नई दिल्ली, 26 जून। सुप्रीम कोर्ट ने आज उत्तर प्रदेश जेल प्राधिकरण को फटकार लगाई और जमानत के बावजूद आरोपी की रिहाई न होने पर नाराजगी जाहिर की। आरोपी को बीती 29 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था। आरोपी के खिलाफ धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था।
जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वे आरोपी को हर्जाने के तौर पर पांच लाख रुपये दें। आरोपी को बीती 24 जून को गाजियाबाद की जेल से रिहा कर दिया गया। उत्तर प्रदेश जेल प्रशासन के निदेशक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में पेश हुए। पीठ ने नाराज होते हुए पूछा कि श्आपके अधिकारियों की संवेदनशीलता पर आपका क्या कहना है? पीठ ने कहा कि अधिकारियों को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले नागरिक अधिकारों की अहमियत के बारे में संवेदनशील बनाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि श्आजादी बेहद ही कीमती और अहम अधिकार है, जिसकी गारंटी हमारा संविधान देता है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए जांच रिपोर्ट पेश करने के निर्देश
उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से पेश हुए वकील ने कहा कि आरोपी को गत मंगलवार को जेल से रिहा कर दिया गया और इस बात की जांच की जा रही है कि आरोपी की रिहाई में देरी क्यों हुई। इस पर अदालत ने कहा कि इसकी जांच गाजियाबाद के मुख्य जिला और सत्र न्यायाधीश द्वारा की जानी चाहिए और सुप्रीम कोर्ट ने जांच के बाद रिपोर्ट पेश करने को भी कहा।
आरोपी ने दावा किया कि उसे धर्मांतरण विरोधी कानून की एक उपधारा के चलते रिहा नहीं किया गया क्योंकि जमानत आदेश में इसका जिक्र नहीं था।
बता दें कि आफताब नाम के व्यक्ति के खिलाफ अवैध धर्मांतरण के आरोप में 2024 में मुकदमा दर्ज किया गया था। 29 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में उसे ज़मानत दी थी।