asd अवसाद तो डॉक्टर साहब आपकी फीस और दवाईयां भी बढ़ाती है जिस प्रकार कौओ के कोसने से ढोर नहीं मरते सोशल मीडिया पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं, क्या आपने पीएचडी कर रखी है

अवसाद तो डॉक्टर साहब आपकी फीस और दवाईयां भी बढ़ाती है जिस प्रकार कौओ के कोसने से ढोर नहीं मरते सोशल मीडिया पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं, क्या आपने पीएचडी कर रखी है

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गांवों में कहावत सुनने को मिलती रही है कि गरीब की जोरू सबकी भाभी और गरीब की बेटी की उम्र एक बढ़ती नजर आती है। कुछ ऐसा ही आजकल सोशल मीडिया के बारे में कुछ लोगों द्वारा ऐसी ही राय अपनाई जा रही है। जिसे देखों वो इसकी आलोचना करने में लग जाता है। जो दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। बीते दिनों एक डॉक्टर का बयान पढ़ा कि अवसाद बढ़ा रही है सोशल मीडिया की लत। कुछ का कहना होता है कि यह अकेलेपन को बढ़ावा दे रही हैै। कुछ कहते हैं कि यह मनोरोगी बना रही है। जो इसकी आलोचना करते हैं उसमें से ज्यादातर सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। क्योंकि जिस तरह किसी चीज के नुकसान और फायदे होते हैं तो उसी प्रकार सोशल मीडिया के फायदे 75 प्रतिशत और 25 प्रतिशत नुकसान है। लत तो हर चीज की बुरी होती है। उसके बारे में कोई चर्चा नहीं करता। जिसे देखों वो सोशल मीडिया की आलोचना करने लगता है। अब कोई डॉक्टर से पूछे कि आपने कौन सी सोशल मीडिया की कमियों पर पीएचडी की है जो आपको यह पता है। कुछ दिनों के लिए आलोचना करने वालों को अपना लेखन और चिकित्सीय कार्य छोड़कर सोशल मीडिया की कमियां तलाशकर इस पर अध्ययन कर पीएचडी करनी चाहिए। उसके बाद इसके फायदों का ज्ञान हम करा देंगे लेकिन किसी चीज को बदनाम करना उचित नहीं कहा जा सकता। लोग तो यह भी कहते हैं कि डॉक्टर के यहां जाने से पहले ही इस बात का डर लगने लगता है कि कितनी फीस और महंगी दवाईयां लिखेगा। उसके लिए पैसे कहां से आएंगे। यह सभी बिंदु किसी में अवसाद बढ़ाने के लिए काफी है। मेरा मानना है कि कोई भी बात कहने से पहले यह सोचना चाहिए कि जिसके बारे में बोल रहे है। उसके कितने फायदे नुकसान है। कोई कुछ पूछ ले तो जवाब देना भी आने चाहिए लेकिन सिर्फ मीडिया में चमकने के लिए मुंह चलाने से ना तो सोशल मीडिया का कुछ बिगड़ने वाला है ना डॉक्टर को कुछ मिलने वाला है। अगर लोगों के अवसाद की इतनी चिंता है तो मरीजों को फ्री में देखना चाहिए और निशुल्क दवाई देनी चाहिए। एक सज्जन का यह कहना सही लगता है कि कई चिकित्सक इस बात से परेशान है कि इंटरनेट पर दवाई बताने के लिए डॉक्टर उपलबध है जिससे इन पर फर्क पड़ रहा है। अपनी झेप मिटाने के लिए वह सोशल मीडिया की आलोचना करने लगते है। ना तो किसी की आलोचना करने से कोई अपना काम रोकता है। इसलिए सब अपना काम करते रहे।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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