विश्व प्रसिद्ध कांवड़ मेला गत दिवस शांति और सौहार्द्र व भक्तिभाव के वातावरण में संपन्न हो गया। पवित्र नदियों से जल लेकर आने वाले कुछ कांवड़िये भगवान भोलेनाथ की भक्ति में ही लीन हो गए। कितने ही घायल होकर इलाज करा रहे हैं। कई लोगों का यह कहना भी सही नजर आ रहा है कि व्यवस्था में लगे लोग आम आदमी को परेशान करने के अलावा कांवड़ मेला शुरू होने से पहले किए गए दावों को पूरा नहीं करा पाए। आयोजन को सकुशल संपन्न कराने के लिए मीटिंग और निरीक्षण के नाम पर समय और धन भरपूर खर्च हुआ। ऐसा कहने वालों की बात गलत भी नहीं लगती है।
आदेशों का नहीं हुआ पालन
क्योंकि कांवड़ से एक सप्ताह पूर्व भक्तों के आने वाले मार्ग पर स्थित कॉलोनियों और मोहल्लों में जाने वाले कट बंद कर दिए जाने और विरोध होने पर थोड़े रास्ते खोलने से नागरिक भरपूर तरीके से परेशान हुए लेकिन शासन प्रशासन ने जो दावे किए थे कि इतने फुट से उंची कांवड़ नहीं होनी चाहिए इससे तेज आवाज में डीजे नहीं बजेगा। सड़कों के किनारे सेवा शिविर नहीं लगेंगे। सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग नहीं होगा आदि आदेशों का पालन तो होता नजर नहीं आया क्योंकि डीजे भी खूब बजे। 50 फुट की कांवड़ भी आई । शिविर भी सड़क पर लगे। शराब की दुकानें खुली रही। सफाई भी सरकार के आदेश के अनुकूल नहीं हो पाई। यह सबको ही दिखाई दे रहा है और मीडिया में इससे संबंध जो खबरें चली उनसे भी सब स्पष्ट होता है। भगवान भोले की भक्ति में सराबोर हमारी आस्था से जुड़ी कांवड़ मेले का अब समापन हो चुका है। इसमें जो व्यवस्थाओं को धता बताते हुए हंगामे हुए वो भी सबको ही पता है। लेकिन भगवान की मेहरबानी से जो बीत गया वो अच्छा है। ग्रामीण कहावत भूली बिसरी सुधार के आगे की सुध ले को आत्मसात कर मेरा मानना है कि जिला प्रशासन ओर शासन के अधिकारियों को अब पुरानी व्यवस्थाओं को लागू करने की बजाय जो व्यक्ति प्रभावित होते हैं उनसे थानेदारों सीओ और एसडीएम के माध्यम से चर्चा कर नई सोच के अनुसार व्यवस्थाएं की जाएं तो अच्छा है क्योंकि चाटुकारों और आगे पीछे घूमने वाले बैठकों में जी हजूरी से भरे सुझाव तो दे सकते हैं लेकिन मौके पर जाना और व्यवस्था बनाना इनके बस की बात नहीं होती।
यूपी उत्तराखंड में बने कांवड़ विकास प्राधिकरण
मेरा मानना है कि यूपी के मेरठ मुजफफरनगर सहारनपुर गाजियाबाद के साथ ही उत्तरांखड के हरिद्वार कुछ जिलों को मिलाकर एक कांवड़ विकास प्राधिकरण का गठन होना चाहिए और उसमें कांवड़ मेला संपन्न कराने वाले अधिकारियों की तैनाती हो और उन्हें निर्देश दिए जाएं कि व्यवस्थाओं का नया खाका बनाएं।
कांवड़ मार्ग
दूसरे मेरठ से आगे मोदीनगर गाजियाबाद दिल्ली जाने वाले कांवड़ियों को चौधरी चरण सिंह मार्ग तथा आसपास के देहातों में जाने वाले कांवड़िये परतापुर बाईपास और हापुड़ को जाने वाले कांवड़ियों को रूड़की रोड पर दौराला से मोड़़ा जाए। तो शहर में कांवड़ियों की आवाजाजी सिर्फ एक दिन होगी। परिणामस्वरूप ना कालॉनियों के रास्ते बंद करनें होंगे ना कट। ऐसी ही व्यवस्था अन्य जिलों में की जाए तो नागरिकों की काफी समस्याएं तो समाप्त होंगी ही पुलिस और जिला प्रशसन का जो सारा अमला इसी काम में लग जाता है वो भी बचेगा। क्योंकि कांवड़ विकास प्राधिकरण में जो अधिकारी तैनात होंगे वह नागरिकों से सलाह कर व्यवस्थाएं बनाएं।
व्यवस्था में हो बदलाव
क्योंकि कांवड़ मेला हमारी भावनाओं का प्रतीक है इसलिए शिवभक्तों की तादात बढ़नी ही है। तो आवागन थोड़ा प्रभावित होगा ही इस बात को ध्यान रखते हुए कांवड़ मेले के दौरान जो पास वितरित किए जाएं उसके लिए एसपी देहात या एसपी ट्रैफिक को जिम्मेदारी ना देकर किसी दूसरे अधिकारी को जिम्मेदारी दी जाए जो पास का नीतिगत आधार पर इनका वितरण करे। इस बार जो पास धारकों में जो नाराजगी रही वो भी नहीं रहेगी और पेशबंदी के तहत जो पास पर फालतू बातें लिखी जाती है कि रात 12 बजे से सुबह पांच बजे तक होगा उपयोग वो भी ना कराया जाए।
ना रास्ता बंद हो ना कट
पिछले लगभग पांच दशक से सक्रिय रूप से कांवड़ मेले और उसकी व्यवस्थाओं को देख रहा हूं और खुद भी छह बार हरिद्वार और एक बार ब्रजघाट से कांवड़ लाया हूं। नई व्यवस्था के अनुसार कुछ बदलाव हो सकते हैं लेकिन बाकी सारी बाते पूर्व की ही रहती है। इसलिए पासों का वितरण सही हो । सेवा शिविर सड़क से बीस मीटर दूर हों। शराब की दुकानें बंद रहे। कट बंद ना हो। तो जो उ़द्योग व व्यापार लगभग सात दिन के लिए ठप हो जाते हैं वो भी चलेंगे और सरकार को राजस्व की हानि भी नहीं होगी। कांवड़ मार्ग पर रहने वाले नागरिकों को अपने घरों मेें बंद रहने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा।
थानेदार करें बैठक
एक बात विश्वास से कही जा सकती है कि अगर यूपी उत्तराखंड दिल्ली और हरियाणा की सरकारें आपस में अधिकारियों के माध्यम से विचार कराकर जो व्यवस्था बनाती है वो अगर सब अपने यहां के पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश करें कि वे अपने क्षेत्र में पिछलग्गुओं की बजाय आम नागरिकों को या शिविर लगाने वालों को बुलाकर चर्चा कर लें और डीेजे संचालकों को यह बता दिया जाए कि अगर व्यवस्था से आगे कुछ भी करने की कोशिश की तो बच नहीं पाओगे तो जो समस्या अब शिवरात्रिय से सात दिन पहले शुरू होती है उनका सामना पुलिस प्रशासन को नहीं करना पड़ेगा और पीएम मोदी और यूपी उत्तराखंड के सीएम की भावना के तहत शिवभक्त भी आसानी से अपने गंतव्य तक जल ले जाकर भगवान को अर्पित करंेंगे।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
नागरिक रहे परेशान, निर्देशों का नहीं हुआ पालन, जल्द बने कांवड़ विकास प्राधिकरण, नगरों की बजाय हाईवे से भेजा जाए शिवभक्तों को, चाटुकारों के स्थान पर व्यवस्था में नागरिकों की लें सलाह
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