देश में काफी भाषाएं बोली और अपनाई जाती हैं। इनके चाहने वाले अपने रोजमर्रा के कामकाज में भी इनका उपयोग भरपूर तरीके से करते हैं लेकिन हमेशा एक संदेश जरूर दिया जाता है कि भाषा प्रांत वाद को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। जिसकी जो इच्छा है वो अपनाएं। राष्ट्र भाषा और मातृभाषा हिन्दी ही कहलाती है और अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा कहलाती है इसलिए आवश्यकतानुसार इन दोनों भाषाओं का जानना और प्रचलन एक आम बात हो गई है। वर्तमान में संस्कृत और उर्दू व पंजाबी के जानकारों की भी मांग बढ़ रही है इसलिए हर भाषा को आगे बढ़ाने और अपनाने का मौका खूब मिल रहा है। यहां तक तो सब ठीक है।
लेकिन दिल्ली सरकार में कार्यरत नौकरशाहों को अपने कार्यालय के बाहर बोर्ड पर अपना नाम हिन्दी अंग्रेजी पंजाबी और उर्दू में लिखने के निर्देश दिए गए बताते हैं। तथा दिल्ली में सड़क संकेत बोर्ड व मेट्रो स्टेशनों पर लगे संकेतों पर जल्द ही हिन्दी अंग्रेजी पंजाबी उर्दू में जानकारी लिखे जाने की बात सामने आ रही है। मुझे लगता है कि दिल्ली सरकार के कला संस्कृति और भाषा विभाग ने सभी निकायो स्वायत प्राधिकरणों व विभागों को निर्देश दिए गए हैं कि दिल्ली आधिकारिक भाषा अधिनियम 2000 का अनुपालन किया जाए इन चार भाषाओं में नाम पट व शिलापट लिखे जाएं। मैं किसी भाषा का विरोधी नहीं हूं और सभी भाषाओं का सम्मान भी करता हूं। जहां तक जानने की बात है तो हिन्दी को छोड़ ना मुझे और कोई भाषा लिखनी पढ़नी नहीं आती है लेकिन एक बात जरूर कही जा सकती है कि दिल्ली सरकार के कला संस्कृति और भाषा विभाग के इस आदेश का कुछ भाषा प्रेमियों द्वारा स्वागत किया जाए लेकिन व्यवस्था के दृष्टिगत देखें तो यह बिल्कुल भी सही नहीं है क्योंकि इतनी भाषाओं में संकेतों के लगाए जाने वाले बोर्ड आम आदमी को वाहन चलाते हुए भ्रमित करेंगे। जिससे अनकहे रूप में दुर्घटनाओं के बढ़ने की बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता। दूसरी तरफ आज भाषाओं को लिखने की बात है कल को यह विवाद भी हो सकता है कि इस भाषा में छोटे या बड़े शब्द लिखे गए। दूसरे इतने बड़े बड़े बोर्ड लगाने पड़ेंगे जिनमें अगर डूबते को तिनके का सहारा वाली कहावत को रखकर सोचें तो इसमें जो लकड़ी या अन्य सामग्री उपयोग होगी वो प्रदूषण को बढ़ावा देने का कारण बनेगी क्योंकि बोर्ड बड़े बनेंगे तो पेड़ों का कटान होगा या जिस चीज से भी करेंगे उसका उपयोग बढ़ेगा। एक तरफ आवश्यकता आम आदमी की सुविधाओं को ध्यान में रखकर मितव्यतिता की है वहीं दिल्ली सरकार वोटों की राजनीति को ध्यान में रखकर मेरी निगाह में भाषावाद को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है। नागरिकों के इस मत से मैं भी सहमत हूं कि दिल्ली के पूर्व सीएम और आप पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल वीके सक्सेना से अनुरोध है कि इस विषय पर दोबारा सोच विचार कर निर्देश दिया जाए। क्योंकि फिलहाल इसकी कोई आवश्यकता नजर नहीं आती है। देश में हिन्दी हर आदमी पढ़ सकता है। वो बात और है कि वो ना जानने की बात कहे। अंग्रेजी इसलिए सोच सकते हैं कि विदेशियों का जाना आना रहता और हमारे बच्चे भी इसे पढ़ते हैं इसलिए सभी भाषाओं का सम्मान करते हुए मेरा आग्रह है कि वर्तमान में जो हिंदी अंग्रेजी में बोर्ड और संकेत लगाए जा रहे हैं जनहित में आर्थिक बचत की जाए वो ही सबके हित में है।
इस बारे में एक खबर के अनुसार दिल्ली में सड़क संकेतक, दिशा-निर्देशक बोर्ड़ और यहां तक कि मेट्रो स्टेशनों पर लगे संकेतकों पर जल्द हीं हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी और उर्दू भाषा में जानकारियां लिखी जाएंगी। इस कदम का उद्देश्य भाषाई विविधता को बढ़ावा देना और दिल्ली की आधिकारिक भाषाओं को प्रदर्शित करना है। दिल्ली सरकार में कार्यरत नौकरशाहों को भी अपने कार्यालयों के बाहर बोर्ड़ पर अपना नाम इन चार भाषाओं में प्रदर्शित करना होगा। यह कदम ‘दिल्ली आधिकारिक भाषा अधिनियम 2000 के अनुरूप हैॉ जो हिन्दी को पहली आधिकारिक भाषा और उर्दू तथा पंजाबी को दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देता है। वर्तमान में दिल्ली में अधिकांश साइनबोर्ड़ और नेमप्लेट पर हिन्दी और अंग्रेजी में ही जानकारी लिखी होती है। कला, संस्कृति और भाषा विभाग ने चार नवम्बर को एक आदेश में सभी विभागों, नागरिक निकायों और स्वायत्त प्राधिकरणों को उपराज्यपाल (एलजी) वीके सक्सेना के निर्देशों का पालन करते हुए अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। आदेश में स्पष्ट किया गया है कि बोर्ड़ और संकेतकों पर भाषा का क्रम हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी और उर्दू होना चाहिए तथा सभी के लिए शब्दों का आकार समान होना चाहिए। इस बाबत एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि यह निर्देश मेट्रो स्टेशनों, अस्पतालों, सार्वजनिक उद्यानों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर लागू होगा। राष्ट्रीय राजधानी में 1250 किलोमीटर की सड़कों की देख-रेख का जिम्मा संभालने वाला लोक निर्माण विभाग (पीड़ब्ल्यूड़ी) संकेतकों को अद्यतन करना प्रारंभ करेगा। यह आदेश सरकार जनहित में वापस ले वरना एनजीटी और केंद्र सरकार का संबंधित विभाग संज्ञान लेकर इसे रोके।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
भाषाई विविधता को बढ़ावा देने के नाम पर दिल्ली सरकार की फिजूलखर्ची और प्रदूषण ?
0
Share.