नई दिल्ली 31 जुलाई। सुप्रीम कोर्ट ने आयुष मंत्रालय से कहा कि दवाओं और स्वास्थ्य संबंधी उत्पादों के भ्रामक विज्ञापनों पर दर्ज शिकायतों और उनकी प्रगति को सार्वजनिक करने के लिए डैशबोर्ड बनाए। शीर्ष अदालत ने कहा शिकायतों पर की गई कार्रवाई के संबंध में उचित आंकड़ों की कमी उपभोक्ताओं को असहाय और अंधेरे में छोड़ देती है।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने मंगलवार को यह सुझाव यह देखने के बाद दिया कि ऐसी शिकायतों की प्रगति की निगरानी करने में कई बाधाएं हैं, खासकर जब ऐसी शिकायतें राज्य लाइसेंसिंग अथॉरिटी की ओर से एक राज्य से दूसरे राज्य में भेजी जाती हैं। यह औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत अभियोजन के लिए भी बाधा उत्पन्न करता है क्योंकि ऐसी शिकायतों के मामले में की गई कार्रवाई रिपोर्ट पर कोई आंकड़ा आसानी से उपलब्ध नहीं होता है।
शीर्ष अदालत एलोपैथिक चिकित्सा को टारगेट करने वाले भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद और इसके प्रमोटरों, बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की ओर से दायर मामले की सुनवाई कर रही थी। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई का दायरा बढ़ा दिया है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि पतंजलि और दिव्य फार्मेसी की ओर से 14 आयुर्वेदिक उत्पादों की बिक्री (जिसके लिए लाइसेंस पहले उत्तराखंड सरकार की ओर से निलंबित कर दिया गया था) जारी है, क्योंकि निलंबन आदेश रद्द कर दिया गया है और इस मुद्दे पर नया निर्णय राज्य सरकार के पास लंबित है। इस पर पीठ ने निर्देश दिया कि उत्तराखंड सरकार दो सप्ताह के भीतर इस मुद्दे पर निर्णय ले और अदालत को सूचित करे।