asd आम आदमी को सस्ती और पूर्ण रूप से प्राप्त हो बिजली, 22 मार्च की रात को ही नहीं जनहित में रोज एक घंटा बंद रखें

आम आदमी को सस्ती और पूर्ण रूप से प्राप्त हो बिजली, 22 मार्च की रात को ही नहीं जनहित में रोज एक घंटा बंद रखें

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अर्थ ऑवर डब्लूडब्लूएफ वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर/वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के सालाना कार्यक्रम के तहत 22 मार्च की रात को सभी से एक घंटा बिजली बंद रखने का आग्रह है। क्योंकि इससे देश में जो बिजली आपूर्ति की कठिनाई आ रही है उसका थोड़ा समाधान होने से इनकार नहीं किया जा सकता।

इस संदर्भ में प्राप्त एक खबर के अनुसार बीएसईएस ने अपने 50 लाख से अधिक ग्राहकों और दो करोड़ उपभोक्ताओं से अपील है कि वे इस शनिवार दुनियाभर में मनाए जा रहे अर्थ आवर में शामिल हों और रात 8.30 से 9.30 बजे के बीच स्वेच्छा से अपने घरों व कार्यस्थलों की गैरजरूरी लाइट्स व बिजली उपकरणों को बंद रखें। बीएसईएस खुद भी अपने ४०० से अधिक ऑफिसों में अर्थ आवर के दौरान गैर जरूरी लाइट्स को ऑफ रखेगी। अर्थ आवर डब्लूडब्लूएफ (वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर/वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड) का एक सालाना कार्यक्रम है, जिसके तहत दुनियाभर के लोगों से अपील की जाती है कि वे जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए अपने घरों और कार्यस्थलों पर गैरजरूरी लाइट्स और बिजली चालित उपकरणों को तय समय के दौरान बंद रखें। पिछले वर्षों में अर्थ आवर के दौरान दिल्लीवालों ने बड़े पैमाने पर बिजली बचाई है। 2024 में अर्थ आवर के दौरान दिल्ली के लोगों ने 206 मेगावॉट बिजली की बचत की जिसमें बीएसईएस उपभोक्ताओं ने 130 मेगावॉट बिजली की बचत करके उल्लेखनीय योगदान दिया था।
यह किसी से छिपा नहीं है कि निरंतर महंगी हो रही बिजली का आर्थिक मार झेल रहे उपभोक्ता को इसके बाद भी पूर्ण रूप से सप्लाई प्राप्त नहीं हो पा रही है। सरकार भी दावे चाहे कितने कर ले लेकिन प्राप्त संसाधनों से हो रहा उत्पादन पूरा नहीं पड़ रहा। ऐेसे में अगर हम अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए अनावश्यक जो लाइट और पंखे व एसी चलाकर छोड़ते हैं उस आदत पर भी अगर कंट्रोल कर लें तो काफी समस्या का समाधान हो सकता है लेकिन सरकार को चाहिए कि उपभोक्ताओं को इसके लिए प्रेरित करने हेतु जो सरकारी संस्थानों कार्यालयों और स्ट्रीट लाइट की दिन में चल रही बिजली और बड़े अफसरों के कार्यालय में कुर्सी बेशक खाली हो लेकिन एसी पंखे चलते जरूर मिलेंगे। यह किसे ठंडा करते हैं यह तो नौकरशाह ही जानते हैं मगर इससे बिजली की खपत कई गुना बढ़ जाती है। कहने का आश्य सिर्फ इतना है कि बड़ा बजट खर्च कर चल रहा बिजली विभाग के अधिकारी कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी समझ लें और सरकारी बाबू महंगी बिजली खरीदने का आम आदमी का दर्द समझ लें तो जो बिजली उपलबध है उससे सभी समस्याओं का समाधान होगा और उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली प्राप्त हो सकती है तथा डब्लूडब्लूएफ का अभियान भी सफलता से पूर्ण हो सकता है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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