नई दिल्ली 08 मई। सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि जब कोई जोड़ा लंबे समय से लिव-इन में रहता है, तो शारीरिक संबंध बनने पर उनके बीच वैध सहमति होने का ही अनुमान लगा सकते हैं। शीर्ष अदालत ने शादी का झूठा वादा कर दुष्कर्म के आरोपी के खिलाफ दर्ज मुकदमा रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।
जस्टिस संजय करोल और मनोज मिश्रा की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि जब दो वयस्क कई सालों तक लिव-इन में रहते हैं, तो यह आरोप कि ‘शादी का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाए गए’, को स्वीकार नहीं किया जा सकता। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि जब एक प्रेमी जोड़ा लंबे समय तक लिव-इन में रहता है, तो यह अनुमान लगाया जाता है कि वे शादी नहीं करना चाहते थे। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने आरोपी के खिलाफ दर्ज मुकदमा बरकरार रखा था। कोर्ट ने आरोपी की अर्जी खारिज कर कहा था कि संज्ञेय अपराध हुआ है।
इस मामले में, युगल दो साल से अधिक समय तक एक साथ रहे। 19 नवंबर, 2023 को, उन्होंने एक दूसरे के लिए अपने प्यार की पुष्टि करते हुए एक समझौता विलेख भी निष्पादित किया और कहा कि वे शादी करेंगे। 23 नवंबर, 2023 को प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उस व्यक्ति ने 18 नवंबर, 2023 को महिला के साथ जबरन यौन संबंध बनाए थे।
उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा एफआईआर रद्द करने से इनकार करने के बाद, व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि प्राथमिकी में कोई आरोप नहीं है कि शारीरिक संबंध केवल इसलिए स्थापित किए गए क्योंकि शादी का वादा किया गया था। इसके अलावा, बीच में बिना किसी शिकायत के दो साल से अधिक समय तक शारीरिक संबंध बनाए गए। ऐसी परिस्थितियों में, दो साल से अधिक समय तक चलने वाले शारीरिक संबंध को शुरू करने और बनाए रखने के लिए वैध सहमति होने का अनुमान लगाया जाएगा।