asd सिर्फ बेड टच से यौन शोषण से नहीं बचाया जा सकता बच्चों को, इस संदर्भ में स्कूलों में किया जाए जागरूक क्योंकि परिवार में ही छिपे दरिंदों की संख्या कम नहीं है – tazzakhabar.com
Date: 13/03/2025, Time:

सिर्फ बेड टच से यौन शोषण से नहीं बचाया जा सकता बच्चों को, इस संदर्भ में स्कूलों में किया जाए जागरूक क्योंकि परिवार में ही छिपे दरिंदों की संख्या कम नहीं है

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अपने बच्चों को बेड टच शब्द सिखाने और बताने से ही हम उनको घरों में घुसे भेड़ियों से बचाने में सफल नहीं हो सकते। यह बात हमेशा ही सामने आती रही है। क्योंकि जितना पढ़ने सुनने देखने को मिलता है उससे स्पष्ट है कि कई मामलों में रिश्तेदार व दोस्त परिचित व कुछ प्रकरणों में जरूरत से ज्यादा आत्मीय लोग शामिल होते हैं जो अपने आप को आपका हितैषी और बच्चों को प्यार करने वाला दर्शाकर उनका यौन उत्पीड़न करने के लिए मौका ढूंढते रहते हैं। महिलाओं और बच्चियों के यौन उत्पीड़न के मामले तो कई प्रकरणों में खुलकर सामने आ भी जाते हैं लेकिन बच्चों के साथ जो ऐसी घटनाएं होने की खबरें मिलती हैं। उनका तो खुलासा ही नहीं हो पाता। क्योंकि ज्यादातर मामलों में कुछ बदनामी का डर दिखाकर तो कहीं सामाजिक व्यवस्था समझाकर या माफी मंगवाकर मामलों की इतिश्री कर भविष्य में उन्हें यौन उत्पीड़न के लिए छोड़ दिया जाता है। इस बारे में बीते दिवस यूएन की एक रिपोर्ट भी कम चौंकाने वाली नहीं है। एक खबर के अनुसार संयुक्त राष्ट्र की दो एजेंसियों ने बीते सोमवार को चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की। इन रिपोर्ट्स में बताया गया कि महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक स्थान उनका अपना घर है, और 2023 में हर दिन औसतन 140 महिलाएं और लड़कियां अपने पार्टनर या परिवार के सदस्य द्वारा मारी गईं। यूएन वूमन और संयुक्त राष्ट्र अपराध और मादक पदार्थ द्रव्य कार्यालय द्वारा जारी की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में करीब 51,100 महिलाओं और लड़कियों को अपनी जान गंवानी पड़ी, और इनकी हत्या उनके पार्टनर या परिवार के सदस्यों ने की थी। यह आंकड़ा 2022 में 48,800 महिलाओं की मौत के आंकड़े से भी ज्यादा है।
‘लंबे समय से महिलाएं हो रहीं हिंसा की शिकार’
रिपोर्ट में कहा गया है कि मौतों की बढ़ी हुई संख्या मुख्य रूप से देशों से ज्यादा आंकड़े उपलब्ध होने के कारण है, न कि हत्याओं में वृद्धि की वजह से। फिर भी इन रिपोर्ट्स में यह स्पष्ट किया गया है कि महिलाएं और लड़कियां हर जगह इस अत्यधिक रूप से लिंग आधारित हिंसा से प्रभावित हो रही हैं और कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है। यूएन वूमन की डिप्टी एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर न्यारदजाई गुम्बोंजवांडा ने कहा कि लंबे समय से अपने ही परिवार या पार्टनर द्वारा महिलाओं और लड़कियों की हत्या की जा रही है और इस पर ध्यान न देने की वजह से यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। उन्होंने कहा कि विशेष रूप से लैंगिक भेदभाव और सामाजिक मान्यताएं हिंसा को बढ़ावा देती हैं।
‘2023 में ऐसी सबसे ज्यादा हत्याएं अफ्रीका में’
यूएन वूमन ने सरकारों और नेताओं से अपील की है कि वे अपनी शक्ति का इस्तेमाल महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के उपायों को बढ़ावा देने के लिए करें, न कि इसका दुरुपयोग करें। आंकड़ों के मुताबिक, 2023 में सबसे ज्यादा हत्याएं अफ्रीका में हुईं, जहां लगभग 21,700 महिलाएं और लड़कियां अपने परिवार या साथी के द्वारा मारी गईं। अफ्रीका में प्रति 1,00,000 आबादी में इस तरह की 2.9 हत्याएं हुईं, जो अन्य क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा है। इसके बाद अमेरिका और ओशिनिया का नंबर आता है, जहां प्रति 1,00,000 महिलाओं में क्रमशः 1.6 और 1.5 महिलाओं की हत्या हुई। एशिया में यह आंकड़ा 0.8 और यूरोप में 0.6 था।
‘कुल हत्याओं में 80 फीसदी पुरुषों की’
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि महिलाएं और लड़कियां निजी जगहों में हिंसा का ज्यादा शिकार होती हैं, जबकि पुरुष हत्या की घटनाओं में ज्यादातर घर के बाहर मारे जाते हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2023 में दुनिया में हत्या की घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों में 80 फीसदी संख्या पुरुषों की थी जबकि 20 फीसदी संख्या महिलाओं की थी। हालांकि चौंकाने वाली बात यह है कि 2023 में जिन महिलाओं की हत्या हुई, उनमें से 60 फीसदी की जान उनके पार्टनर या रिश्तेदारों ने ली थी। रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारों द्वारा महिलाओं और लड़कियों की हत्याएं रोकने की तमाम कोशिशों के बावजूद अभी भी ऐसा खतरनाक स्तर पर हो रहा है।
समय और काल कोई भी हो हम सब पर अविश्वास नहीं कर सकते लेकिन आंख मींचकर भरोसा करना भी सही नहीं है। जिस प्रकार हाथ की पांचों अंगुली समान नहीं है उसी प्रकार हर व्यक्ति एक सा नहीं होता लेकिन अगर आप खजाने का द्वार या खेत को खुला छोड़ देंगे तो हर कोई उसे चरने की कोशिश और उसका उपयोग करने के लिए आसानी से रूक नहीं पाएगा।
पांच साल की उम्र से लोगों के घर में घरेलू कार्य करने के दौरान ढाई दशक तक जो देखा वो समाज के लिए हितकारी नहीं है इसलिए सिर्फ यही कहा जा सकता है कि हम भेड़ की खाल में छिपे भेड़ियों से अपने बच्चों को बचाए रखना होगा। क्योंकि ज्यादा दरियादिली आपके या आपके बच्चों के प्रति दिखाने वाले पूर्ण रूप से सही नहीं होते हैं। बीते दिनों फिल्म अभिनेत्री आलिया भटट और रणदीप हुडडा की एक फिल्म हाईवे देखी जिसमें इस प्रकार के पीड़ित बच्चों की प्रक्रिया को उन्होंने बहुत अच्छे तरीके से प्रदर्शित किया है। फिल्म में उनके ताउ बच्चों को पसंद की सामग्री लाकर देते थे और अकेले में उनका यौन उत्पीड़न किया जाता था। जिसके चलते वह घर छोड़कर भाग जाती है और एक ग्रामीण गुंडे की भूमिका निभा रहे रणदीप हुडडा के टेंपों में घूमती रहती है लेकिन हुडडा के समझाने के बाद भी परिवार में नहीं जाती लेकिन घर में उसके साथ किए गए सलूक को बताती है। फिल्म में आलिया भटट ने अपनी भूमिका बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। समाज के उन लोगों को भी आईना दिखाया है कि वो रिश्तेदारों व परिचितों से चौकस रहे क्येांकि छोटे घरों से लेकर इमारतों तक की चाहरदीवारी में जो बच्चों के साथ होता है वो ऐसी शर्मनाक व्यवस्था है जिसका कुछ समय पूर्व तक तो हम चर्चा नहीं करते थे लेकिन अब जैसे समय बदल रहा है बच्चे अपनी मर्जी से कुछ भी करें लेकिन इस प्रकार के वनमाननुषों से उन्हें बचाने की आवश्यकता है। इसलिए आओ बेड टच के अलावा भी अपने बच्चों को जागरूक करने का संकल्प लेकर आगे बढ़ें। मेरी हमेशा मांग रही है कि छठी कक्षा से उपर के बच्चों को स्कूलों में यौन शिक्षा दी जाए जिससे वो अपना बचाव कर सके या परिजनों को ऐसी घटनाओं से अवगत कराकर बुरे लोगों से बच सकें।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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