राजनेताओं उम्मीदवारों सहित सभी छोटे बड़े राजनीतिक दल चुनाव को मददेनजर रख अपना घोषणा पत्र घोषित कर रहे हैं। लेकिन इस वक्त की सबसे बड़ी देशव्यापी समस्या की ओर कोई भी ध्यान देने को कोई तैयार नहीं है यह विषय सुरसा के मुंह की भांति निरंतर बड़ा होता जा रहा है। सभी पाठक जानते हैं कि सुबह उठते ही मीडिया के किसी ना किसी क्षेत्र में अवारा और हिंसक जानवरों के आतंक की घटनाएं सुनने पढ़ने को मिलती है। जिम्मेदार कार्रवाई नहीं कर रहे। और अगर जनता अपने स्तर पर कोई कदम उठाती है तो एनिमल सुरक्षा से जुड़े लोग सीना तानकर खडे हो जाते है। क्येंकि अभी तक ना इनका विरोध कर रहा है। पिछले दिनों अदालत ने भी स्पष्ट किया कि आवारा जानवरों से नागरिकों की सुरक्षा किया जाना भी बहुत जरूरी है और एनिमल सोसायटी के लोग नागरिकों को बचाने के लिए इन जानवरों की पालने की व्यवस्था करे। उसके बावजूद शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जब कहीं किसी महिला पुरूष पर बंदर पिटबुल और आवारा कुत्ते चीते आदि जो अब बहुतायत में शहरों की ओर रूख करने लगे हैं नागरिक उनका शिकार ना होते हों। यह कहने में भी कोई हर्ज महसूस नहीं करता हूं कि अब तो यह लगने लगा है कि हर साख पर उल्लू बैठा है कहावत के समान हर घर के सामने आवारा बंदर कुत्ते या चीते सियार कब प्रकट हो जाएं इसके बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता। अब सवाल यह उठता है कि आखिर इनसे छुटकारा मिले तो कैसे मिले। मैं भी सोचता हूं कि मूकदर्शक जानवरों की सुरक्षा व खानपान की व्यवस्था होनी चाहिए और जो लोग इनके ठिकानों को उजाड़ रहे हैं उन पर कार्रवाई हो लेकिन करे कोई भरे कोई के समान आम आदमी परेशान होता रहे और अधिकारी व पुलिस एनिमल कार्यकर्ताओं की वजह से नागरिकों को बीमार और इनका शिकार होने के लिए छोड़ दे।
नेता और उम्मीदवार अगर ध्यान नहीं दे रहे हैं तो प्रिय पाठकों अब मौका भी है और समय भी। हम सबको मिलकर इन जानवरों के उत्पीड़न को राष्ट्रीय समस्या बनाने का मौका नहीं चूकना चाहिए। इस क्रम में चाहे उम्मीदवार हो या दलों के नेता। सबके सामने जब वो वोट या सहयोग मांगने आए तो उनसे यह वादा लेना चाहिए कि वो इन जानवरों के उत्पीड़न से छुटकारा दिलाने के लिए कोई योजना लागू कराएंगे और उसका पालन ना कराने वालों पर कार्रवाई कराई जाएगी। लोकतंत्र में तो सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है। संविधान में हमें अधिकार मिले हैं इससे में यह कहने में गलत नहीं समझता हूं कि आवारा जानवर बंदर हो गया शेर, कुत्ता हो या सियार वो हमला करता है और उसे बचाने के लिए एनिमल केयर सोसायटी के लोग सामने आते हैं तो जिस प्रकार जानवरों के उत्पीड़न पर रिपोर्ट दर्ज होती है तो उसी प्रकार जानवरों के समर्थकों के खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज होनी चाहिए। जिस प्रकार लोगों पर पुलिस मुकदमे चलाती है तो यह भी उत्पीड़न करने वाले अपराधी हुए और लोकतंत्र में सबको अपने बचाव का अधिकार है तो इसलिए अब इस समस्या को देशव्यापी रूप देने का समय आ गया है जो हमें चूकना नहीं चाहिए। होली पर सब मिलकर तय करें कि अब हम उत्पीड़न और अत्याचार किसी का नहीं सहेंगे और करने वाले जानवरों के खिलाफ आवाज बुलंद की जाए। मुझे लगता कि इस कठिनाई से तभी हम सुरक्षा पा सकते हैं।
- रवि कुमार विश्नोई
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