लोकतंत्र में अपनी बात कहने सुनने और ताकत और सक्षम व्यक्ति को समझाने का अधिकार सबके पास है। तो दुनिया भर में लोकतंत्र का सिरमोर कहलाते है। तो फिर अपने देश में तो किसी को कहने सुनने पर रोकटोक नहीं है लेकिन अपने हित और जनता की आवाज उठाने वालों को जनता के हित में जो अधिकार संविधान के तहत उन्हें मिला हुआ है वो सबके लिए है। इसलिए अपनी बात कहने और रखते हुए यह भी सोचना होगा कि जो और लोग पीड़ित है वो भी अपना पक्ष रखकर उसका समाधान खोज सके। लेकिन आजकल हो क्या रहा है कि एक बिन्दु कोई सामने आया नहीं कि उसे लेकर नेतागिरी शुरू हो जाती है क्योंकि एक ही संगठन में कई कई नेता सक्रिय है और वो अपने आप को सबसे सुप्रियर और क्रियाशील दर्शाने तथा दूसरे को कमजोर सिद्ध करने हेतु बाकी सबके हित की भूल मीडिया में छाये रहने की इच्छापूर्ति के लिए सक्षम अधिकारियों के समय की बर्वादी और पीड़ित के हितों पर कुठाराघात कर रहे है।
मेरा मानना है कि अपनी बात कहने का मौका सबको मिलना चाहिए। और सक्षम व्यक्ति को सुनना भी जरूर चाहिए। मगर जिस प्रकार से हर जिले में धरना प्रदर्शन और आंदोलन के लिए जगह निर्धारित की गई है। उसी प्रकार से प्रदर्शनकारियों और शिकायत लेकर आने वालों के लिए भी एक अधिकारी प्रतिदिन अलग से तैनात हो। और कोई भी किसी भी तरीके की कोई भी समस्या या ज्ञापन लेकर आता है तो वो ही उसे ले समयअनुसार उसकी बात सुनकर मामले का निस्तारण करें। और अगर फिर भी आवश्यकता हो तो जिस अधिकारी से आंदोलन कर्ता व प्रदर्शनकारी मिलना चाहते है वो उनकी बात सुने और उस पर कार्रवाई का आश्वासन दे। कई कई घंटे तक एक ही प्रतिनिधि मंडल से मिलना सबके लिए कष्टदायक है क्योंकि जो अन्य व्यक्ति उस अफसर या जनप्रतिनिधि से अपनी पीड़ा लेकर मिलने आते है कभी कभी उन्हें अपनी बात कहे बिना ही मायूस होकर लौटना पड़ता है। क्योंकि ना तो संबंधित अधिकारी प्रतिनिधि मंडल से जाने के लिए कहता है और ना ही वो जाने के लिए तैयार होते है। एक ही बात को बार बार दोहराते हुए घंटों खराब करते है यह व्यवस्था अब समाप्त होनी चाहिए। मेरा मानना है कि प्रदेश और केन्द्र के गृह कानून और व्यवस्था बनाने वाले मंत्रालय के अफसरों को प्रदेश और देशभर के सभी जिलों के जिलाधिकारियों को ऐसे आदेश दिये जाए कि वो दफ्तर में बैठकर समस्या सुनने व सुनाने के नाम पर किसी को भी घंटों न बैठने दे क्योंकि उससे ना तो किसी परेशानी का हाल निकल पाता है हां तब जब प्रतिनिधि मंडल के लोग जाएंगे तब सामने वालों को सोचने का मौका मिलेगा और वो शिकायतों का हल निकालने के साथ ही अन्यों की बात आसानी से सुन सकता है।
इसलिए मुझे लगता है कि कमिश्नर व डीएम को भी इस संदर्भ में जनहित में ऐसी व्यवस्था पुख्ता करने के लिए लेना होगा निर्णय।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
कमिश्नर डीएम दे ध्यान! सभी शिकायतें सुनने और ज्ञापन लेने के लिए हर जिले में तय हो एक अधिकारी, फालतू जमने की कोशिश करने वाले प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों को अन्य पीड़ितों के हित में!
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