asd इंसान के दिमाग में अब भी कैद कोरोना वायरस

इंसान के दिमाग में अब भी कैद कोरोना वायरस

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नई दिल्ली 02 दिसंबर। कोविड-19 महामारी का कारण बना सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोनावायरस-2 (एसएआरएस-कोवि-2) खोपड़ी और मस्तिष्क के सुरक्षा आवरण (मेनिंजेस) में कई वर्षों तक बना रहता है। जिससे मस्तिष्क पर लंबे समय तक प्रभाव पड़ता है। जिससे अल्जाइमर, पार्किंसंस, हंटिंगटन रोग जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों का खतरा है। ये कोविड-19 का हिस्सा है। यह खुलासा जर्मनी के एक अध्ययन में हुआ है।

जर्मनी के हेल्महोल्ट्ज म्यूनिख और लुडविग मैक्सीमिलियंस विश्वविद्यालय (एलएमयू) के शोधकर्ताओं ने पाया कि एसएआरएस-कोवि-2 स्पाइक प्रोटीन मस्तिष्क के सुरक्षा आवरणों में और खोपड़ी की अस्थि मज्जा में संक्रमण के बाद चार वर्षों तक बना रहता है। यह स्पाइक प्रोटीन प्रभावित व्यक्तियों में लंबे समय तक सूजन को बढ़ाता है। जिससे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों का खतरा बढ़ जाता है।

हेल्महोल्ट्ज म्यूनिख के इंटेलिजेंट बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर अली अर्टर्क ने कहा कि न्यूरोलॉजिकल प्रभाव मस्तिष्क की उम्र तेजी से बढ़ा सकता है, जिससे स्वस्थ मस्तिष्क कार्यक्षमता में पांच से 10 साल का नुकसान हो सकता है। यह अध्ययन पत्रिका सेल होस्ट एंड माइक्रोब में प्रकाशित हुआ, कोविड के लंबे समय तक प्रभाव (लॉन्ग कोविड) के न्यूरोलॉजिकल लक्षणों जैसे सिरदर्द, नींद की परेशानी और ब्रेन फॉग से भी जुड़ा हुआ है। शोधकर्ताओं ने बताया कि कोविड-19 के खिलाफ टीके मस्तिष्क में स्पाइक प्रोटीन के संचय को काफी हद तक कम करते हैं।

हालांकि, यह कमी चूहों में केवल लगभग 50 प्रतिशत थी। यह शोध कोविड-19 रोगियों और चूहों पर किया गया, जिनके ऊतक नमूनों में पहले स्पाइक प्रोटीन के फैलाव का पता चला। वहीं, संक्रमण के कई वर्षों बाद भी खोपड़ी की अस्थि मज्जा और मस्तिष्क के सुरक्षा आवरण में स्पाइक प्रोटीन की सांद्रता में वृद्धि देखने को मिली।

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