कि फला दुकान पर एक्सपायरी दवा दे दी गई और कई मौकों पर नकली दवाईयां बनने और बिकने की खबरें भी उपभोक्ताओं के सामने खूब आती थी। इसलिए गुणवत्ता का ध्यान तो उपभोक्ता को हर जगह रखना ही पड़ेगा। हां एक बात बिल्कुल सही है कि ये जो नर्सिंग होमों वाले या डाक्टर अपने यहां से या अपनी मनपंसद जगह से दवाईयां खरीदने के लिए मजबूर करते है वो गलत है और एसोसिएशन की मांग इस मामले में पूरी तौर पर सही है। सरकार को पूरे देश प्रदेश और जिलों में नर्सिंग होमों में बने मेडिकल स्टोर बंद करवाने चाहिए और यह व्यवस्था करे कि मरीज डाक्टर के लिखे दुकानदार से ही दवाई ले यह जरूरी नहीं है। हां एसोसिएशन की यह बात सही है कि जिला खाद्य एवं औषधी विभाग फूड ग्रेड दवाओं के नमुने लेकर उनकी एमआरपी का मापदंड तय करे क्योंकि दवाईयां चाहे मेडिकल स्टोर पर बिक रही हो या अन्य जगह पर सब पर लागू होनी चाहिए।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
दवा विक्रेता दुकानों पर लगाये 20 प्रतिशत छूट के बोर्ड, सैंपल तो सबके ही भरे जाने चाहिए! ऑनलाइन बिकने वाली दवाईयों के मुकाबले अपना व्यापार बचाये रखने हेतु
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