केन्द्र सहित सभी प्रदेशों की सरकारें हर व्यक्ति को साक्षर बनाने और इसके लिए आम नागरिकों को प्रोत्साहित करने हेतु शिक्षा प्राप्त करने की व्यवस्था दाखिलों की प्रक्रिया सरल और सस्ती अथवा निशुल्क शिक्षा देने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। उसके बावजूद इन योजनाओं को कार्य रूप देने के लिए सिस्टम में शामिल कुछ भ्रष्ट और यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि सरकार की इस संदर्भ में बनाई नीति और योजनाओं का अनकहे रूप में योजना का विरोध करते हुए जोक की तरह आम आदमी द्वारा शिक्षा प्राप्त कर अच्छे भविष्य के देखे जा रहे सपनों इच्छाओें को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। इसके जीते जागते उदाहरण के रूप में एनसीआरटी के द्वारा छात्रों को उपलब्ध कराई जाने वाली सस्ती पुस्तकें अभी तक स्कूल खुलने पर आने वाले छात्र छात्राओं को उपलब्ध कराना तो दूर बताते है कि अभी पूर्ण रूप से छपनी भी शुरू नहीं हुई है।
मौखिक सूत्रों के अनुसार प्रदेश भर के तमाम नामचीन प्रकाशन जो पूर्व में एनसीआरटी की किताबे छापते रहे को नजरअंदाज कर प्रयागराज के राजीव प्रकाशन को इन किताबों को छापने का ठेका दिया गया। खबर है कि इसके संचालकों द्वारा सरकारी किताबें छापकर छात्रों को सस्ती पुस्तकें उपलब्ध कराकर साक्षरता की भावना को बढ़ावा देने की बजाए किताब न होने तथा पढ़ाई शुरू हो जाने का फायदा उठाकर बताया जाता की इसी प्रकाशन से संबंध बताये जा रहे राजीव पब्लिकेशन द्वारा 9वीं व 10वीं अथवा 12वीं की किताबें जो एनसीआरटी की 40 रूपये के आसपास की बिकती है उसे राजीव पब्लिकेशन की किताबें ढाई सौ व तीन सौ रूपये की कीमत पर बेची बताई जा रही है। जो इस ओर इशारा करता है कि शिक्षा विभाग के इससे संबंध अधिकारियों की मिली भगत से यह गौरखधंधा घोटाला माल कमाने और छात्र छात्राओं एवं अभिभावकों को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाने का चल रहा बताया जाता है। अब राजीव प्रकाशन ने किताबें क्यों नहीं छापी और समय से क्यों नहीं उपलब्ध कराई इसके लिए कोई ठोस कार्रवाई कर जल्द से जल्द अन्य प्रकाशकों से सरकारी किताबें छपवाकर छात्र छात्राओं को वितरण कराने की बजाए एक प्रकार से कम या ज्यादा जो खामोशी साधी गई है कि प्रकाशक के साथ मिलकर अपना बैंक बैंलेस को बढ़ाने की योजना को साकार रूप देने की ओर इशारा करता है।
स्मरण रहे कि बच्चों को शिक्षा देने हेतु कुछ नामचीन स्कूलों में जो सरकारी किताब जिस कीमत पर मिल सकती है उससे 10-10 और 20-20 गुना पर प्राईवेट प्रकाशकों द्वारा छापी गई किताबें अपने यहां लगाई जा रही है और उन्हें लेने के लिए मजबूर किया जाना भी बताया जाता है। कुछ भुक्त भोगियों का कहना है कि कुछ किताबें जो कई कई सौ रूपयों की आती है जो पढ़ी भी नहीं जाती और कुछ उपन्यास रूपी किताबें जिनका कोई विशेष महत्व छात्रों के लिए और जीवन में भी आगे न होना बताया जा रहा है वो प्रकाशकों से मिलकर स्कूलों की प्रबंधन समितियां अथवा प्रीसिंपल द्वारा खरीदवाई जा रही है। अब इसमें कितनी सच्चाई है यह तो जांच का विषय है। मगर मौखिक सूत्रों का कहना है कि इसकी एवज में स्कूल संचालक और कई प्रधानाचार्यों को इतनी सहयोग राशि प्रकाशन के संचालन देते है जो 10 लाख से लेकर 1 करोड़ तक होने की चर्चा मौखिक रूप से सुनने को मिलती है। जनहित में और गरीब व मध्यम दर्जे के परिवारों के बच्चों को यह महंगी किताबें और शिक्षा दिलाने में परेशान अभिभावकों के हित में मुझे लगता है कि शिक्षा विभाग के ऐेसे मामलों से जुड़े अधिकारियों की माननीय मुख्यमंत्री जी गहन जांच कराये और जल्द से जल्द एनसीआरटी की किताबें उपलब्ध कराने के साथ साथ बच्चे और बच्चियों को दाखिला सरकार की नीति के तहत निशुल्क दिलाने की व्यवस्था की जाए वर्ना मेरठ के दौराला कस्बे के ग्राम चिरौड़ी की छात्रा जो 75 प्रतिशत अंक प्राप्त कर दसवीं में पास हुई मगर 11वीं क्लास में एडमिशन न मिलने के चलते उसने और मजबूर पिता ने आत्महत्या कर ली ऐसे प्रकरणों की पुनरावृत्ति होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सीएम साहब! एनसीआरटी की किताबें अब तक स्कूलों में क्यों नहीं वितरित जिम्मेदारों से पूछा जाए, 40 रूपये कीमत की प्राईवेट प्रकाशक की किताबें बिक रही है ढाई सौ तीन सौ रूपयें में? कैसे होगा हर बच्चें को साक्षर बनाने का सपना साकार
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