अयोध्या 22 जून। हर साल आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से चातुर्मास की शुरुआत होती है और कार्तिक मास की देवउठनी ग्यारस तक यह चातुर्मास चलता है. यह वह समय होता है जब भगवान विष्णु का शयनकाल शुरू होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसे चातुर्मास कहा जाता है और इस दौरान किसी भी प्रकार का शुभ या मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है. यही कारण है कि इस समय कोई भी शुभ और नए कार्य नहीं किए जाते हैं, हालांकि इसमें ज्यादा से ज्यादा धार्मिक कार्य और दान-पुण्य करना चाहिए. कहा जाता है इस माह ऐसा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है तो चलिए आज हम आपको इस रिपोर्ट में बताते हैं कब शुरू हो रहा चातुर्मास और क्या है इसका महत्व .
दरअसल अयोध्या के ज्योतिष पंडित कल्कि राम बताते हैं कि हिंदू पंचांग के अनुसार, 17 जुलाई से चातुर्मास की शुरुआत होगी. इन 4 महीनों के दौरान मुंडन, जनेऊ संस्कार, गृहप्रवेश और विवाह समेत सभी मांगलिक कार्य बंद हो जाएंगे. वहीं, चातुर्मास का समापन 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी के साथ होगा. धार्मिक मान्यता है कि इस शुभ दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागेंगे और तभी से सभी प्रकार के शुभ कार्यों की शुरुआत होगी.
पंडित कल्कि राम बताते हैं कि सनातन धर्म में चातुर्मास की अवधि का बड़ा धार्मिक महत्व है. भले ही इस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं, लेकिन यह धार्मिक कार्यों के लिए बहुत विशेष माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस समय भगवान विष्णु की पूजा जरूर करनी चाहिए, जिससे आपके ऊपर किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का असर न पड़े. इसके साथ ही भजन-कीर्तन भी करना चाहिए.
चातुर्मास के दौरान हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं. चातुर्मास के दौरान शादी ब्याह से लेकर किसी तरह के कोई मांगलिक कार्य नहीं होते हैं. इसी प्रकार गृह प्रवेश, नया वाहन खरीदना, नई प्रॉपर्टी खरीदना, घर बनाना, मुंडन, जनेऊ, भूमि पूजन या नया बिजनेस शुरू करने जैसी कोई चीज चातुर्मास में नहीं होती है. वहीं, चातुर्मास के दौरान अगर आप कुछ करना चाहते हैं, तो हर शाम को तुलसी के पास घी का दीया जरूर लगाना चाहिए. कहते हैं कि चातुर्मास में जमीन पर बिस्तर लगाकर सोना चाहिए.