नई दिल्ली 06 जनवरी। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व सदर-ए-रियासत डॉक्टर कर्ण सिंह ने जम्मू कश्मीर को जल्द से जल्द राज्य का दर्जा दिए जाने की वकालत करते हुए कहा है कि मौजूदा स्थिति ‘स्वीकार्य नहीं है’।
सिंह ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाना किसी के ‘गले नहीं उतरता, न डोगरों के न कश्मीरियों के’। हाल ही में दिए गए एक साक्षात्कार में, तीन बार के राज्यसभा सदस्य और पूर्ववर्ती राज्य के सदर-ए-रियासत सिंह ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद हुए बदलावों पर भी अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर का संवैधानिक दर्जा बदले जाने से पहले पूरी बहस इस बात पर हुआ करती थी कि राज्य को कितनी स्वायत्तता दी जाए।
उन्होंने कहा, ‘370 हटाए जाने के बाद बात पूरी तरह बदल गई।’ अमेरिका में भारत के राजदूत रह चुके सिंह ने कहा कि जम्मू कश्मीर तो भारत का ‘‘माथा और मुकुट है… अब मुकुट छोड़कर हिमाचल और हरियाणा से भी नीचे आ गए हैं। इसे दुरुस्त करने की जरूरत है। मुझे विश्वास है कि सरकार ये जल्द से जल्द करेगी।’
राज्य का दर्जा बहाल करने के बारे में पूछे जाने पर, पूर्व केंद्रीय मंत्री सिंह ने दृढ़ता से जवाब दिया, ‘निश्चित रूप से, पूर्ण राज्य का दर्जा।’
उन्होंने हिमाचल प्रदेश के समान अधिवास कानूनों की भी वकालत की, जो स्थानीय लोगों को भूमि स्वामित्व तक सीमित करते हैं। उन्होंने कहा, ‘ये अधिवास कानून है जो हम चाहते हैं।’ सिंह ने दशकों पहले राज्य के तीन हिस्सों में विभाजन का प्रस्ताव रखा था, जिसमें जम्मू को हिमाचल प्रदेश में विलय करना, लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाना और कश्मीर को राज्य के रूप में जारी रखना शामिल था।
यह स्वीकार करते हुए कि यह प्रस्ताव अब प्रासंगिक नहीं है, सिंह ने कहा, ‘हर कोई मेरे पास आया और उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया। आज हालात अलग हैं। जम्मू की अब अपनी अलग पहचान है।’
जब उनसे पूछा गया कि क्या उनके पास अभी ऐसा कोई क्रांतिकारी प्रस्ताव है, तो उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि अब एकमात्र क्रांतिकारी सुझाव राज्य के लोगों के हितों की रक्षा के लिए राज्य का दर्जा बहाल हो, अधिवास कानून लागू हो तथा जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों के बीच उचित संतुलन बनाने का एक ईमानदार प्रयास हो।’
कर्ण सिंह ने कहा ये उसी स्थिति में संभव है जब केंद्र और राज्य के बीच शांतिपूर्ण संबंध हों। जम्मू कश्मीर से 370 हटाए जाने के बारे में उनकी प्रतिक्रिया पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वो दुविधा में थे क्योंकि इस पर लोगों की राय अलग-अलग थी। इसलिए उन्होंने ‘बड़े तरीके से कहा कि इसमें कुछ अच्छी बातें हैं।’
कर्ण सिंह ने कहा कि इससे पाकिस्तान से आए लोगों को वोट का अधिकार मिला। उन्होंने कहा कि पहले महिलाओं के साथ ये अन्याय होता था कि राज्य से बाहर शादी करने पर उनका संपत्ति का अधिकार चला जाता था। केंद्र ने पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया, जिससे जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त हो गया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया।
दिसंबर 2023 में, सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष दर्जे को रद्द करने के संबंध में केंद्र की कार्रवाई को बरकरार रखा, लेकिन राज्य का दर्जा जल्दी बहाल करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
साक्षात्कार के दौरान, सिंह ने अब्दुल्ला परिवार, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के साथ अपने संबंधों पर भी विचार किया। उन्होंने शेख अब्दुल्ला को एक “उल्लेखनीय” कश्मीरी नेता बताया, जिन्होंने क्षेत्र के राजनीतिक परिदृश्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया, लेकिन राजशाही और उभरती लोकतांत्रिक ताकतों के बीच ऐतिहासिक तनाव को देखते हुए उनके संबंधों की जटिलताओं को स्वीकार किया। जम्मू-कश्मीर की पहली विधानसभा के गठन के समय को याद करते हुए, सिंह ने कहा कि उनके पिता महाराजा हरि सिंह और उनके कई वफादारों ने सोचा था कि उन्हें ‘सद्र-ए-रियासत’ की भूमिका नहीं निभानी चाहिए क्योंकि शेख अब्दुल्ला ने डोगरा और महाराजा का अपमान किया था। “तो यहीं से एक तरह से तनाव शुरू हुआ। मुझे लगता है कि यह राजनीति का एक अपरिहार्य नतीजा था। आप देखिए, मुझे एहसास हुआ कि राजशाही ने अपना महत्व खो दिया है। कि भविष्य लोकतंत्र में है। मैं उस लोकतंत्र का हिस्सा बनना चाहता था,” उन्होंने कहा।