आज पूरे विश्व में जागरूक नागरिक फेफड़ा दिवस मना रहे हैं। अगर ध्यान से सोचे तो मानव जीवन में फेफड़ों का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि अगर यह स्वस्थ हैं तो कई बीमारियों से आदमी बचा रहेगा और लंबे समय पर जीएगा। फेफड़ों की बीमारी के लिए वैसे तो कई कारण हो सकते हैं मगर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है हर तरह का प्रदूषण और खान पान में अनियमितता व मिलावट वाली खाद्य सामग्री सबसे ज्यादा हानिकारक इस मामले में हो सकती है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी द्वारा खानपान में गंदगी व मिलावट को लेकर सख्त रूख अपनाया गया है। तो दूसरी ओर पराली से उठने वाले धुंए को भी इसके लिए घातक माना जा रहा है। लेकिन अगर ध्यान से देखें तो इस बीमारी में बढ़ोत्तरी के लिए सबसे ज्यादा आरटीओ विभाग और स्थानीय निकायों और उनका स्वास्थ्य विभाग सबसे ज्यादा दोषी नजर आता है। क्योंकि वाहनों से फैलने वाला प्रदूषण रोकने के लिए आरटीओ विभाग को जो जिम्मेदारी दी गई है उसके अधिकारी अन्य कामों में तो लगे रहते हैं लेकिन सड़कों पर जहरीला धुआं छोड़ने वाले वाहनों का चालान कर उन्हें रोकने के लिए उतना काम नहीं कर रहे हैं जितना करना चाहिए। दूसरी ओर कैंट बोर्ड हो या नगर निगम अथवा स्थानीय निकाय आवास विकास और प्राधिकरण इनके कूड़ा उठाने वाले वाहन बिना ढके कूड़ा ले जाने पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद सड़कों पर कूड़ा फैलाते और बदबू फैलाते वातावरण को दूषित कर रहे है। दूसरी और सड़कों पर पड़े कूडे से जो बदबू और धूल उड़ती है वो भी फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है। इस मामले में अगर देखें तो कहीं ना कहीं मुझ सहित आम आदमी भी दोषी है क्योंकि हमने सब काम सरकार पर छोड़ रखा है और सरकार ने अधिकारियों पर और वो अपनी जिम्मेदारी समझने को तैयार नहीं है। ऐसे में हम इन्हें नियमों का पालन करने के लिए मजबूर कर सकते हैं मगर यह सोचकर कि हमें क्या जरूरत है सरकार कर लेगी या कोई और हम भी शांत बैठ जाते हैं और सड़कों पर ऐसा देखते हैं तो नाक दबाकर निकल जाते हैं। साथियों अगर अपना स्वास्थ्य सही रखना है दवाईयों के खर्च से बचना है तो ग्रामीण कहावत भगत सिंह तो पैदा हो लेकिन मेरे घर में नहीं को अब त्यागना होगा। हमें खुद आगे बढ़कर इस समस्या के समाधान के लिए परिवार की खुशहाली के लिए प्रयास करना होगा। मेरा पराली को लेकर शोर मचाने वालों से आग्रह है कि मैं यह तो नहीं कहता कि पराली कूड़ा जलाने से नुकसान नहीं है मगर जीवन के कई दशक खेत खलिहानों में जब गेंहू और चावल की सफाई होती है तो उस माहौल में भी जीवन गुजारा और पराली जलाए जाने के माहौल में भी वक्त गुजारा गया लेकिन कभी फेफड़ों की इतनी बड़ी बीमारी होती नहीं सुनी जितनी मिलावटी खानपान जहरीले धुंए और गंदगी से होती है। एनजीटी का आदेश है कि सड़कों के किनारे टायर और प्लास्टिक ना जलाया जाए। उसके बावजूद ऐसा होता अनेक जगह दिखाई देता है लेकिन ताज्जुब है कि पराली को लेकर शोर मचाने वाले इस बारे में आवाज नहीं उठा रहे।
मुख्यमंत्री जी आदेश केंद्र हो या प्रदेश सबकी सरकारें खूब करती हैं। लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों की नागरिकों के अनुसार खाल इतनी मोटी और चिकनी हो गई है और शायद वह कानों में तेल डालकर और आंख बंदकर बैठ गए है कि उन्हें प्रदूषण फैलाने वाले माध्यम दिखाई नहीं देते। खाद्य सुरक्षा विभाग त्योहारों पर ही अभियान चलाता है। जिसका कोई औचित्य नजर नहीं आता है। मेरा मानना है कि पूरे साल मिलावटी खाद्य साम्रगी बेचने पर रोक एनजीटी के आदेशों का पालन और जहरीला धुआं फैलाने वाले वाहनों एवं हर प्रकार की गंदगी व रोकथाम हेतु अभियान चलाने की आवश्यकता है। तभी हम फेफड़ों की की बीमारियों को रोकने के साथ ही स्वस्थ खुशहाल परिवार में रह सकते हैं वरना विश्व फेफड़ा दिवस और स्वास्थ्य दिवस के नाम पर डर पैदा कर कुछ लोगों द्वारा जागरूकता के नाम पर अपनी आमदनी बढ़ाने और दवाई के खर्च में बढ़ोतरी की जाती रहेगा। ज्यो ज्यो दवा की मर्ज बढ़ता ही गया के समान बीमारी बढ़ती रहेगी और इसके इलाज के नाम पर एक वर्ग दिन रात संपन्न होता रहेगा तो आओ फेफड़ें ही नहीं हर प्रकार की बीमारी को दूर करने परिवार की खुशहाली के लिए इन्हें होने वाले कारणों पर रोक लगाने के प्रयास की शुरूआत करे तभी हमारा परिवार खुशहाल और स्वस्थ रहेगा।
डॉक्टर के अनुसार कम लोग जानते होंगे कि फेफड़ों के कुछ नंबर होते हैं। यदि ये नंबर पता रहें तो फेफड़े की बीमारी शुरुआती दौर में ही पकड़ में आ सकती है। पीक फ्लो मीटर में फूंक मारकर फेफड़ों की क्षमता आंकी जाती है। हर आयु व लंबाई की अलग-अलग पीक फ्लो दर होती है। पीक फ्लो दर से नंबर पता चलते हैं। निर्धारित नंबर से कम या ज्यादा होने पर माना जाता है कि फेफड़े कमजोर हैं।
सांस रोग विशेषज्ञ यह मानते हैं कि लोगों में शुगर, बीपी, हार्ट, व टीबी को लेकर जागरूकता है लेकिन फेफड़े की सेहत का पता नहीं होता। वो फेफड़े का चेकअप नहीं कराते हैं।
फेफड़े की ये बीमारियां बढ़ रहीं: दमा, ब्रांकाइटिस, टीबी, क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), कैंसर, फेफड़ों में सिकुड़न यानि फाइब्रोसिस तेजी से बढ़ रही हैं। 1990 में 2016 तक सीओपीडी बीमारी छठवें नंबर से अब तीसरे नंबर पर आ गई।
दोस्तों इन चीजों पर ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि फेफड़ों की बीमारी से दमा टीबी कैंसर आदि होने की संभावनाएं होती है। शुगर बीपी व हार्ट भी प्रभावित करते हैं। इसलिए किसी और के लिए नहीं अपने और परिवार के लिए जागरूक हो इससे देश का विकास होगा क्योंकि स्वस्थ नागरिक खुशहाल व्यवस्था का प्रतीक कह सकते हैं। लेकिन जीवन में योग का बड़ा स्थान है। इसमें हर बीमारी का इलाज छिपा है। इस बात को ध्यान में रखते हुए योग करें निरोगी रहें।
40 साल के पुरुषों में लंबाई के अनुसार सामान्य पीक फ्लो रीडिंग इतनी जरूरी
लंबाई पीक फ्लो दर (लीटर प्रति मिनट)
175 सेमी. 600 से 630
167 सेमी. 590 से 610
160 सेमी. 550 से 600
बच्चों से औसतन ये दर
आठ से 15 साल तक के बच्चों में पीक फ्लो दर 350 से 420 लीटर प्रति मिनट तक सामान्य है।
40 साल की महिलाओं में लंबाई के अनुसार सामान्य पीक फ्लो रीडिंग इतनी जरूरी
लंबाई पीक फ्लो दर (लीटर प्रति मिनट)
175 सेमी. 450 से 470
167 सेमी. 440 से 460
160 सेमी. 430 से 450
152 सेमी. 420 से 440
145 सेमी. 400 से 430
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)