वैसे तो आए दिन मीडिया में पढ़ने सुनने को कुछ ऐसी घटनाएं मिल रही हैं जो मानवता को शर्मसार करने के लिए काफी है। लेकिन समाज में हमेशा चर्चा होती है कि गरीब आदमी था। सुविधाएं नहीं थी इसलिए मर गया। मगर कानपुर के बिल्हौर नामक घाट पर बीते शनिवार को लखनऊ के इंदिरानगर निवासी 45 वर्षीय आदित्य वर्धन सिंह जो स्वास्थ्य विभाग में डिप्टी डायरेक्टर थे और उनकी पत्नी महाराष्ट्र में जज हैं और एक चचेरे भाई बिहार के सीएम नीतीश कुमार के सचिव के रूप में कार्यरत है। इससे पता चलता है कि उनके पास आर्थिक कमजोरी नहीं होगी। उसके बावजूद एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी का गौताखोरों की मौजूदगी में डूबकर मर जाने से बड़ी शर्मनाक घटना शायद नहीं हो सकती। इनके दोस्त प्रदीप तिवारी और उन्नाव निवासी योगेश्वर मिश्रा के अनुसार बीते शनिवार को यह लोग नानामऊ घाट पर गंगा नहाने पहुंचे थे तो उपनिदेशक स्वास्थ्य का पैर फिसल गया और वो तेज बहाव में फंसकर डूबने लगे तो वहां मौजूद गोताखोरों से मदद मांगी तो उनका कहना था कि पहले दस हजार रूपये देने होंगे। रूपये नकद नहीं थे और ऑनलाइन ट्रांसफर करते करते आदित्यवर्धन पानी में समा गए। डीसीपी वेस्ट राजेश कुमार सिंह का कहना है कि उन्हें आगाह किया गया था कि पानी गहरा है लेकिन उन्होंने व दोस्तों ने तैराकी जानने की बात कही। सारी बात सही मानी जा सकती है लेकिन यह बताने के बाद भी जिस व्यक्ति को ढूंढना है वो एक उच्च पद पर तैनात है तो हर कोई जान सकता है कि दस हजार रूपये देना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी लेकिन मानवीय दृष्टिकोण को भूलकर गोताखोरों द्वारा जो रवैया अपनाया गया उसे उचित नहीं कहा जा सकता।
बताते चलें कि नदियों के घाटों पर काफी गोताखोर मौजूद रहते हैं यह आसपास के गांवों में ही निवास करते हैं। पहले तो कहा जाता था कि यह मदद करते हैं लेकिन अब तो सुनने को मिला उससे स्पष्ट हो रहा है कि यह मजबूरी का फायदा ज्यादा उठाते हैं क्येांकि कुछ लोगों का कहना है कि जो लोग किसी कारण से डूब जाते हैं या मरने की कोशिश करते हैं उन्हें ढूंढने के लिए इनके द्वारा नकद मोटी रकम मांगी जाती है अगर व्यक्ति मर गया तो उसे आगे ले जाकर कहीं फंसा दिया जाता है और फिर मोटी रकम की मांग उसे ढूंढने के लिए की जाती है। मेरा मानना है कि ऐसी नदियों के किनारे मौजूद थानों से कुछ गोताखोरों को संबंध किया जाना चाहिए। और शासन प्रशासन व सरकार मानवीय संवेदनाएं भूल गए गोताखोरों को यह विश्वास दिलाया जाए कि उनके द्वारा मांगी गई राशि का भुगतान सरकार करेगी। और फिर भी अगर कहीं ऐसी घटनाएं होती हैं तो भले ही गोताखोंरों का दोष ना हो लेकिन इंसानियत भूलने के लिए इन पर कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए। वैसे तो यह हमेशा सुनने को मिलती है तो ऐसी घटना होने पर आसपास के गांवों के युवक मदद के लिए आकर लोगों को बचाने का काम करते हैं। लेकिन अगर किस्मत खराब हो तो गोताखोरों को मदद करने में पीछे नहीं रहना चाहिए। क्योंकि आदमी गरीब हो गया अमीर ऐसे मामलों में परिजन भले ही कहीं से भी लाएं अपनों की जान बचाने के लिए वो पैसा देने में नहीं चूकते फिर भी इस घटना के समय गोताखोरों ने जो किया उससे साफ लगता है कि उनमें मानवीय संवेदना बची नहीं है। इसकी सजा तो उन्हें भगवान ही दे सकता है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
डिप्टी डायरेक्टर स्वास्थ्य की डूबने से मौत, गोताखोरों ने किया शर्मसार
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