भारत और पाकिस्तान के बीच पहलगाम के आतंकी हमले को लेकर छिड़े युद्ध में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अनुसार रात भर चली वार्ता के बाद युद्ध विराम की सहमति बनी। इसके बाद देश में यह सवाल उठ रहा है कि अमेरिका को किसने मध्यस्थता की इजाजत दी और ब्रिटेन से सीजफायर क्यों हुआ। मुझे लगता है कि फिलहाल जो हुआ सही हुआ क्योंकि युद्ध से दोनों ही देशों को नुकसान तो होना ही होता है। अगर कहीं कुछ गलत होता तो पीएम मोदी इसको किसी भी रूप में नहीं मानते। उनका अब भी कहना है कि उधर से गोली चलेगी तो हम गोले दागेंगे। ऑपरेशन सिंदूर खत्म नहीं हुआ है। अगर जरूरत पड़ी और पाक ने दुस्साहस दिखाया तो फिर मजबूती से जवाब देंगे। इन हमलों के बीच 40 पाक जवान मारे गए तो पांच भारतीय जवान भी शहीद हुए। पड़ोसी देश भी जानता है कि सात मई को हुई कार्रवाई जैसा अगला हमला उसके लिए काफी घातक सिद्ध हो सकता है।
सीजफायर पर पीएम मोदी लगातार सहयोगियों के साथ बैठक कर रहे हैं और उनका स्पष्ट कहना है कि भविष्य में किसी भी आतंकी कृत्य को युद्ध माना जाएगा और गोली का जवाब तोप से दिया जाएगा। फिलहाल आज सीमाओं पर शांति रहने की खबरें हैं जो अच्छा संकेत कह सकते हैं अगर पड़ोसी देश को संयम की ताकत मिलती रही तो। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा सर्वदलीय बैठक बुलाए जाने की मांग की जा रही है तो पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि अगर बैठक में प्रधानमंत्री नहीं आते तो विपक्षी दलों के नेताओं को नहीं जाना चाहिए। पूर्व सैनिकों का मानना है कि अब पाकिस्तान से सिर्फ पीओके और आतंकियों को सौंपने पर बात होनी चाहिए। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि घर में घुसकर मारा। रावलपिंडी तक सुनी गई सेना की धमक। यूपी के सीएम योगी का कहना है कि आतंकियों को उनकी भाषा में जवाब देने के लिए तैयार रहना होगा। मेरा मानना है कि ऑपरेशन सिंदूर में मिसाइल के पराक्रम को तो देखा ही होगा और नहीं तो इसके चलते पाकिस्तान को हुए कष्ट को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं। यह तो स्पष्ट है कि सीजफायर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पहल पर हुआ लेकिन समाचारों से पता चलता है कि पाकिस्तान ने अमेरिका से गुहार लगाई थी। फिर भी पीएम ने कहा कि हम दुस्साहस का देंगे जवाब। यह भी कहा जा रहा है कि युद्ध में भारत के सामने कागजी साबित हुआ पाक वायुसेना का रक्षा तंत्र। मगर युद्ध में कोई भी जीते हारे उसका असर सीमा पर रहने वाले नागरिकों को होता है उसका अहसास शब्दों में बयान करना मुश्किल है। समाचारों से पता चलता है कि चार चार रात तक गोलीबारी में घर तबाह होने से लोग बोले कि हमारे घर धमाकों में उजड़ गए। सीमा पर बसे नागरिकों की कठिनाई और सीजफायर तोड़ने की पाक की कार्रवाई को देखकर भले ही संघर्ष विराम देशहित में है लेकिन हमें पड़ोसी देश में होने वाली गतिविधियों पर पूरी तरह नजर रखनी होगी और यह भी देखना होगा कि किसी भी मोर्चे पर हम कमजोर ना पड़ पाए। यह किसी से छिपा नहीं है कि युद्धों का अर्थव्यवस्था पर कितना भयंकर प्रभाव पड़ता है उसे संबंधित ही जान सकते है। इसलिए संघर्ष विराम के बाद हमें और भी सतर्क होना होगा। क्योंकि यह सीजफायर अगर पाकिस्तान और भारत के बीच टेबल पर बैठकर होता तो उसके कुछ और मायने थे लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा इसे अंजाम दिया गया उसके कुछ और मायने हैं। अगर देखें तो ज्यादा फायदा पड़ोसी देश को ही हुआ क्योंकि उसके यहां तंगी सिर पर चढ़कर बोलती नजर आ रही है मगर फिर भी इसे सामान्य माहौल बनाने के लिए भारत की कूटनीतिक जीत कह सकते हैं। आगे क्या होगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन एक बात जरूर है कि अब जो भी वार्ता हो भारत पाकिस्तान से सीधे उसके सेना के अधिकारियों और नेताओं के साथ होनी चाहिए क्योंकि वहां नेताओं से ज्यादा सेना का दबदबा है। पूर्व में जो सीजफायर हुआ था शायद वो इसलिए कुछ घंटे ही चल पाया। इसके सेना प्रमुख और पीएम के बीच हो किसी और की मध्यस्थता से नहीं। जल्दी से हमला करने की हिम्मत तो पाकिस्तान नहीं जुटाएगा क्योंकि उसने भारत की ताकत को देख लिया है। मगर इस सबके बावजूद नागरिकों में हो रही चर्चा कि जो जवान पाकिस्तान के कब्जे में था वो वापस आया या नहीं तथा पहलगाम हमले के आतंकी कहां है यह बात सरकार को नागरिकों से साझा करनी चाहिए। क्योंकि सारा देश पीएम के साथ है और रहेगा मगर जानकारियां नागरिकों को भी होनी चाहिए। पूरी तौर पर समर्थन में खड़े विपक्ष को भी विश्वास में लेने की जरूरत है। इसे कम करके नहीं आंका जाना चाहिए।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सीजफायर तो हुआ मगर सतर्क रहना होगा, शांति वार्ता अब पाक के सेना चीफ और सरकार के मुखिया से ही हो, नागरिकों और विपक्ष को विश्वास में ले सरकार
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