asd क्या गर्मी और लू का असर सरकारी नौकरों और रईशों पर ही होता है, असंगठित क्षेत्रों की ओर कोई क्यों नहीं देता ध्यान

क्या गर्मी और लू का असर सरकारी नौकरों और रईशों पर ही होता है, असंगठित क्षेत्रों की ओर कोई क्यों नहीं देता ध्यान

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हर साल गर्मी बरसात और ठंड जब से होश संभाला तभी से आती दिखाई देती हैं परेशानियों के अलावा मौसम का अपना अलग आनंद भी है। मगर अब कई परेशानियां इनको लेकर उत्पन्न होने लगी है या उसका प्रचार ज्यादा हो रहा हैं। अगर ध्यान से देखे तो गरीब आदमी के लिए यह तीनों ही मौसम अपने आप में महत्वपूर्ण है। क्योंकि गर्मी से बचने के लिए वह हिल स्टेशन नहीं जा सकता तो यहीं ठंड का मजा तीन माह लेता है। रेन डांस क्लबों में जाकर करना उसके बस का नहीं है इसलिए वह बारिश में खुलकर सड़को पर मजा लेता है। गर्मी में तो बड़ा आदमी एसी से ठंड का अहसास करता है लेकिन गरीब आदमी के लिए यह संभव नहीं है। मगर यह भी सही है कि पिछले कुछ दशक से शहर हो या गांव आबादी के बीच बढ़ती गंदगी सड़कों पर कूड़ा नाले कटते पेड़ पहाड़ और जमीन पानी के दोहन ने इन मौसमों का मजा ही बिगाड़ दिया है। कुछ प्रचार माध्यमों से इनको लेकर मन में डर सा बैठ जाता है। लेकिन एक सवाल उठता है कि पढ़ने को मिलता है कि सौ साल बाद पड़ी इतनी गर्मी या ठंड जिससे लगता है कि सौ साल पहले भी ऐसा मौसम रहता होगा लेकिन जो बुजुर्गों से सुनते हैं उससे ऐसा नहीं लगता। सरकार गर्मी और लू से बचाने के लिए आए दिन नए नए आदेश कर रही है। तो संबंधित विभागो के अधिकारी अपने कर्मचारियों को बचाने के लिए पेड़ों पर छिड़काव करा रहे हैं तो कहीं चौराहों पर तिरपाल लगा रहे हैं। जो भी हो सकता है सब किया जा रहा है। सवाल यह उठता है कि अपने देश में जो सरकारी नौकरी करते हैं सिर्फ वो ही नहीं रहते। खेत खलिहानों और सड़कों पर मजदूरी राजमिस्त्री जैसे असंगठित क्षेत्र के जो मजदूर चिलचिलाती धूप और लू के थपेड़ों के बीच रोटी कमाने के चक्कर में खुले आसमान और तपती गर्मी में काम कर रहे हैं वो भी इंसान है। सरकार ने लू से मरने वाले हर व्यक्ति के परिवार को शायद चार लाख का मुआवजा देने की घोषणा की है जो अच्छी बात है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि गरीब अमीर सबको इन बीमारियों से बचाने के लिए जो जरूरी कदम है और जिसके लिए सरकार जो करोड़ो रूपये विभागों को दे रही है फिर भी उसमें सुधार क्यों नहीं हो रहा। मेरा मानना है कि सही मायनों में सरकार की मंशा के तहत किया जाने वाला पौधारोपण पूर्ण रूप से हो पानी की बर्बादी रूके और जो यह पर्यटन स्थलों पर पहाड़ों की कटाई हो रही है उसे रोकने के साथ ही नालों की सफाई सडकों पर कूड़ा समय से उठवाने और अन्य जरूरी उपाय जिनके लिए बजट भी मिल रहा है अगर किए जाएं तो ना तो वातावरण दूषित होगा और ना ही गर्मी बरसात ठंड का मौसम बिगड़ेगा। आवागमन आसानी से हो सकता है। पानी के छिड़काव से हम जो जल की बर्बादी कर रहे हैं और आम आदमी जो मजदूर कर रहा है आसानी से जीवन यापन कर सकता हैं अगर हम प्रदूषण बढ़़ने के कारणों को नहीं रोक सकते तो मजदूरों को राहत पहुंचाने के लिए ऐसे उपाय जरूर करने चाहिए जिससे किसी मां का लाल उससे बिछड़़ ना जाए क्येांकि अपनों के बिछड़नों का जो दुख है उसे कोई भी मुआवजा पूरा नहीं कर सकता।
माननपीय प्रधानमंत्री जी व यूपी के सीएम द्वारा स्वच्छता के साथ ही जल बचाओ पेड़ लगाओ आदि अभियान चलाए गए है। मेरा मानना है कि अधिकारी उन्हीं को पूरा कर लें कि बिगड़ते मौसम में सुधार और पैसे की बचत हो सकती है और आम आदमी अपना काम आसानी से कर सकता है। मेरा सेवाभावी लोगों से आग्रह कि प्रदूषण रोकने के उपायों में पीएम और सीएम को मेल वॉटसऐप से सुझाव भेजे। इसका असर होगा और जीवन खुशहाल होगा।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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